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    अब दिल्ली वालों को नहीं होगी पानी की किल्लत? एक क्लिक में पढ़ें NDMC का पूरा मास्टर प्लान

    By Nihal Singh Edited By: Rajesh Kumar
    Updated: Tue, 18 Mar 2025 10:01 PM (IST)

    दिल्ली में पानी की कमी को दूर करने के लिए NDMC ने एक मास्टर प्लान तैयार किया है। इसके तहत 95 नए मॉड्यूलर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए जाएंगे। यह सिस्टम पारंपरिक सिस्टम की तुलना में अधिक प्रभावी और किफायती है। इससे भूजल स्तर में सुधार होगा और पानी की कमी की समस्या से निजात मिलेगी। एनडीएमसी अब इस सिस्टम पर काम करेगी।

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    दिल्ली में 95 नए वर्षा जल संचयन सिस्टम लगाए जाएंगे। जागरण

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में बारिश का पानी नालों में जाने के बजाय भूजल को रिचार्ज करने में मदद करे, इसके लिए एनडीएमसी मॉड्यूलर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम पर जोर दे रही है। इसके लिए एनडीएमसी ने 95 नए मॉड्यूलर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने का फैसला किया है।

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    जल संचय के लिए NDMC का मास्टर प्लान

    एनडीएमसी अब इस सिस्टम पर काम करेगी, क्योंकि पहले बनाए गए 139 गड्ढे बारिश के पानी से भूजल को रिचार्ज करने में मददगार साबित हुए हैं। पारंपरिक सिस्टम के मुकाबले यह मॉड्यूलर गड्ढा न सिर्फ साफ करने में आसान है, बल्कि यह बहुत जल्दी तैयार भी हो जाता है और इसकी लागत भी कम है।

    एनडीएमसी उपाध्यक्ष कुलजीत सिंह चहल ने कहा कि एनडीएमसी के प्रयासों से इंडिया गेट से लेकर पुराना किला, लोधी रोड, कनॉट प्लेस, लक्ष्मीबाई नगर के इलाकों में भूजल स्तर सामान्य है। कुछ इलाके ऐसे हैं जहां भूजल 5 मीटर से भी ज्यादा है।

    भूजल दोहन पर लगेगी रोक

    एनडीएमसी द्वारा सड़कों के किनारे और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर बनाए गए रेन वाटर हार्वेस्टिंग पिट्स की वजह से यह संभव हो पाया है। एनडीएमसी इलाकों में बोरवेल के जरिए भूजल दोहन पर रोक है और इसका अनुपालन भी सुनिश्चित किया जाता है।

    बढ़ेगा ग्राउंड वाटर लेवल

    इससे हम जो ग्राउंड वाटर रिचार्ज करते हैं उससे ग्राउंड वाटर लेवल बढ़ता है। लेकिन कुछ इलाकों में ग्राउंड वाटर लेवल सुधारने के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने की जरूरत है। इसके लिए हमने मॉड्यूलर तकनीक का इस्तेमाल कर 95 नए पिट्स बनाने का फैसला किया है।

    उन्होंने बताया कि चाणक्यपुरी, शांति निकेतन, सत्य निकेतन और मोती बाग, 11 मूर्ति, के कामराज मार्ग, वेस्ट किदवई नगर, कुशक रोड जैसे इलाकों में बारिश के पानी को इकट्ठा करने के लिए यह मॉड्यूलर पिट बनाया जाएगा।

    उन्होंने बताया कि पहले जिस जगह पर पारंपरिक पिट बनाया जाता था, उसका इस्तेमाल किसी दूसरे काम के लिए नहीं किया जा सकता था, जबकि मॉड्यूलर सिस्टम पूरी तरह से भूमिगत होता है। इसमें पांच टन तक का वजन रखने या पास करने की क्षमता होती है।

    साथ ही इसमें कंक्रीट और सीमेंट का इस्तेमाल नहीं होता, इसलिए इसकी लागत भी कम होती है। इसलिए हम इस सिस्टम के इस्तेमाल पर जोर दे रहे हैं।

     कैसे बनता है मॉड्यूलर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम?

    • 20 फीट तक गहरे पहले से बने गड्ढे खोदे जाते हैं और उसमें पॉलीप्रोपाइलीन ब्लॉक लगाए जाते हैं।
    • इसे बोरवेल के जरिए जोड़ा जाता है।
    • इसमें फिल्टर भी लगाए जाते हैं ताकि गंदगी भूजल में न जाए।
    • इसका बाहरी हिस्सा सीवर मैनहोल जैसा होता है जिसमें छेद वाली टाइलों के जरिए पानी इसमें जाता है।
    • चूंकि इसमें फाइबर से बने पॉलीप्रोपाइलीन ब्लॉक लाकर लगाए जाते हैं।
    • इसे साफ करना भी आसान है क्योंकि फ़िल्टर की वजह से सारी गंदगी ऊपर ही चिपक जाती है, जिसे आसानी से साफ किया जा सकता है।
    • इसमें लगे बोरवेल का इस्तेमाल ज़रूरत के हिसाब से सिंचाई के लिए भी किया जा सकता है।
    • इस सिस्टम के ऊपर 5 टन तक का वज़न रखा जा सकता है. चूंकि इसे सड़क किनारे बनाया गया है, इसलिए वाहन भी इसके ऊपर से आसानी से गुजर सकते हैं।

    पारंपरिक वर्षा जल संचयन प्रणाली कैसी दिखती है?

    • नीचे एक बोरवेल लगाया जाता है जहाँ पानी इकट्ठा हो सकता है।
    • कंक्रीट की इमारत या फर्श से पानी इकट्ठा करके ऐसी जगह पर इकट्ठा किया जाता है जहाँ ज़मीन उबड़-खाबड़ हो और फिर इस पानी को बोरवेल के जरिए जमीन में डाला जाता है।
    • इसके ऊपर से किसी दूसरी वस्तु को गुजरने की अनुमति नहीं होती है।

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