प्रदूषण पर नियंत्रण करने वालों की पारदर्शिता भी हो रही प्रदूषित
2016 से 2021 तक पांच सालों को आधार बनाकर सीएसई ने देशभर से 29 राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (एसपीसीबी) और छह प्रदूषण नियंत्रण समितियों (पीसीसी) की स्थिति का आकलन किया है। केवल 17 बोर्डों और समितियों ने ही 50 फीसद या उससे अधिक अंक प्राप्त किए हैं।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। इसे विडंबना कहें या कुछ और, लेकिन आबोहवा को साफ रखने का जिम्मा संभालने वाले प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों और समितियों की पारदर्शिता भी प्रदूषित होती नजर आ रही है। आलम यह है कि इनकी ओर से आंकड़े और सूचनाएं साझा करने से खासा परहेज किया जाता है। सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) की नई रिपोर्ट 'रेटिंग आफ पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड्स आन पब्लिक डिस्कलोजर' में इस मामले में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।
2016 से 2021 तक पांच सालों को आधार बनाकर सीएसई ने देशभर से 29 राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (एसपीसीबी) और छह प्रदूषण नियंत्रण समितियों (पीसीसी) की स्थिति का आकलन किया है। केवल 17 बोर्डों और समितियों ने ही 50 फीसद या उससे अधिक अंक प्राप्त किए हैं। ये सभी ओडिशा, तेलंगाना, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, बंगाल, गोवा, कर्नाटक, हरियाणा, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, केरल, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, पंजाब, आंध्र प्रदेश और राजस्थान से हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड व चंडीगढ़ सीएसई की रैंकिंग में टाप 20 में भी नहीं हैं।
वहीं, दिल्ली 15वें नंबर पर है। केवल 12 राज्यों ने अपनी नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट वेबसाइट पर साझा की है। गुजरात, मध्य प्रदेश, सिक्किम, त्रिपुरा और बंगाल ने वर्ष 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट साझा की है। छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु राज्यों ने वर्ष 2018-19 की वार्षिक रिपोर्ट साझा की है (जिसे 2020 में कोविड-19 स्थिति को देखते हुए नवीनतम कहा जा सकता है)।
असम, अरुणाचल प्रदेश, बिहार, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, मणिपुर, अंडमान और निकोबार, चंडीगढ़, दमन और दीव, दादरा और नगर हवेली, पुडुचेरी और नगालैंड ने एसपीसीबी / पीसीसी द्वारा अपनी वार्षिक रिपोर्ट साझा करने में कोई पहल नहीं की गई।
सीएसई की रिपोर्ट के अनुसार, केवल पांच बोर्ड / समितियों -दिल्ली, गोवा, हरियाणा, त्रिपुरा और उत्तराखंड ने अपनी वेबसाइट पर बोर्ड की बैठकों के मिनट्स साझा किए हैं। सिर्फ पांच एसपीसीबी- हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के पीसीबी ने वार्षिक रिपोर्ट में बोर्डों द्वारा किए गए निरीक्षण की जानकारी साझा की है। केवल नौ एसपीसीबी/पीसीसी ने जनसुनवाई पर विस्तृत जानकारी प्रदान की है, 14 ने कोई जानकारी नहीं दी।
टाप-10 प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड / समितियां और उनके अंकबोर्ड या समितियां प्राप्तांक
ओडिशा एसपीसीबी 67.01.
तेलंगाना एसपीसीबी 67.02.
तमिलनाडु पीसीबी 65.53.
मध्य प्रदेश पीसीबी 64.04.
बंगाल पीसीबी 62.05.
गोवा एसपीसीबी 60.66.
कर्नाटक एसपीसीबी 60.07.
हरियाणा एसपीसीबी 59.98.
छत्तीसगढ़ एन्वायरमेंट कंजर्वेशन बोर्ड 59.58.
हिमाचल प्रदेश एसपीसीबी 59.59.
जम्मू-कश्मीर पीसीबी 56.510.
केरल एसपीसीबी 56.311.
उत्तराखंड पीसीबी 53.512.
पंजाब पीसीबी 53.015.
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति 49.522.
बिहार एसपीसीबी 40.523.
उत्तर प्रदेश पीसीबी 38.524.
झारखंड एसपीसीबी 33.027.
चंडीगढ पीसीबी 15.8
इन मानकों के आधार पर तय की गई रैंकिंग
1. वेबसाइट है या नहीं
2. लैब, इंफ्रास्ट्रक्चर और मान्यता
3. क्षेत्रीय कार्यालय का पता और शीर्ष अधिकारी का नंबर
4. निर्देश, कारण बताओ नोटिस, क्लोजर नोटिस
5. नवीनतम प्रकाशन6. उपेक्षित शहरों या जिलों के लिए एक्शन प्लान
7. नदियों के प्रदूषित हिस्सों के लिए एक्शन प्लान8. आनलाइन कान्टीन्यूएशन एमिशन मानिट¨रग सिस्टम9. बायोमेडिकल कचरे की जानकारी10. प्लास्टिक कचरे की जानकारी11. ई कचरे की जानकारी12. नगर निगम के ठोस कचरे की जानकारी13. खतरनाक कचरे की जानकारी14. आरटीआइ की जानकारी15. वार्षिक रिपोर्ट की उपलब्धता16. वार्षिक रिपोर्ट में अहम मुद्दों की जानकारी17. वार्षिक रिपोर्ट में निरीक्षणों की जानकारी18. वार्षिक रिपोर्ट में मैनपावर की जानकारी19. वार्षिक रिपोर्ट में वित्त एवं लेखा प्रतिवेदन की जानकारी20. वार्षिक रिपोर्ट में निर्देशों, कारण बताओ और क्लोजर नोटिस की जानकारी
फाइलों तक ही सिमटा है डाटा
श्रेया वर्मासेंटर फार साइंस एंड एन्वायरमेंट की कार्यक्रम अधिकारी श्रेया वर्मा का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश है कि वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण से जुड़ी जानकारी और इसकी रोकथाम के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी पब्लिक डोमेन में साझा की जाए। लेकिन, व्यवहार में ऐसा नहीं होता। शासन और कामकाज से संबंधित डाटा फाइलों तक सिमटा रहता है। कामकाज की जानकारी, प्रदूषणकारी उद्योगों के खिलाफ बोर्ड द्वारा की गई कार्रवाई, नई परियोजनाओं पर जनसुनवाई डाटा तो शायद ही कभी मिल पाता है या यूं कहें कि वेबसाइटों पर पहुंचना मुश्किल होता है।