नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र: हारने के बाद मिली गुमनामी, छह बार जीतनेवाले बने सीएम; दिलचस्प है इसकी कहानी
नई दिल्ली विधानसभा सीट हमेशा से राजनीतिक महत्व रखती है। इस सीट से तीन बार शीला दीक्षित और तीन बार अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने हैं। वहीं इस सीट से हारनेवाले प्रत्याशी गुमनामी में चले गए। इस बार फिर से आम आदमी पार्टी भाजपा और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। जानिए इस सीट के इतिहास और प्रमुख उम्मीदवारों के बारे में।

अजय राय, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी का रूतबा रखने वाले नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र नाम देने के साथ गुमनामी के अंधकार में धकेल देता है। तमाम राष्ट्रीय संस्थानों और माननीयों के लिए प्रसिद्ध लुटियंस दिल्ली ने राजधानी को छह बार मुख्यमंत्री दिया है।
बेशक इस विधानसभा क्षेत्र का नाम वर्ष 2008 में हुए परिसीमन के बाद गोल मार्केट से बदलकर नई दिल्ली हो गया, पर यह सत्ता का पावरहाउस बना रहा। बीते 26 सालों में यहां से तीन-तीन बार शीला दीक्षित व अरविंद केजरीवाल जीतकर दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। लेकिन, जिसकी पराजय हुई वो राजनीति के गुमनाम गलियारों में भी खो गया। वक्त के साथ यहां मतदाता भी उसे भुलाते चले गए।
जद्दोजहद कर रही कांग्रेस पार्टी के बीच मुकाबला
दिल्ली में इस बार भी तीन राजनीतिक दलों सत्तारुढ़ आम आदमी पार्टी, मुख्य विपक्षी भारतीय जनता पार्टी और अपनी खोयी विरासत पाने के लिए जद्दोजहद कर रही कांग्रेस पार्टी के बीच मुकाबला है। वर्ष 1993 से 2008 तक यह मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होता था। हालांकि राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता।
2013 में अरविंद केजरीवाल उतरे और छा गए
वर्ष 2013 में आंदोलन से खड़ी हुई आम आदमी पार्टी ने मुकाबला त्रिकोणीय बनाने के साथ दिल्ली की सत्ता पर तब से अब तक कब्जा जमाए हुए है। आप के संयोजक व पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इसी सीट चुनावी महासमर में उतरे और पूरी दिल्ली में छा गए।
हालांकि, वर्ष 2013 से पहले ऐसे ही उत्तर प्रदेश के कन्नौज से आई एक महिला ने दिल्ली की राजनीति में कदम रखा और लगातार 15 साल तक मुख्यमंत्री बनकर राज किया। जी हां...शीला दीक्षित की बात हो रही है। तब नई दिल्ली विस क्षेत्र का नाम गोल मार्केट हुआ करता था।
1993 में बिहार के पूर्व सीएम के बेटे ने जीत दर्ज की
वर्ष 1993 में यहां से भाजपा के टिकट पर पूर्व क्रिकेटर और बिहार के पूर्व सीएम भागवत झा आजाद के बेटे कीर्ति आजाद ने जीत दर्ज की। लेकिन, अगले चुनाव वर्ष 1998 में शीला दीक्षित इस सीट से कांग्रेस के टिकट पर उतरीं और कीर्ति आजाद को हराकर दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं। फिर 2003 में कीर्ति आजाद की पत्नी पूनम आजाद को हराकर दूसरी बार यहां से विधायक चुनी गईं और फिर मुख्यमंत्री बनीं।
