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    डिप्टी मेयर की मौत के 18 साल बाद भी नहीं बदले हालात, दिल्ली में हर साल 2000 लोगों को बंदर बना रहे शिकार

    Updated: Wed, 01 Oct 2025 05:30 AM (IST)

    दिल्ली में बंदरों का आतंक बढ़ता ही जा रहा है। पूर्वी दिल्ली में एक उप महापौर की बंदर के हमले से मौत हो गई जिसके बाद प्रशासन हरकत में आया। नगर निगम बंदरों को पकड़कर असोला भाटी माइंस में छोड़ता है लेकिन समस्या का समाधान नहीं हो रहा है। बंदरों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए बंध्याकरण का कार्य भी रुका हुआ है जिसके कारण लोग परेशान हैं।

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    दिल्ली में हर साल 2000 लोग बंदरों के हमले का शिकार बनते हैं। जागरण

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। उप महापौर सुरेंद्र सिंह बाजवा पूर्वी दिल्ली में विवेक विहार स्थित अपने आवास की बालकनी में बैठे थे, तब ही अचानक बंदरों ने हमला कर दिया तो वह बालकनी से गिर गए, जिससे उनकी मौके पर ही मृत्यु हो गई।

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    यह दिल्ली में पहली बड़ी घटना थी जब किसी संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति की बंदर के हमले के कारण जान चली हो। पूरे प्रशासन में हडकंप मच गया कि आखिर अब बंदरों की समस्या का क्या करें।

    फिर हाईकोर्ट के आदेश के बाद यह जिम्मेदारी नगर निगम को दी गई कि वह बंदरों को पकड़ेगा और उसे दक्षिणी दिल्ली के असोला भाटी माइंस स्थित वन क्षेत्र में छोड़ेगा।

    वहीं, वन विभाग यह इंतजाम करेगा कि बंदर फिर रिहायशी क्षेत्र में न जाए, लेकिन आलम यह है कि हर साल एमसीडी और एनडीएमसी दो हजार बंदरों असोला भाटी माइंस में छोड़कर आते हैं लेकिन रिहायशी क्षेत्रों में बंदरों के हमले की घटनाएं जस की तस हैं।

    2007 में जो स्थिति थी, आज भी वही है और बंदरों की समस्या का कोई समाधान अभी तक नहीं निकला है, जबकि एक अनुमान के अनुसार दिल्ली में हर साल 2000 के करीब लोगों को बंदर हमला कर शिकार बनाते हैं।

    समस्या का समाधान न होने की वजह से न केवल लुटियंस दिल्ली के निवासी परेशान रहते हैं बल्कि यहां पर बड़ी संख्या में मौजूद सरकारी दफ्तरों पर बंदरों के होने की वजह से लोगों में भय का माहौल रहता है।

    इतना ही नहीं बंदरों के हमले का भी शिकार होना पड़ता है। सोमवार को भी शास्त्री भवन में केंद्रीय सचिवालय सेवा (सीएसएस) के अधिकारी दीपक खेड़ा पर बंदर ने हमला किया तो वह सातवीं मंजिल से गिर गए और अब उनका इलाज चल रहा है।

    उल्लेखनीय है कि 2007 से पूर्व बंदरों को दिल्ली के रजोकरी स्थित वन क्षेत्र के एक बड़े जाल में पकड़कर रखा जाता था। लेकिन बाद में बंदरों के बीच झगड़े और बंदरों की मृत्यु की वजह से बंदरों को हाई कोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली के बंदरों को दूसरे राज्यों में छोड़ने की बात कही गई।

    जब दिल्ली सरकार ने इस संबंध में दूसरे राज्यों को पत्र लिखा तो विभिन्न राज्यों ने बंदरों की स्वास्थ्य जांच के बाद ही लेने की हामी भर दी। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान (बरेली) ने दिल्ली के बंदरों की जांच की तो उनमें टीबी पाया गया।

    इसकी वजह से दूसरे राज्यों ने इन बंदरों को लेने से इनकार कर दिया। इसके बाद हाईकोर्ट के आदेश पर ही असोला भाटी माइंस में बंदरों को छोड़ने की बात तय हुई थी।

    अभी तक शुरू नहीं हो पाया है बंध्याकरण का कार्य

    राजधानी दिल्ली में बंदरों का पकड़कर असोला भाटी माइंस में छोड़ा जाता है लेकिन बंदरों की आबादी में बढोत्तरी न हो इसके लिए अभी तक दिल्ली में बंदरों का बंध्याकरण ही नहीं शुरू हो पाया है।

    जबकि बंदरों की आबादी इतनी बढ़ गई है कि पहले बंदर केवल वन क्षेत्र के आसपास के इलाकों में होते थे आज बंदर दिल्ली के दूरदराज के इलाकों में भी है। जबकि हाई कोर्ट के आदेश पर दिल्ली सरकार के वन्य जीव विभाग को बंदरों का बंध्याकरण करने के आदेश थे।

