Delhi News: अपने ही इलाज को तरसे दिल्ली के कई अस्पताल, डॉक्टर, स्टाफ और संसाधनों की कमी
दिल्ली नगर निगम के अस्पताल और डिस्पेंसरी खुद इलाज के लिए तरस रहे हैं। अस्पतालों की इमारतें क्षतिग्रस्त हैं कूड़े के ढेर लगे हैं और आवारा पशुओं का जमावड़ा है। मरम्मत के लिए मंजूर 117 करोड़ रुपये भी नाकाफी साबित हुए। बाड़ा हिंदू राव अस्पताल में टूटी खिड़कियां और कुत्तों का जमावड़ा है। डॉक्टर स्टाफ और संसाधनों की कमी है।

अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली के करीब तीन करोड़ लोगों के प्राथमिक स्वास्थ्य की जिम्मेदारी संभालने वाले दिल्ली नगर निगम के अस्पताल और डिस्पेंसरी खुद अपने इलाज के लिए तरस रहे हैं। हालात यह हैं कि निगम के अस्पतालों और डिस्पेंसरियों की बिल्डिंग, दरवाजे और खिड़कियां क्षतिग्रस्त हैं।
यही वजह है कि आए दिन बिल्डिंग के हिस्से और उपकरण गिरने की घटनाएं होती रहती हैं, वहीं अस्पतालों और डिस्पेंसरियों में बदइंतजामी का आलम है। जगह-जगह कूड़े और मलबे के ढेर लगे हैं और आवारा पशुओं की भरमार है।
दो साल पहले अस्पतालों की मरम्मत और संसाधन बढ़ाने के लिए 117 करोड़ रुपये मंजूर किए गए थे, लेकिन वह भी नाकाफी रहे, क्योंकि इससे सिर्फ शौचालय ब्लॉक और अस्पतालों के कुछ हिस्सों में ही सुधार हो सका। जबकि अभी भी कई ऐसे काम हैं, जिन पर काम होना बाकी है, क्योंकि अस्पतालों में कमरों के दरवाजे और खिड़कियां तक टूटी हुई हैं। हालांकि इस पर एमसीडी के प्रेस एवं सूचना विभाग से उसका पक्ष मांगा गया, लेकिन कोई जवाब नहीं आया।
अगर एमसीडी के सबसे बड़े अस्पताल बाड़ा हिंदू राव की बात करें तो यहां सर्जरी वार्ड की पहचान टूटी खिड़कियां और कुत्तों का जमावड़ा बन गया है। अस्पताल परिसर में बेखौफ घूम रहे बंदरों के हमले का खतरा मरीजों के तीमारदारों को हमेशा बना रहता है।
कमोबेश यही स्थिति एमसीडी के श्रीमति गिरधरलाल समेत ज्यादातर स्वास्थ्य केंद्रों की है। ज्यादातर डॉक्टर, दवा, स्टाफ और संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। जगह-जगह गंदगी और मलबा पड़ा है। कई जगह इमारतों का भी बुरा हाल है। एमसीडी के दूसरे अस्पताल और डिस्पेंसरी भी इनसे कम बुरे हाल में नहीं हैं।
स्वामी दयानंद अस्पताल का भी यही हाल है। यह ओपीडी बिल्डिंग न सिर्फ गंदी है बल्कि जगह-जगह मकड़ी के जाले लगे हुए हैं। यहां पंखे भी काम नहीं कर रहे हैं।
20 लाख खर्च लेकिन हालत जस की तस
एमसीडी के अस्पताल फंड की कमी के कारण नहीं सुधर पा रहे हैं, लेकिन जहां फंड उपलब्ध है, वहां सिर्फ सतही मरम्मत का काम हो रहा है। एमसीडी के कस्तूरबा अस्पताल में एक पुराना बच्चों का वार्ड है। इसमें 2022 में करीब 20 लाख की राशि से मरम्मत का काम होना था, लेकिन वह भी ठीक से नहीं हुआ।
सीढ़ियों पर नए संगमरमर के पत्थर लगाए गए, लेकिन वे भी कई जगह से टूट गए हैं। खिड़कियों की मरम्मत के नाम पर टूटी और दीमक लगी खिड़कियों को पेंट से ढक दिया गया। इतना ही नहीं, बिजली के स्विच बोर्ड भी ठीक नहीं किए गए।
इतना ही नहीं, अस्पताल में कई जगह हालत खराब है। गंदगी के साथ-साथ बिल्डिंग में जगह-जगह प्लास्टर गिरने की घटनाएं भी हो रही हैं।
फंड की कमी से नहीं बन पा रही इमारत
एमसीडी में फंड की कमी के कारण नए अस्पताल और उनकी बिल्डिंग बनाने में दिक्कत आ रही है। निगम की ऐसी ही योजना पूर्वी दिल्ली में एमसीडी स्वामी दयानंद अस्पताल के नए ब्लॉक में सात मंजिला बिल्डिंग बनाने की थी।
इसमें 30 बेड की व्यवस्था के अलावा एक्स-रे, ब्लॉक बैंक, आईसीयू, ऑपरेशन थियेटर जैसी सुविधाएं बढ़ाई जानी थीं, लेकिन 60 करोड़ रुपये के फंड की कमी के कारण यह बिल्डिंग नहीं बन पा रही है। जबकि अस्पताल में अभी भी कई सुविधाओं का अभाव है। रेडियोलॉजी की ज्यादातर मशीनें खराब हैं।
एक नजर
- प्रमुख अस्पताल : हिंदू राव, कस्तूरबा गांधी, स्वामी दयानंद, माता गुजरी, बालकराम, राजन बाबू, जीएलएम और महर्षि वाल्मीकि
- कालोनी अस्पताल: दो पूर्णिमा सेठी और लाजपत नगर
डिस्पेंसरी
- आयुर्वेदिक औषधालय- 31
- होम्योपैथिक औषधालय: 23
अन्य स्वास्थ्य केंद्र
- चेस्ट क्लिनिक- नौ
- मातृ-शिशु देखभाल केंद्र- 104
- प्रसूति केंद्र- 16
- पॉलीक्लिनिक- 11
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