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    अडानी एंटरप्राइजेज के खिलाफ सामग्री हटाने का आदेश खारिज, जिला अदालत ने कहा- पिछला आदेश था गलत

    Updated: Thu, 18 Sep 2025 09:33 PM (IST)

    रोहिणी कोर्ट ने एईएल (अदानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड) के खिलाफ सामग्री हटाने के सिविल कोर्ट के आदेश को पलट दिया है। कोर्ट ने कहा कि पत्रकारों को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं मिला। एईएल ने पत्रकारों पर प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया था। कोर्ट ने पहले पत्रकारों को विवादास्पद सामग्री हटाने का निर्देश दिया था जिसे अब रद्द कर दिया गया है।

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    अडानी एंटरप्राइजेज के खिलाफ सामग्री हटाने के आदेश को खारिज किया

    जागरण संवाददाता, बाहरी दिल्ली। रोहिणी न्यायालय ने एईएल (अदानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड) के खिलाफ लेख व सामग्री को हटाने के सिविल कोर्ट के आदेश को रोहिणी की जिला अदालत ने पलट दिया है। जिला अदालत ने उस आदेश (गैग ऑर्डर) को निरस्त कर दिया है। इसके तहत पत्रकार रवि नायर, अबीर दासगुप्ता, अयाकांत दास व आयुष जोशी को एईएल के खिलाफ समाचार प्रकाशित करने से रोका गया था।

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    छवि को नुकसान पहुंचा

    जिला अदालत ने अपने आदेश में कहा कि पिछला आदेश गलत था, क्योंकि पत्रकारों को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया था। एईएल की ओर से दायर मानहानि मुकदमे में था कि कुछ पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और संगठनों ने उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया है, जिससे उसे वित्तीय नुकसान हुआ है और वैश्विक स्तर पर भारत की छवि को नुकसान पहुंचा है।

    आदेश को चुनौती दी गई 

    यह आदेश बृहस्पतिवार को रोहिणी न्यायालय के जिला न्यायाधीश ने चार पत्रकार की ओर से सिविल कोर्ट के छह सितंबर के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई करते करते हुए दिया। पत्रकारों ने अपनी याचिका में एईएल के खिलाफ कथित रूप से असत्यापित और मानहानिकारक सामग्री प्रकाशित या प्रसारित करने से रोकने वाले आदेश को चुनौती दी गई थी।

    निर्धारित अवधि के भीतर हटाने का निर्देश

    पत्रकारों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर और नकुल गांधी ने दलील रखीं। बता दें कि छह सितंबर को सिविल कोर्ट ने चार पत्रकारों सहित 10 प्रतिवादियों को वेबसाइटों, लेखों और सोशल मीडिया पोस्ट सहित विभिन्न प्लेटफार्मों पर पहले से प्रकाशित विवादास्पद सामग्री को एक निर्धारित अवधि के भीतर हटाने का निर्देश दिया।

    दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद...

    जिला अदालत ने अपने आदेश में कहा कि सिविल कोर्ट को आदेश पारित करने से पहले प्रतिवादियों को एक अवसर प्रदान करना चाहिए था और यह भी कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के प्रावधानों को ध्यान में नहीं रखा गया।

    जिला अदालत ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद मामले को नए सिरे से तय करने के लिए अदालत को वापस भेज दिया गया। उधर, एक अन्य अदालत ने पत्रकार परंजाय गुहा ठाकुरता की ओर से दायर अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिन्होंने इसी तरह की राहत मांगी थी। इस मामले में पत्रकारों के अलावा कुछ इंटरनेट मीडिया से जुड़ीं कुछ कंपनी प्रतिवादी हैं।

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