कबाड़ से तांबा चुनकर लगाई 'गोल्डन' दौड़, संघप्रिय की रफ्तार को रोक नहीं पाई आर्थिक चुनौतियां
गौतम ने बताया कि 12 वीं के बाद उन्होंने कुरियर कंपनी में नौकरी शुरू की। जो रुपये मिला करते थे उससे परिवार के पालन पोषण के लिए मां को दे दिया करता था। गौतम का परिवार मयूर विहार फेज-3 में रहता है।
नई दिल्ली [पुष्पेंद्र कुमार]। अगर कोई अपने हुनर को तराशने के लिए मन में दृढ निश्चय कर ले तो वह अपना गुरु स्वयं ही बन जाता है। किसी जमाने में इस बात को एकलव्य ने साबित कर दिखाया था। कुछ इसी तरह के कथन को दिल्ली के मयूर विहार फेज-3 निवासी संघप्रिय गौतम उर्फ गांधी ने भी सिद्ध कर दिखाया है। आइये मिलते हैं कबाड़ से तांबा चुनकर चुनौतियों को मात देने वाले गौतम से और सीखते हैं जीतने का हुनर..।
संघप्रिय (23 वर्ष ) का परिवार मयूर विहार फेज-3 स्थित जीडी कॉलोनी में रहता है। 2011 में पिता रामनाथ गौतम की मौत के बाद मां मधु पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई। लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ने से छोटी बहन कोमल की पढ़ाई छूट गई।
मोटर मैकेनिक के कारखाने में कबाड़ से तांबा बीनने जाते थे संघप्रिय
संघप्रिय गौतम घर के पास सरकारी स्कूल में 9वीं में पढ़ते थे। गौतम बताते हैं कि भाग मिल्खा भाग फिल्म देखकर 2013 में दौड़ के प्रति रुझान बढ़ा, लेकिन गरीबी आड़े आ रही थी। इतने पैसे नहीं थे कि पढ़ाई के साथ दौड़ सेंटर में अभ्यास कर सके। मोटर मैकेनिक के कारखाने में सुबह 4 बजे कबाड़ से तांबा बीनने के लिए गौतम जाया करते थे, लेकिन अंधेरा होने से कई बार बहुत कम तांबा मिल पाता था। वह तांबा बेचकर मिले रुपयों से शरीर को फिट रखने के लिए फल आदि खरीदकर खाते थे। अपनी मेहनत के बदौलत यमुनापार की सड़कों पर दौड़ते-दौड़ते कब स्टेडियम के रनिंग ट्रैक पर पहुंच गया पता नहीं चला।
लगन इतनी कि वर्ष 2017 जनवरी में छत्तीसगढ़ में आयोजित 51वीं नेशनल क्रॉस कंट्री चैंपियनशिप की 8 किमी की दौड़ में तीसरा स्थान हासिल कांस्य पदक अपने नाम किया। इसके बाद फरवरी 2017 में मेरठ में आयोजित 28वीं नॉर्थ जोन जूनियर एथलीट चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। गौतम का ओलंपिक में देश के लिए पदक हासिल करने का सपना हैं।
कम उम्र में ही कुरियर कंपनी में शुरू की नौकरी
गौतम ने बताया कि 12 वीं के बाद उन्होंने कुरियर कंपनी में नौकरी शुरू की। जो रुपये मिला करते थे, उससे परिवार के पालन पोषण के लिए मां को दे दिया करता था। कोरोना संकट में परिवार की काफी स्थिति खराब हो गई, इस कोरोना संकट के चलते मां और मेरी नौकरी छूट गई। ऐसे में परिवार को खाने के लाले पड़ गए। समय रहते स्थिति में सुधार हुआ तो फिर कुरियर का काम शुरू कर दिया।
परेशानी के दौर में दोस्त का मिला साथ
गौतम ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि जीवन में गरीबी के दौर में दोस्त ने उन दिनों काफी मदद की। दोस्त एक कुरियर कंपनी में काम किया करता था। रोजाना 30 ऑर्डर वो अपने कार्यालय से लेता था। इनमें से 10 मुझे बांटने के लिए दे देता था और इनसे जो रुपये मिलते थे वो मुझे मिल जाते थे।
माता मधु का कहना है कि बेटे संघप्रिय के ऊपर कम उम्र में ही काफी जिम्मेदारियां आ गई। ना ठीक से अपनी दौड़ का अभ्यास कर पा रहा और न ही ठीक से पढ़ाई कर पा रहा है।
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