    इसके लिए वन्य जीव विभाग ने निविदाएं भी आमंत्रित की थीं, लेकिन स्वयंसेवी संगठनों के अपरोक्ष दवाब के कारण कोई भी एजेंसी आगे नहीं आई।

    2018 में वन विभाग ने तीसरी बार सात करोड़ की राशि से 25 हजार बंदरों का बंध्याकरण के लिए निविदा आमंत्रित की लेकिन कोई भी एजेंसी आगे नहीं आई।

    2019 फिर केंद्र सरकार ने 5.43 करोड़ का फंड दिल्ली के वन विभाग को दिया, लेकिन वन विभाग इस बार भी बंदरों के बंध्याकरण के कार्य को शुरू नहीं कर पाया। इसके बाद 2021 में वन विभाग ने बंदरों के बंध्याकरण की योजना पर काम करना ही बंद कर दिया।

    अधिकारी बताते हैं कि पशु अधिकार कार्यकर्ताओं के दवाब में यह काम वन विभाग नहीं कर पाया। एजेंसियों को अपरोक्ष रूप से मिली धमकियों की वजह से कोई एजेंसी इस कार्य के लिए आगे नहीं आई।

     41 स्थानों पर लंगूर के कटआउट नहीं है प्रभावी

    एनडीएमसी इलाके में सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट इलाका बंदरों की समस्या से प्रभावित है। इतना ही नहीं पीएम आवास और राष्ट्रपति भवन के आस-पास भी बंदर रहते हैं। इसके अलावा एनडीएमसी के 50 से अधिक इलाके इस समस्या से प्रभावित है।

    इसके लिए एनडीएमसी ने 41 स्थानों पर लंगूर के कटआउट लगाए थे लेकिन वह अब प्रभावी नहीं है। शुरुआत में बंदरों को इनसे डर लगता लेकिन अब बंदरों को इससे कोई असर नहीं पड़ता है।

    कुछ दिन के लिए एनडीएमसी ने लंगूर की आवाज निकालने वाला व्यक्ति रखा था लेकिन सामाजिक दवाब के कारण इसे बंद करना पड़ा।

    मंदिर मार्ग से लेकर एनडीएमसी इलाके में बंदरों से बहुत समस्या है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों पर हमले होते रहते हैं लेकिन शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं होती है। कहने को बंदरों को खाना खिलाने पर जुर्माना है लेकिन एनडीएमसी इलाके में आसानी से बंदरों के लिए फल आदि बिक्री करने वाले लोग आसानी से दिख जाते है। घरों में बंदर घुस जाते हैं लोगों के कीमती सामान तक ले जाते हैं।

    - प्रीतम धारीवाल, आरडब्ल्यूए अध्यक्ष, गोल मार्केट

    बंदरों की समस्या का एक ही समाधान है कि लोग बंदरों को इधर-उधर खाना खिलाना बंद करें। साथ ही सरकार को भी चाहिए कि वह बंदरों के बंध्याकरण करके इनकी संख्या को कम करें। क्योंकि कई बार बंदरों को असोला भाटी माइंस में छोड़ दिया जाता है लेकिन वह वहां से फिर वापस रिहायशी क्षेत्र में आ जाते हैं।

    - डाॅ. वीके सिंह, पूर्व निदेशक, पशु चिकित्सा सेवाएं, एमसीडी

    कौन-कौन से इलाके हैं बंदरों की समस्या से ज्यादा प्रभावित

    संजय वन, सुखदेव विहार, कमला नेहरु रिज, दिल्ली विश्वविद्यालय, माडल टाउन, दरियागंज, आईटीओ, एनडीएमसी का पूरा इलाका, उत्तम नगर, दिल्ली कैंट, भजनपुरा, शिव विहार, मयूर विहार, बुराड़ी, दरियागंज, राजेंद्र नगर, छतरपुर, फतेहपुर बेरी, पूसा रोड, नारायणा आदि

    क्या करते हैं दिल्ली के स्थानीय निकाय

    • 1800 रुपये प्रति बंदर पकड़ने के निजी संस्थाओं को दिए जाते हैं।
    • एक ठेकेदार एनडीएमसी ने तो एमसीडी ने 10 अलग-अलग एजेंसियों को इस काम के लिए रख रखा है।
    • 41 स्थानों पर एनडीएमसी ने लंगूर के कटआउट लगाए हुए हैं।
    • 30 स्थानों पर एनडीएमसी ने दो-दो कर्मचारियों की तैनाती बंदर भगाने के लिए कर रखी है।
    • 2024 में एनडीएमसी ने 1225 बंदरों को पकड़ा था।
    • 2025 में अब तक एनडीएमसी इलाके में 402 बंदर पकड़कर असोल भाटी माइंस वन क्षेत्र में छोड़ दिया गया।

    एमसीडी ने कब कितने बंदर पकड़े

    • 2022-23 : 3005
    • 2023-24 : 2063
    • 2024-25 : 1604
    • 2025-26 : 489 (जून तक)

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