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    'केवल मुसलमानों तक सीमित नहीं...', विधेयक पारित होने पर मुस्लिम संगठनों ने दी आंदोलन की चेतावनी

    मुस्लिम संगठनों ने वक्फ संशोधन विधेयक पारित होने पर आंदोलन की चेतावनी दी है। जमात-ए-इस्लामी हिंद (जेआईएच) के अध्यक्ष सैयद सदातुल्लाह हुसैनी ने वक्फ संशोधन विधेयक का कड़ा विरोध करते हुए इसे एक बेहद निंदनीय कदम बताया जो मुसलमानों के खिलाफ विधायी भेदभाव का मार्ग प्रशस्त करता है। उन्होंने बताया कि वक्फ अधिनियम 1995 के प्रावधान जिन्हें विधेयक निरस्त करने का प्रयास करता है केवल मुसलमानों तक सीमित नहीं हैं।

    By Jagran News Edited By: Rajesh KumarUpdated: Wed, 02 Apr 2025 06:17 PM (IST)
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    मुस्लिम संगठनों ने वक्फ संशोधन विधेयक पारित होने पर आंदोलन की चेतावनी दी है। फाइल फोटो

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। मुस्लिम संगठनों ने वक्फ संशोधन विधेयक पारित होने पर आंदोलन की चेतावनी दी है। जमात-ए-इस्लामी हिंद (जेआईएच) के अध्यक्ष सैयद सदातुल्लाह हुसैनी ने वक्फ संशोधन विधेयक का कड़ा विरोध करते हुए इसे 'एक बेहद निंदनीय कदम बताया जो मुसलमानों के खिलाफ विधायी भेदभाव का मार्ग प्रशस्त करता है।'

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    1995 के प्रावधान का जिक्र

    उन्होंने बताया कि वक्फ अधिनियम, 1995 के प्रावधान, जिन्हें विधेयक निरस्त करने का प्रयास करता है, केवल मुसलमानों तक सीमित नहीं हैं। अन्य धार्मिक समुदायों को भी समान अधिकार प्राप्त हैं। विभिन्न धार्मिक समुदायों के बंदोबस्ती कानूनों में ऐसे प्रावधान हैं जो उनके प्रबंधन बोर्डों को उनके संबंधित धर्मों के सदस्यों तक सीमित रखते हैं।

    हुसैनी ने कहा कि वे ‘उपयोगकर्ताओं द्वारा मंदिर’ की भी अनुमति देते हैं, जो ‘उपयोगकर्ताओं द्वारा वक्फ’ के समान है और सीमा अधिनियम जैसे कानूनों से छूट प्रदान करते हैं। हालांकि, केवल मुसलमानों को इन अधिकारों से वंचित किया जा रहा है, जो कि स्पष्ट विधायी भेदभाव और एक खतरनाक मिसाल है।

    उन्होंने कहा, "यह विधेयक वक्फ अधिनियम, 1995 में व्यापक बदलाव करता है, जिससे वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सरकारी हस्तक्षेप बढ़ता है और उनके धार्मिक चरित्र में बुनियादी बदलाव होता है।" यह संविधान के अनुच्छेद 26 का सीधा उल्लंघन है, जो धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपने धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन का अधिकार देता है।

    व्यापक विरोध और जनता की लाखों आपत्तियों के बावजूद, सरकार ने विधेयक के प्रमुख हितधारकों से प्राप्त फीडबैक को नजरअंदाज कर दिया। ऐसा लग रहा था कि परामर्श प्रक्रिया महज औपचारिकता थी और विधेयक को पारित करने का निर्णय पहले से तय था, जिससे जनता की राय और हितधारकों की चिंताएं अप्रासंगिक हो गईं।

    उन्होंने कुछ मीडिया संस्थानों की जनता को गलत बयानबाजी करके गुमराह करने के लिए कड़ी आलोचना की। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि विधेयक भ्रष्टाचार, अवैध कब्जे या वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ नहीं करता। सरकार इस संबंध में एक भी ऐसा प्रावधान नहीं बता सकती जो मददगार हो। इसके प्रावधान केवल वक्फ प्रशासन को खराब करते हैं।"

    जमात-ए-इस्लामी हिंद सभी धर्मनिरपेक्ष दलों, विपक्षी नेताओं और एनडीए सहयोगियों से इस अन्यायपूर्ण विधेयक का विरोध करने का आह्वान करता है। यह निराशाजनक है कि कुछ दलों ने धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करने के बावजूद इसका समर्थन करना चुना है। उन्हें भाजपा के राजनीतिक दबाव में आकर सांप्रदायिक राजनीति में भाग नहीं लेना चाहिए।

    वक्फ संपत्तियां धार्मिक बंदोबस्त

    यदि वे इस विधेयक का विरोध करने में विफल रहते हैं, तो इतिहास उनके विश्वासघात को याद रखेगा और न्यायप्रिय नागरिक उन्हें जवाबदेह ठहराएंगे। जमात-ए-इस्लामी हिंद दोहराता है कि वक्फ संपत्तियां धार्मिक बंदोबस्त हैं, न कि सरकारी संपत्तियां। वक्फ शासन को कमजोर करने और राज्य के नियंत्रण को बढ़ाने का कोई भी प्रयास अस्वीकार्य है।

    यदि यह विधेयक अलोकतांत्रिक तरीके से पारित किया जाता है, तो ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के नेतृत्व में अन्य मुस्लिम संगठनों के साथ मिलकर पूरे देश में विरोध प्रदर्शन किए जाएंगे। इस कानून को सभी संवैधानिक, कानूनी, लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण तरीकों से चुनौती दी जाएगी। इस अन्याय के खिलाफ संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक समुदाय के अधिकार पूरी तरह से बहाल नहीं हो जाते।

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