दिल्ली अब न तो दिलवालों की है और न ही दिलेर रही, मौत का तमाशा देखते रहे तमाशबीन
अमरजीत ने अस्पताल में दम तोड़ दिया। अगर समय रहते उन्हें उपचार मिलता, अगर पहले ही बीच-बचाव कर उन्हें चाकू के वार से बचा लिया गया होता तो शायद वह जिंदा होते।
नई दिल्ली [राकेश कुमार सिंह]। प्रगति मैदान, जहां से हर समय गाड़ियां गुजरती हैं। लोगों की आवाजाही बंद नहीं होती है, उसी प्रगति मैदान के सामने चाकू से सीने पर वार सहने के बाद अमरजीत सड़क पर लहूलुहान होकर तड़प रहे थे। करीब सौ मीटर दूर उनकी पत्नी मंजू चाकू के हमले से खून से लथपथ होने के बावजूद दो पॉकेटमारों से जूझ रही थीं, लेकिन दिल्ली आम दिनों की तरह काफी देर तक तमाशबीन बनी रही। पहले कोई बचाने के लिए आगे नहीं बढ़ा। आखिरकार जब तमाशबीनों की इंसानियत जागी और वे आगे बढ़े तब तक काफी देर हो चुकी थी।
दिल्ली की भयावह तस्वीर
अमरजीत ने अस्पताल में दम तोड़ दिया। अगर समय रहते उन्हें उपचार मिलता, अगर पहले ही बीच-बचाव कर उन्हें चाकू के वार से बचा लिया गया होता तो शायद वह जिंदा होते। यह बेदिल होती दिल्ली की एक और भयावह तस्वीर है, जिस पर अब लोग अफसोस जता रहे हैं। चिंतित नजर आ रहे हैं, क्योंकि इस तरह का हादसा किसी के भी साथ हो सकता है।
परिवार के साथ घूमने निकले थे अमरजीत
अमरजीत भी आम दिल्ली वाले थे। वह भी अपने सपने पूरे करने के लिए ख्वाहिशों के इस शहर में आए थे। वह इस आशा के साथ यहां आए थे कि दिल्ली उनका साथ देगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने अपने छोटे से परिवार को छोटी-छोटी खुशियां देने की कोशिश की। परिवार को खुशियां देने के लिए ही तो वह आम दिल्ली वालों की तरह बाहरी दिल्ली से परिवार के साथ घूमने निकले थे। शायद उन्हें यह मालूम नहीं था कि भीड़ से भरी इस दिल्ली में हर शख्स अकेला है। कोई मदद को आगे नहीं आता है।
तमाशा देखती रही दिल्ली
अमरजीत की पत्नी मंजू ने चंडी व रानी लक्ष्मीबाई के बारे में पढ़ा था और अपने जीवन में रचा-बसा लिया था, लेकिन उन्होंने ख्याला में अंकित की सरेराह गला काटकर हत्या या संत नगर में प्रेमी द्वारा प्रेमिका को सरेआम चाकू से गोदकर हत्या कर देने के मामले को नहीं पढ़ा था, जिसमें ऐसे ही लोग तमाशबीन बने थे, जैसे कि कोई फिल्म चल रही हो। इसलिए वे घटना की वीडियो रिकार्डिंग भी कर रहे थे।
खौफनाक यादें जो जीवनभर पीछा नहीं छोड़ती हैं
मंजू पति से जिद कर दिल्ली घूमने निकली थीं। जैसा सोचा था, जैसा सुना था, वह दिलवालों की दिल्ली देखने निकली थीं, लेकिन इस दिल्ली दर्शन में उनका सब कुछ उजड़ गया। दिल्ली अब न तो दिलवालों की है और न ही दिलेर ही रही। वह अब देती है तो ऐसी खौफनाक यादें जो जीवनभर पीछा नहीं छोड़ती हैं।
बसों में कब तैनात होंगे मार्शल
बसों में अक्सर छेड़छाड़ व लूटपाट की घटनाएं होती हैं। लोगों में इतना डर समाया हुआ है कि इसका विरोध भी नहीं करते हैं। लोग यह भी नहीं सोचते हैं कि अगली बार उनके साथ भी ऐसा हो सकता है और उस समय उनकी कोई मदद नहीं करेगा। दिल्ली सरकार भी हाथ पर हाथ धरे बैठी है। आम आदमी पार्टी के घोषणा पत्र में इस बात का उल्लेख किया गया था कि डीटीसी बसों में होमगार्ड और मार्शल तैनात किए जाएंगे, लेकिन सरकार बनने के बाद यह वादा पूरा नहीं हुआ। यदि बस में मार्शल तैनात होते तो ऐसी घटना शायद नहीं होती।
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