दिल्ली में क्यों कमजोर हो रही पेड़ों की जड़ें? विशेषज्ञों ने बताई ये बड़ी वजह
विशेषज्ञों के अनुसार दिल्ली में पेड़ों के गिरने का मुख्य कारण कंक्रीटीकरण है। पेड़ों के तनों के आसपास कंक्रीट भरने से उनकी जड़ें कमजोर हो जाती हैं जिससे वे पानी और ऑक्सीजन से वंचित रह जाते हैं। कंक्रीटीकरण पेड़ों के विकास को रोकता है और उन्हें कमजोर बनाता है। एनजीटी के आदेश के बावजूद कंक्रीट हटाने का काम अभी भी अधूरा है।

संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। तेज आंधी और वर्षा में टूट रहे नए-पुराने पेड़ों के लिए विशेषज्ञों ने कंक्रीटीकरण को मुख्य वजह बताया है। उनका कहना है कि फुटपाथ एवं सड़क के बीच के हिस्से को अक्सर पेड़ों के तने तक कंक्रीट से सील कर दिया जाता है।
कंक्रीटीकरण पेड़ों की जड़ों को कमजोर कर देता है, उनकी वृद्धि को रोक देता है, पानी एवं ऑक्सीजन तक उनकी पहुंच को भी कम कर देता है। इससे पेड़ भूखे रह जाते और समय के साथ कमजोर होने लगते हैं। पेड़ों की काली पड़ती छाल भी इसका संकेत है कि उन्हें पर्याप्त पोषक तत्व नहीं मिल रहे हैं।
बायोडायवर्सिटी पार्क परिकल्पना के प्रभारी एवं जाने माने वनस्पति विज्ञानी प्रो सीआर बाबू कहते हैं कि भूजल स्तर में गिरावट व पेड़ों की जड़ के आसपास बढ़ते कंक्रीटीकरण ने ऐसी घटनाओं के प्रभाव को और बढ़ा दिया है। पेड़ की जड़ें उतनी ही फैलती हैं, जितनी कि छतरी फैलती है। पेड़ के आधार के आसपास कंक्रीटीकरण पानी को किनारे की जड़ों तक नहीं पहुंचने देता। वह सिकुड़ जाता है तो पेड़ को भी कमजोर कर देता है। बहुत से पेड़ भूजल के स्तर तक नहीं पहुंच पा रहे हैं जो कुछ वर्षों से बहुत नीचे चला गया है।
बताया कि यह उन्हें और कमजोर बनाता है। कई बार लोग पेड़ के तने के चारों ओर संरचनाओं का समर्थन करने के लिए केबल और रस्सी बांधते हैं जो उस विशेष हिस्से के विकास में बाधा डालता है। तेज हवाएं इन बिंदुओं से ऐसे पेड़ों को भी तोड़ देती हैं।
ग्रीनपीस इंडिया के जलवायु एवं ऊर्जा अभियानकर्ता आकिज़ फ़ारूक़ ने कहा कि बिना काटे भी, पेड़ों को कंक्रीट में ढककर धीरे-धीरे नष्ट किया जा रहा है। उन्होंने कहा, "पार्कों या जंगलों में पेड़ शायद ही कभी गिरते हैं। सड़क किनारे लगे पेड़, जिनकी जड़ें फुटपाथों के नीचे दबी होती हैं, वही गिरते हैं।"
पर्यावरणविदों के अनुसार, पेड़ों की जड़ों को बाहर और नीचे की ओर बढ़ने देने के लिए ढीली मिट्टी की परत की ज़रूरत होती है। लेकिन जब सीमेंट की स्लैब तने से चिपक जाती है, तो पानी अंदर नहीं जा पाता। हवा का संचार रुक जाता है और जड़ें उथली रह जाती हैं। मानसून के दौरान, जब पेड़ के तने नमी से फूल जाते हैं, तो कंक्रीट उनके लिए एक प्रकार का अवरोधक का काम करता है।
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पर्यावरणविद वेरहेन खन्ना ने बताया कि पेड़ के आधार के चारों ओर सीमेंट पानी और हवा को रोकता है और तने को फैलने से रोकता है। उन्होंने कहा, "मानसून में यह जानलेवा हो जाता है। जड़ें अपनी पकड़ खो देती हैं और अगर सड़क की खुदाई उन्हें काट देती है, तो गिरने का खतरा और भी बढ़ जाता है।"
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 2013 के एनजीटी के एक आदेश में अधिकारियों को पेड़ों के एक मीटर के दायरे से कंक्रीट हटाने का निर्देश दिया गया था। लेकिन एक दशक से भी ज्यादा समय हो गया, इसका क्रियान्वयन अभी भी अधूरा है। यहां तक कि दिल्ली में पेड़ों की गणना भी आज तक शुरू नहीं हुई है। कितने पुराने पेड़ खतरनाक, यह भी कोई नहीं जानता।
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