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    महात्मा गांधी ने भारत भ्रमण के दौरान देश के युवाओं को दिखाई स्वावलंबन की राह

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Sat, 02 Oct 2021 10:54 AM (IST)

    दक्षिण अफ्रीका से भारत आने के बाद महात्मा गांधी ने भारत भ्रमण के दौरान देशवासियों खासकर युवाओं में भयरहित होकर अंग्रेजों के अत्याचार का सामना करने का अद्भुत साहस भरा। आज जब हम स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं।

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    गांधी के विचारों और जीवन से स्वावलंबन की बड़ी सीख ली जा सकती हैं। आज गांधी जयंती पर विशेष...

    नई दिल्ली, अरुण श्रीवास्तव। दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के बाद गांधी जी को यह महसूस हुआ कि स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने से पहले उनके लिए समूचे देश को गहराई से जानना-समझना जरूरी है। इससे वह देश के लोगों से सीधे जुड़ सकते हैं। उनकी इस सोच और इस दिशा में लगातार किए गए सक्रिय प्रयासों ने ही आगे चलकर उन्हें न केवल भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का सर्वप्रमुख नायक बना दिया, बल्कि वे जन-जन के नेता बन गए। उन्होंने अपने जीवन, कर्म और विचारों से सभी को संदेश दिया।

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    भारत के युवा हमेशा महात्मा गांधी के चिंतन के केंद्र में होते थे। यही कारण था कि जब देश भ्रमण के क्रम में किसी स्थान पर जाते थे, तो लोगों खासकर युवाओं के भीतर अपनी बातों से अद्भुत साहस भरने का काम करते थे, ताकि वे भयरहित होकर अंग्रेजों के अत्याचारों का सामना कर सकें। वे युवाओं से रचनात्मक सहयोग की अपेक्षा करते थे। उनका मानना था कि युवा अपनी ऊर्जा को सही दिशा में लगाएं, ताकि समाज और देश को उसका समुचित लाभ मिले।

    मानवता और देश के लिए संघर्ष : गांधी जी का पूरा जीवन एक तरह से अपने देश के लिए समप्रित रहा। दक्षिण अफ्रीका प्रवास के दौरान शासक अंग्रेजों द्वारा अश्वेतों पर होने वाले अत्याचार से दुखी होकर उनके अधिकारों की लड़ाई लड़ने का निश्चय कर लिया था। जब वे भारत आये और आजादी के आंदोलन से जुड़ने का निश्चय किया, तो उनके समक्ष अपने व्यक्तिगत जीवन को आगे बढ़ाने के बजाय देश को आजाद कराने का बड़ा लक्ष्य था। विदेशी शासन उन्हें चैन नहीं लेने दे रहा था। देशवासियों पर अंग्रेजों का अत्याचार उन्हें गहरी पीड़ा दे रहा था। संभवत: इस पीड़ा की वजह से उन्होंने तय कर लिया कि वे अपने देश की सेवा में जीवन लगा देंगे। यह हम सभी के लिए सीख हैं कि हमें सिर्फ अपनी तरक्की के बजाय अपने देश को समृद्धि की राह पर आगे बढ़ाने को साथ-साथ दूसरे लोगों के जीवन स्तर को भी ऊपर उठाने पर ध्यान रखने के बारे में सोचने और करने का प्रयास करना चाहिए।

    कर्म से संदेश : उनका जीवन अपने आप में खुली किताब था। उनकी आवश्यकताएं बेहद सीमित थीं। उन्होंने बहुत कम में गुजारा करना सीख लिया था। देश और दुनिया में लगी उनकी तस्वीरों, मूर्तियों में हम सबने देखा है कि कैसे एक ही धोती को वे अपने लिए पर्याप्त मानते थे। इसीलिए तो उन्हें फकीर भी कहा जाता था। उन्हें कभी इससे अधिक की लालसा नहीं हुई। वे अपने सभी काम खुद करना पसंद करते थे और दूसरों से भी यही अपेक्षा करते थे, चाहे साफ-सफाई की बात हो या फिर अपने कपड़े के लिए सूत कातने की। जो लोग गांधी जी के जीवन से प्रेरणा लेते हुए इस सीख को अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करते हैं, संभवत: उन्हें पैसे, पद, ताकत की लालसा नहीं होती। वे अपने जीवन से संतुष्ट होते हैं।

