दिल्ली सरकार के फैसले पर उठे सवाल... एक पेड़ काटने पर 10 की जगह महज तीन ही लगाने के प्रस्ताव से पर्यावरणविद नाराज
दिल्ली में एक पेड़ के बदले तीन पौधे लगाने के सरकार के फैसले पर विशेषज्ञों ने आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि इससे दिल्ली का हरित क्षेत्र कम हो जाएगा। विकास जरूरी है लेकिन हरियाली की कीमत पर नहीं। विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि पेड़ों की कटाई रोकने और प्रतिपूरक पौधारोपण को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने की आवश्यकता है।
संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। दिल्ली वृक्ष संरक्षण अधिनियम (डीपीटीए) 1994 में बदलाव के दिल्ली सरकार के प्रस्ताव से कोई भी ग्रीन एक्टिविस्ट सहमत नहीं है। उनका कहना है कि यह प्रस्ताव दिल्ली के बढ़ते ग्रीन कवर को रेड सिग्नल देने की तैयारी है।
वे यह भी कहते हैं कि विकास परियोजनाओं को बढ़ावा मिलना चाहिए, लेकिन हरियाली की कीमत पर नहीं। इसी तरह पौधारोपण के लिए जमीन की कमी दूर करने का यह कोई तरीका नहीं कि एक पेड़ के बदले लगने वाले पौधों की संख्या ही कम कर दी जाए।
वन्यजीव विशेषज्ञ फैयाज ए खुदसर कहते हैं, निश्चित तौर पर यह बड़ी चुनौती है कि विकास और पौधों के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए। विकास एजेंसियों, वैज्ञानिक विशेषज्ञों, स्थानीय लोगों और सरकार को एक साथ कैसे लाया जाए कि विकास का मौजूदा हरित क्षेत्रों पर न्यूनतम प्रभाव पड़े और हरित आवरण को बढ़ाया जा सके।
पेड़ों को काटने से पहले उनकी स्थिति का मूल्यांकन और यदि संभव हो तो उन्हें स्थानांतरित करने के विकल्पों पर भी विचार करना चाहिए। हमें याद रखना चाहिए कि पेड़ लोगों के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अगर उनकी संख्या कम हुई तो पर्यावरण पर भी अच्छा असर नहीं पड़ेगा।
विलायती कीकर को भी चरणबद्ध तरीके से हटाया जाना चाहिए और साथ साथ ही उसकी जगह स्वदेशी पौधे भी लगाए जाने चाहिए। अन्यथा दिल्ली का वन क्षेत्र काफी हद तक कम हो जाएगा।
सोशल एक्शन फाॅर फाॅरेस्ट एंड एनवायरनमेंट के संस्थापक एडवोकेट विक्रांत तोंगड का कहना है कि यदि पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर अंकुश नहीं लगाया गया, तो आने वाले वर्षों में दिल्ली का हरित क्षेत्र घटता ही जाएगा।
आर्किटेक्ट्स, टाउन प्लानर्स और कंस्ट्रक्शन कंपनियों भी बड़े और विकसित पेड़ों को यथासंभव संरक्षित करने की दिशा में प्रयास करना चाहिए। विलायती कीकर से मुक्ति पाने का भी यह तरीका जायज नहीं कि उन्हें जल्दबाजी में हटा दिया जाए।
इसी तरह एक के बदले तीन नहीं बल्कि 10 पौधे ही लगने चाहिए। जमीन की कमी का मुद्दा बहुत व्यावहारिक नहीं है। सही ढंग से इसका प्रबंधन किया जाना चाहिए।
ग्रीन एक्टिविस्ट भंवरीन कंधारी कहती हैं, सच तो यह है कि दिल्ली में पेड़ पौधों का रोपण कभी ईमानदारी से होता ही नहीं। एक पेड़े के बदले 10 पौधे अगर रोपे भी जाते हैं तो उनकी देखभाल नहीं होती। जमीन की कमी के नाम पर अब तो प्रतिपूरक वृक्षारोपण में भी झाड़ियां लगा दी जाती हैं।
स्वयं वन विभाग भी मानसून में पाैधारोपण के नाम पर बड़ी संख्या में झाड़ियां रोपता रहा है। अगर कहीं नई जमीन न मिल रही हो तो जहां पुराने पेड़ पौधे सूख गए हों, वहीं नए पौधे लगा देने चाहिए। प्रतिपूरक वृक्षारोपण में लगने वाले पौधों की संख्या घटाना भी तार्किक नहीं है।
1483 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैली राजधानी में कुल 25.03 प्रतिशत हरित क्षेत्र है। इसमें से 60 प्रतिशत से ज्यादा क्षेत्र में विलायती कीकर लगा हुआ है। यह सबसे ज्यादा रिज क्षेत्र में फैला है। 7,777 हेक्टेयर का रिज क्षेत्र चार हिस्सों में बंटा हुआ है।
नार्दर्न रिज, सदर्न रिज, सेंट्रल रिज और सदर्न- सेंट्रल रिज। रिज क्षेत्र भी किसी एक सरकारी विभाग या एजेंसी के अधीन न होकर आधा दर्जन से अधिक विभागों एवं एजेंसियों के क्षेत्राधिकार में आता है। वन विभाग के पास सेंट्रल रिज में अन्य विभागों की तुलना में सबसे ज्यादा हिस्सा है।
किस विभाग या एजेंसी के पास सेंट्रल रिज का कितना हिस्सा
- कुल क्षेत्रफल : 869 हेक्टेयर
- वन विभाग : 423 हेक्टेयर
- आर्मी : 202 हेक्टेयर
- डीडीए : 85 हेक्टेयर
- केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) : 37 हेक्टेयर
- नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) : 25 हेक्टेयर
- विदेश मामलों का मंत्रालय (एमएचए) : 6 हेक्टेयर
- दिल्ली नगर निगम : 3 हेक्टेयर
- रेलवे : 11 हेक्टेयर
- भू संपदा अधिकारी (एल एंड डीओ) : 70 हेक्टेयर
हाल ही में जारी फाॅरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया ने इंडिया स्टेट ऑफ फाॅरेस्ट रिपोर्ट 2023 के अनुसार दिल्ली में 2021 में ट्री कवर 171.06 वर्ग किमी था, जो 2023 में बढ़कर 176.03 वर्ग किमी हो गया। वहीं 2021 में दिल्ली का हरित क्षेत्र 366.42 वर्ग किमी था, जो 2023 में बढ़कर 371.31 वर्ग किमी हो गया है।
तीन सालों में दिल्ली का ग्रीन कवर
- 2023 - 25.03 प्रतिशत
- 2021 - 23.06 प्रतिशत
- 2019 - 21.06 प्रतिशत
छह जिलों में कम हुआ सघन वन क्षेत्र
रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के छह जिलों में सघन वन क्षेत्र कम हुआ है। इनमें पूर्वी दिल्ली, नई दिल्ली, उत्तर पश्चिमी दिल्ली, शाहदरा, दक्षिणी पूर्वी दिल्ली और पश्चिमी दिल्ली शामिल हैं।
सबसे अधिक सघन वन क्षेत्र नई दिल्ली में कम हुआ है। यहां पर इसमें 0.90 वर्ग किमी की कमी आई है। वहीं दक्षिणी दिल्ली में सघन वन क्षेत्र सबसे अधिक बढ़ा है। यहां पर यह 0.90 प्रतिशत बढ़ा है।
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