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    क्या सिर्फ उम्रदराज वाहनों पर रोक लगाने से सुधरेगी दिल्ली की सेहत? एक्सपर्ट ने बताया कैसे दूर होगा प्रदूषण

    Updated: Mon, 28 Jul 2025 08:52 PM (IST)

    पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार दिल्ली में प्रदूषण कम करने के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार और वाहनों की फिटनेस पर ध्यान देना आवश्यक है। क्लाइमेट ट्रेंड्स के वेबिनार में वक्ताओं ने कार्रवाई पर जोर दिया। पुराने वाहन प्रदूषण का मुख्य कारण हैं और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना चाहिए। वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है जिसके लिए तत्काल उपायों की आवश्यकता है।

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    बेहतर परिवहन व्यवस्था से ही रखी जाएगी दिल्ली की हवा में बदलाव की बुनियाद।

    संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि केवल उम्रदराज वाहनों पर प्रतिबंध लगाने से कुछ नहीं होगा। राजधानी का ढांचागत विकास भी जरूरी है ताकि सड़कों पर जाम न लगे। वाहनों पर भी उम्र नहीं बल्कि उनकी फिटनेस के हिसाब से रोक लगनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि प्रदूषण स्वास्थ्य को भी एक खलनायक की तरह हानि पहुंचा रहा है, इस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

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    "साफ हवा, सेहतमंद ज़िंदगी" सोच के साथ ही पालिसी थिंक टैंक क्लाइमेट ट्रेंडस ने सोमवार को एक वेबिनार आयोजित किया, जिसमें दिल्ली एनसीआर की हवा को बेहतर बनाने के लिए परिवहन क्षेत्र की भूमिका पर चर्चा हुई। वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि अब समय ‘जानकारी जुटाने’ का नहीं, ''कार्रवाई'' का है और उस कार्रवाई की शुरुआत गाड़ियों से होनी चाहिए।

    पुरानी गाड़ियां, जहरीली हवा

    एन्वायरोकैटेलिस्ट के संस्थापक सुनील दहिया ने साफ शब्दों में कहा, “बीएस दो और बीएस तीन जैसे पुराने वाहन, जो अब तक चल रहे हैं, प्रदूषण का बड़ा कारण हैं। अगर हम बीएस छह या इलेक्ट्रिक गाड़ियों की ओर शिफ्ट करें, तो प्रदूषण में 80 प्रतिशत तक की गिरावट मुमकिन है। लेकिन यह भी ध्यान दिया जाए कि प्रतिबंध उम्र नहीं बल्कि वाहनों की फिटनेस के आधार पर लगना चाहिए।”

    दहिया ने यह भी रेखांकित किया कि हमारी नीतियों में सबसे बड़ी कमी है—“हिसाब का हिसाब नहीं।” उन्होंने कहा कि हमें गतिविधि आधारित और इमीशन-लोड आधारित ट्रैकिंग इंडिकेटर्स चाहिए ताकि यह तय हो सके कि कौन ज़िम्मेदार है और उसका क्या असर हो रहा है।

    हर दिन करोड़ों यात्राएं, हर सांस में धुआं

    डब्ल्यूआरआइ इंडिया के काउस्तुभ चूके ने एक अहम आंकड़ा साझा किया- “दिल्ली की आबादी करीब 2.4 करोड़ है और एनसीआर में लगभग चार करोड़ लोग रहते हैं। अगर हर व्यक्ति सिर्फ एक यात्रा भी करे, तो प्रदूषण की मात्रा सोच से कहीं ज़्यादा हो जाती है। लेकिन सार्वजनिक परिवहन का हिस्सा 50 प्रतिशत से भी नीचे चला गया है।”

    उन्होंने ‘लो एमिशन जोन’ की वकालत की। जैसे चांदनी चौक में पैदल यात्रा को बढ़ावा देना। चूके के मुताबिक, “कमर्शियल गाड़ियां संख्या में भले कम हों, लेकिन वही 79 प्रतिशत नाइट्रोजन डाआक्साइड, 40 प्रतिशत कार्बन डाइआक्साइड और 30 से 40 प्रतिशत पार्टिकुलेट मैटर उत्सर्जित कर रही हैं। इनमें से ज्यादातर गाड़ियां दिल्ली की नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश और हरियाणा से आती हैं।”

    हवा में जहर, दिल और दिमाग पर असर

    एम्स के डा. हर्षल साल्वे ने वायु प्रदूषण को एक ‘तीरथा त्रिकोण’ बताया, जिसकी चोटी पर मौत है, लेकिन असली बोझ नींव में छुपा है। दिल की बीमारी, फेफड़ों की कमजोरी, अस्थमा, डायबिटीज़ और यहां तक कि डिमेंशिया जैसी बीमारियां। उन्होंने कहा, “ये सब रोज़ाना घटता है, लेकिन न तो हेल्थ रिपोर्टिंग में आता है, न ही नीतिगत चर्चा में।”

    उन्होंने ज़ोर दिया कि हमें ‘एकदम सही हल’ की तलाश में समय नहीं गंवाना चाहिए। जो उपाय अभी उपलब्ध हैं, उन्हीं से शुरुआत करनी होगी और इसमें संचार विशेषज्ञों की भूमिका अहम है।

    चलना और साइकिल चलाना, लेकिन कैसे?

    आइआइटी दिल्ली के डा राहुल गोयल ने कहा, “दिल्ली की 50 प्रतिशत यात्राएं पैदल चलने से जुड़ी हैं। चाहे वो बस पकड़ना हो या मेट्रो से उतरने के बाद का सफर। लेकिन हम ऐसा बुनियादी ढांचा ही नहीं बना पा रहे जो चलने या साइकिल चलाने को सुरक्षित बनाएं। असल गवर्नेंस यहीं चूक जाती है।”

    नतीजा? अब बहाने नहीं, बदलाव चाहिए

    इस वेबिनार से एक बात साफ़ हुई। चाहे वो गाड़ियों की उम्र हो, स्वास्थ्य की गिरावट, या नीति की नाकामी, हर समस्या का हल मौजूद है। जरूरत है राजनीतिक इच्छा शक्ति, पारदर्शिता और सबसे अहम उस चीज़ की जो दिल्ली की हवा में गायब है यानी भरोसे एवं कार्रवाई की ताज़गी।