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    सड़क दुर्घटना के पीड़ितों को मुआवजा मिलने में होगी दिक्कतें, MLC बनाने में गलती करना पड़ेगा भारी

    एक अध्ययन के अनुसार सड़क दुर्घटना या आपराधिक घटना में पीड़ितों के लिए एमएलसी तैयार करने में हुई गलतियां न्याय और मुआवजे में बाधा बन सकती हैं। एम्स ट्रॉमा सेंटर के विशेषज्ञों ने एमएलसी में सुधार के लिए प्रशिक्षण और राष्ट्रीय स्तर पर गाइडलाइन की सिफारिश की है ताकि पीड़ितों को सही कानूनी सहायता मिल सके। एमएलसी तैयार करने में गलती पीड़ितों व स्वजनों पर पड़ती है भारी

    By Ranbijay Kumar Singh Edited By: Rajesh KumarUpdated: Sun, 04 May 2025 07:14 PM (IST)
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    एमएलसी तैयार करने में गलती पीड़ितों व स्वजनों पर पड़ती है भारी। फाइल फोटो

    राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। सड़क दुर्घटना हो या कोई आपराधिक घटना, पीड़ित को न्याय और उचित मुआवजा दिलाने के लिए मेडिको लीगल सर्टिफिकेट (एमएलसी) सही तरीके से तैयार करना जरूरी है। एमएलसी में अगर जरूरी जानकारी सही तरीके से नहीं दी गई तो कानूनी पेचीदगियां बढ़ सकती हैं। पीड़ित परिवार और उनके रिश्तेदारों के लिए भी यह मुश्किल साबित हो सकता है।

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    एक गलती पर कोर्ट के चक्कर लगाएंगे डॉक्टर

    एम्स ट्रॉमा सेंटर के फोरेंसिक विभाग के डॉक्टरों द्वारा किए गए एक अध्ययन से यह बात सामने आई है। इस अध्ययन के अनुसार मारपीट, दुर्घटना और आपराधिक घटनाओं के पीड़ितों को इमरजेंसी में पहली बार देखने वाले डॉक्टर कई मामलों में एमएलसी तैयार करने में गलती कर देते हैं। इससे कानूनी पेचीदगियां बढ़ जाती हैं और डॉक्टरों को कोर्ट के चक्कर भी अधिक लगाने पड़ते हैं।

    एम्स ट्रॉमा सेंटर के फोरेंसिक विभाग का यह अध्ययन जर्नल ऑफ फोरेंसिक एंड लीगल मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन में फोरेंसिक विशेषज्ञ डॉक्टरों ने इमरजेंसी ड्यूटी पर तैनात डॉक्टरों को हर 15 दिन में एमएलसी तैयार करने का प्रशिक्षण देने और राष्ट्रीय स्तर पर एमएलसी लिखने की गाइडलाइन तैयार करने की सिफारिश की है, जिसके तहत एमएलसी लिखने का प्रोटोकॉल पूरे देश के अस्पतालों में एक जैसा हो सके।

    एम्स ट्रॉमा सेंटर के डॉक्टरों ने किया अध्ययन

    एम्स ट्रॉमा सेंटर के डॉक्टरों ने 400 मेडिको लीगल रिपोर्ट (एमएलआर) का अध्ययन किया। जिसमें से 232 मामले मारपीट के, 127 मामले सड़क दुर्घटना के, 11 मामले ऊंचाई से गिरने, 14 अज्ञात और 16 अन्य मामले थे। अन्य मामलों में सिलेंडर ब्लास्ट, फांसी और बिजली का झटका आदि से जुड़े मामले शामिल थे। 343 मामलों में एमएलसी में चोट का ब्योरा भरा गया।

    अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि मेडिको-लीगल केस (एमएलसी) चिकित्सा पद्धति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। कानूनी जटिलताओं से बचने के लिए एमएलसी में तथ्यों को सही ढंग से भरना जरूरी है। यह इसलिए भी जरूरी है ताकि पीड़ितों के परिजनों को प्रावधानों के अनुसार जरूरी लाभ मिल सके।

    एम्स ट्रॉमा सेंटर के फोरेंसिक विभाग के प्रोफेसर डॉ. संजीव लालवानी ने बताया कि देश के विभिन्न मेडिकल कॉलेज और अस्पतालों से रेजिडेंट डॉक्टर काम करने आते हैं। इन दिनों एमबीबीएस में किताबी ज्ञान पर ज्यादा और प्रैक्टिकल पर कम जोर दिया जाता है।

    निजी अस्पतालों में एमएलसी भी नहीं बनाई जाती। इससे युवा डॉक्टर एमएलसी सही तरीके से बनाना नहीं सीख पाते। एमएलसी में चोट की गंभीरता के आधार पर एफआईआर की धाराएं तय होती हैं। इसके आधार पर सजा का प्रावधान भी अलग-अलग होता है। इसलिए एमएलसी में गलत तथ्य कानूनी प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए एमएलसी को तथ्यात्मक रूप से सही तरीके से तैयार करने के लिए प्रशिक्षण पर ध्यान देना जरूरी है।

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