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    दिल्ली सरकार के सख्त एक्शन के बाद भी प्राइवेट स्कूलों की मनमानी, अभिभावकों की जेब पर पड़ेगा असर

    दिल्ली के निजी स्कूलों में मनमानी फीस वसूली का मामला सामने आया है। स्कूल अभिभावकों से किताबों और यूनिफॉर्म के नाम पर मोटी रकम वसूल रहे हैं। शिक्षा निदेशालय ने स्कूलों को किसी खास विक्रेता से किताबें और यूनिफॉर्म खरीदने के लिए बाध्य नहीं करने और स्कूल की वेबसाइट पर किताबें खरीदने के लिए स्कूल के नजदीक की कम से कम पांच दुकानों का पता प्रदर्शित करने को कहा था।

    By Ritika Mishra Edited By: Monu Kumar Jha Updated: Wed, 02 Apr 2025 05:59 PM (IST)
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    Delhi News: दिल्ली के निजी स्कूलों में मनमानी फीस वसूली, अभिभावकों की जेब पर डाका। फाइल फोटो

    रीतिका मिश्रा, नई दिल्ली।Delhi Private Schools: राजधानी के निजी स्कूलों में नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत होते ही अभिभावकों की जेब पर तगड़ी मार पड़ने लगी है। स्कूलों ने अभिभावकों से किताबों व यूनिफार्म के नाम पर मोटी रकम वसूलना शुरू कर दिया है। शिक्षा निदेशालय ने स्कूलों को किसी खास विक्रेता से किताबें व यूनिफार्म खरीदने के लिए बाध्य नहीं करने और स्कूल की वेबसाइट पर किताबें खरीदने के लिए स्कूल के नजदीक की कम से कम पांच दुकानों का पता और टेलीफोन नंबर भी प्रदर्शित करने को कहा था।

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    ताकि अभिभावक अपनी सुविधानुसार उन दुकानों से किताबें व यूनिफार्म खरीद सकें। इसके बावजूद निजी स्कूल कैंपस के अंदर ही निजी प्रकाशकों की किताबें, स्टेशनरी और यूनिफार्म मंहगें दामों पर बेच रहे हैं।

    इतना ही नहीं स्कूल प्रबंधन ने अभिभावकों से मोटी रकम वसूलने के लिए अलग-अलग कक्षा के अनुसार यूनिफार्म भी अलग कर दी है। यूनिफार्म की डिजाइन के बारे में भी बाहर के किसी वेंडर को जानकारी नहीं दी ताकि अभिभावकों को मजबूरन कैंपस के अंदर से ही यूनिफार्म लेनी पड़े।

    कोई पांच तो कोई आठ हजार में स्कूल के अंदर से बेच रहा किताबें

    निजी स्कूलों हर बार की तरह इस बार भी शिक्षा निदेशालय के आदेश की अवहेलना करते हुए स्कूल कैंपस के अंदर से बढ़े हुए दामों पर निजी प्रकाशकों की किताबें, कापी और स्टेशनरी का समान दे रहे हैं। प्री-प्राइमरी, केजी में महज तीन किताबें, आर्ट क्राफ्ट का सामान, स्टेशनरी और नोट बुक पांच से छह हजार की पड़ रही है।

    अशोक विहार स्थित महाराजा अग्रसेन स्कूल में कैंपस के अंदर से प्री-स्कूल की कापी-किताब व स्टेशनरी का सेट 4940 रुपये, पहली कक्षा की किताब, कापी व स्टेशनरी का सेट 6345 रुपये, पांचवीं कक्षा का 8239 रुपये, सातवीं का 8311 रुपये, आठवीं का 8935 रुपये में बेचा जा रहा है।

    इसमें किताबों पर कवर चढ़ाने के रुपये अलग से लिए जा रहे हैं। वसंत कुंज स्थित मैसोनिक पब्लिक स्कूल में आठवीं की कापी-किताब और स्टेशनरी का सेट 5598 रुपये का पड़ रहा है।