    अहिंसा और सत्यनिष्ठा की सीख : अहिंसा और सत्यनिष्ठा गांधी जी के जीवन में उनके सबसे बड़े अस्त्र साबित हुए थे। यही कारण था कि अंग्रेजी शासन के तमाम अत्याचारों के बावजूद वे न केवल धैर्य के साथ उसका सामना करते थे। चाहे अंग्रेजों द्वारा कितना भी उकसाने का प्रयास किया जाए, वे कभी भी हिंसा से उसका जवाब देने के पक्ष में नहीं रहे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण असहयोग आंदोलन है, जिसे उन्होंने गोरखपुर के चौरीचौरा में हिंसक हो जाने पर एक झटके में स्थगित करने का निर्णय किया था। उस समय आंदोलन अपने चरम पर था, जिससे अंग्रेजी सत्ता बौखला गई थी। लेकिन गांधी जी को आंदोलन रोकना मंजूर था, हिंसा कदापि नहीं। महात्मा गांधी की एक और बड़ी विशेषता सत्यनिष्ठ होना था। वे कभी सत्य से पीछे नहीं हटते थे, चाहे इसके लिए उन्हें कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े।

    महात्मा गांधी के सबक

    • महात्मा गांधी का जीवन हम सबके लिए प्रेरणा है
    • देश के युवा उनसे स्वाभिमान के साथ स्वावलंबन की राह पर आगे बढ़ने की सीख ले सकते हैं
    • गांधी जी जो कहते थे, उसे पहले खुद भी करके दिखाते थे। उनका जीवन खुली किताब की तरह था
    • वे युवाओं से हमेशा रचनात्मक सहयोग की अपेक्षा करते थे। यही कारण था कि युवा उनके चिंतन के केंद्र में होते थे

    आत्मप्रशंसा से दूरी : गांधी जी जो दूसरों से अपेक्षा करते थे, उसका अपने जीवन में भी पालन करते थे। खुद भी आत्मप्रशंसा से दूर रहते थे और लोगों से भी यही अपेक्षा करते थे कि वे भी इससे दूरी बनाए रखें। उनका मानना था कि आत्मप्रशंसा से इंसान घमंड का शिकार हो सकता है। इसलिए इससे भरसक बचना चाहिए। इसके बजाय व्यक्ति को अपने कर्म पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और उसे पूरी निष्ठा से अंजाम देना चाहिए।

    स्वरोजगार पर बल : आज देश को आत्मनिर्भरता की राह पर आगे बढ़ाने के लिए लोगों को नौकरी के बजाय स्वरोजगार के बारे में सोचने पर बल दिया जा रहा है। देखा जाए तो गांधी जी अपने समय में ही इसके प्रबल पक्षधर थे। उनका मानना था कि गांवों के युवाओं को वहीं पर रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराने का प्रयास होना चाहिए। इस तरह के रोजगार कुटीर उद्योग के रूप में पैदा किए जा सकते हैं। इससे गांवों से पलायन भी नहीं होगा और गांव की प्रतिभा का लाभ उस इलाके को समृद्ध करने में मिल सकेगा।

    देखा जाए तो आज केंद्र सरकार भी इसी दिशा में सोच रही है और गांवों के युवाओं को कौशलयुक्त बनाकर वहीं पर रोजगारसक्षम बनाने का प्रयास कर रही है। कोरोना की वजह से पिछले साल लाकडाउन के कारण काम-धंधे बंद हो जाने के कारण महानगरों-नगरों से बड़ी संख्या में लोग अपने गांवों की ओर लौटे थे। अच्छी बात यह है कि उनमें से अधिकतर ने अब अपने घरों के आसपास ही काम तलाश लिया है या फिर अपने हुनर से नये अवसर तलाश लिए हैं। इतना ही नहीं, वे अब अपने साथ-साथ दूसरों को भी रोजगार उपलब्ध करा रहे हैं।