2008 में शीला दीक्षित तीसरी बार इस क्षेत्र से उतरी
वर्ष 2008 में विधानसभा क्षेत्र का नाम बदलकर नई दिल्ली हो गया पर दिल्ली में कांग्रेस का चेहरा बन चुकीं शीला दीक्षित तीसरी बार इस क्षेत्र से मैदान में उतरीं और उनके सामने भाजपा ने विजय जौली को उतारा पर नतीजा शीला के पक्ष में ही रहा। देखते-देखते शीला दीक्षित ने दिल्ली की दशा बदलने के साथ 15 साल तक एकक्षत्र राज किया। इस दौरान कीर्ति आजाद और विजय जौली दिल्ली की राजनीति में गुमनाम होते चले गए।
2015 और 2020 के चुनाव में केजरीवाल ने जीत दर्ज की
वक्त बदला दिल्ली में भ्रष्टचार के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी ने अपनी जगह बनानी शुरू कर दी थी। वर्ष 2013 के चुनाव में आप ने अपने सबसे बड़े नेता अरविंद केजरीवाल को इसी क्षेत्र से उतारा। चुनाव नतीजे आए तो कांग्रेस का किला दिल्ली में ढह चुका था और केजरीवाल विजयी होने के साथ दिल्ली के नए मुख्यमंत्री बने। शीला दीक्षित दिल्ली की राजनीति में बीती बात होती चली गईं। फिर केजरीवाल इसी सीट से 2015 और 2020 के विस चुनाव में भी इसी सीट से जीत दर्ज कर मुख्यमंत्री बने।
कई हारे प्रत्याशी गुमनामी में चले गए
इस दौरान भाजपा से विजेंद्र कुमार, नूपुर शर्मा और सुनील यादव मैदान में उतरे और हारकर गुमनाम होते चले गए। अरिवंद केजीवाल इस बार के चुनाव में भी इसी सीट से उम्मीदवार है उनके सामने कांग्रेस दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को उतारा है। वहीं, भाजपा से इस बार पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे व पूर्व सांसद प्रवेश वर्मा मैदान में उतर सकते हैं। हालांकि भाजपा ने अभी घोषणा नहीं की है।
नई दिल्ली विस सीट से कब कौन जीता
साल | विजयी उम्मीदवार | पार्टी | कितने वोट से जीते |
1993 | कीर्ति आजाद | भाजपा | 3,803 |
1998 | शीला दीक्षित | कांग्रेस | 5,667 |
2003 | शीला दीक्षित | कांग्रेस | 12,935 |
2008 | शीला दीक्षित | कांग्रेस | 13,982 |
2013 | अरविंद केजरीवाल | आप | 25,864 |
2015 | अरविंद केजरीवाल | आप | 31,583 |
2020 | अरविंद केजरीवाल | आप | 21,697 |
1993
दल | सीट | वोट शेयर |
भाजपा | 49 | 42.8 |
कांग्रेस | 14 | 34.5 |
जनता दल | 4 | 12.6 |
अन्य | 3 | 5.9 |
1998
दल | सीट | वोट शेयर |
भाजपा | 14 | 34 |
कांग्रेस | 52 | 47.8 |
जनता दल | 1 | 1.8 |
अन्य | 2 | 8.7 |
2003
दल | सीट | वोट शेयर |
भाजपा | 20 | 35.2 |
कांग्रेस | 47 | 48.1 |
एनसीपी | 1 | 2.2 |
जनता दल (एस) | 1 | 0.7 |
अन्य | 1 | 4.9 |
2008
दल | सीट | वोट शेयर |
भाजपा | 23 | 36.3 |
कांग्रेस | 43 | 40.3 |
बीएसपी | 2 | 14 |
एलजेपी | 1 | 1.3 |
अन्य | 1 | 3.9 |
2013
दल | सीट | वोट शेयर |
भाजपा | 31 | 33.3 |
कांग्रेस | 8 | 24.7 |
आप | 28 | 29.7 |
शिअद | 1 | 0.9 |
अन्य | 2 | 11.4 |
2015
दल | सीट | वोट शेयर |
भाजपा | 3 | 32.3 |
आप | 67 | 54.5 |
कांग्रेस | 0 | 9.7 |
2020
दल | सीट | वोट शेयर |
भाजपा | 8 | 38.7 |
आप | 62 | 53.8 |
कांग्रेस | 0 | 4.3 |
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