    करीब हर निजी स्कूल का यही हाल

    जनकपुरी स्थित सुमेरमल जैन पब्लिक स्कूल में पांचवीं की कॉपी-किताब और स्टेशनरी का सेट 4931 रुपये का बेचा जा रहा है। श्रीजन स्कूल में आठवीं की कापी-किताब व स्टेशनरी का सेट आठ हजार में बेचा जा रहा है। लगभग हर निजी स्कूल का यही हाल है।

    राजधानी के ये निजी स्कूल राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को धता बता एनसीईआरटी की किताबों से ज्यादा निजी प्रकाशकों की किताबों को स्कूल में पढ़वा रहे हैं। स्कूलों में बेचे जा रहे सेट में अधिकतर किताबें निजी प्रकाशकों की ही हैं।

    इक्का-दुक्का किताब ही एनसीईआरटी की ली गई हैं। उसमें भी कहा गय है कि सेट में लिखी एनसीईआरटी की किताबें अभिभावकों को स्वयं ही बाहर से खरदनी पड़ेगी। कुछ स्कूलों में पूरा सेट लेने पर छूट जैसे आफर देकर अभिभावकों को लुभाने की भी कोशिश हो रही है।

    एनसीईआरटी की जो किताबें 30 रुपये से लेकर 100 रुपये तक मिलती है, उसी विषय की निजी प्रकाश की किताब की कीमत 300 से 700 रुपये तक में बेची जा रही है।

    यूनिफॉर्म को बार-बार बदला जाता 

    स्कूलों में सिर्फ लूट का ये काम कापी-किताब और स्टेशनरी तक ही सीमित नहीं रखा है। बहुत से स्कूलों ने अब यूनिफार्म के नाम पर लूटने के अलग-अलग तरीके ढूंढे़ हैं। कुछ स्कूलों ने अलग-अलग कक्षाओं के लिए यूनिफार्म ही अलग कर रखी है ताकि बच्चे को कक्षा बदलते ही यूनिफार्म भी बदलनी पड़े।

    यूनिफॉर्म के लिए भी निदेशालय ने स्कूलों को आदेश दिया है कि वो पांच वेंडरों की सूची चस्पा करें जहां से अभिभावक यूनिफॉर्म खरीद सकें। लेकिन स्कूलों ने कैंपस के अंदर ही विक्रेता बैठाए हुए हैं और यूनिफॉर्म का डिजाइन भी बदल दिया और बाहर के विक्रेताओं को डिजाइन के बारे में जानकारी ही नहीं दी। मजबूरन अभिभावकों को स्कूल के अंदर बैठे विक्रेता से महंगे दाम पर यूनिफार्म खरीदनी पड़ रही है।

    शिक्षा निदेशालय को पता है कि एक अप्रैल से नया सत्र शुरु हो रहा है और स्कूल फरवरी-मार्च में परिणाम जारी करने के दौरान ही किताब स्कूल के अंदर से बेचने लगते हैं तो ये आदेश इतनी देरी से क्यों निकाला। अब इसका कोई औचित्य ही नहीं है। 90 प्रतिशत अभिभावक तो किताबें खरीद चुके हैं। 50 प्रतिशत से अधिक स्कूल ऐसे हैं जो अभी भी पांच विक्रेताओं की कोई सूची स्कूलों ने नहीं दी है। जहां सूची दी है वहां नंबर बंद आते या पता गलत होता। स्कूल एनसीईआरटी को अपनी किताबों की जरूरत नहीं भेजते हैं, वहीं एनसीईआरटी जब तक बाजार में किताबें लेकर आता है तब तक स्कूल निजी प्रकाशकों की किताबें दे चुके होते हैं। निजी प्रकाशकों और स्कूलों के बीच कापी-किताब, स्टेशनरी व यूनिफार्म को लेकर कमीशन का खेल चलता है, लेकिन अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं करते हैं।- अपराजिता गौतम, अध्यक्ष, दिल्ली अभिभावक संघ

    यदि स्कूल कॉपी-किताब या यूनिफॉर्म के लिए विक्रेताओं के बारे में सूची चस्पा नहीं करते हैं तो अभिभावक शिक्षा निदेशालय की ओर से नियुक्त नोडल अधिकारी से इस नंबर 9818154069 पर संपर्क कर शिकायत कर सकते हैं।

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