जानिए कोरोना वायरस से बचाव में डॉक्टर किस मास्क को बता रहे सबसे ज्यादा कारगर
यदि हालत स्थिर है और पहले से कोई बीमारी नहीं है तो घर में रहकर इलाज संभव है। अब अधिक संख्या में जांच हो रही है। इसलिए ज्यादा संक्रमित लोग पकड़ में आ रहे हैं। इसलिए कंटेनमेंट जोन भी बढ़ते जा रहे हैं। इस अभियान को जारी रखना होगा।

नई दिल्ली, [रणविजय सिंह]। दिल्ली में कोरोना का कहर अनियंत्रित हो गया है। इसे नियंत्रित करने के लिए अब तक के सारे उपाए बेअसर साबित होते दिख रहे हैं। मरीज और तीमारदार खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं। इस बीच अब यह बात भी सामने आ रही है कि संक्रमण से बचाव में कपड़े का मास्क ज्यादा असरदार नहीं है। यह 20 फीसद ही संक्रमण से बचाव कर सकता है। एन-95 मास्क का इस्तेमाल ही बचाव का बेहतर विकल्प है लेकिन समस्या यह भी है कि यदि हर व्यक्ति एन-95 मास्क पहनने लगे तो बाजार में इनके भी कम पड़ने की आंशका है। ऐसे में बचाव का क्या विकल्प हो सकता है। इन तमाम पहलुओं पर मौलाना आजाद मेडिकल कालेज की निदेशक प्रोफेसर डॉ. सुनीला गर्ग ने विस्तार से जानकारी दी।
सवाल- राजधानी में कोरोना की मौजूदा स्थिति को देखते हुए क्या करने की जरूरत है?
जवाब- अंतत: लोगों को कोरोना से बचाव के लिए नियमों का ही पालन करना पड़ेगा। मास्क का इस्तेमाल सबसे ज्यादा जरूरी है। संक्रमण खतरनाक स्तर तक बढ़ने के बावजूद अब भी कई लोग ठीक से मास्क नहीं पहन रहे हैं। एक राजनीतिक कार्यक्रम में वरिष्ठ नेता भी बगैर मास्क के दिखे। यह मौका लापरवाही करने का नहीं है। हाथ को भी नियमित सैनिटाइज करना जरूरी है। हमें कोरोना के अनुकूल नियमों का पालन करके सबके लिए उदाहरण प्रस्तुत करना है। तभी इस महामारी को नियंत्रित किया जा सकेगा। इसके अलावा जिन्हें हल्का संक्रमण है वे परेशान न हों।
स्वास्थ्य की निगरानी करते रहें, घबराहट में आकर अस्पताल जल्दी जाने की कोशिश नहीं करें। डॉक्टर के संपर्क में रहें। यदि संक्रमण ज्यादा है, साथ में मधुमेह, ब्लड प्रेशर के अलावा कोई अन्य गंभीर बीमारी है तो ही अस्पताल में भर्ती होने की जरूर हैं। यदि हालत स्थिर है और पहले से कोई बीमारी नहीं है तो घर में रहकर इलाज संभव है। अब अधिक संख्या में जांच हो रही है। इसलिए ज्यादा संक्रमित लोग पकड़ में आ रहे हैं। इसलिए कंटेनमेंट जोन भी बढ़ते जा रहे हैं। इस अभियान को जारी रखना होगा। लोगों को धैर्य से काम लेने की जरूरत है। इसके अलावा टीकाकरण बढ़ाना होगा। टीका लगने के बाद कम से कम गंभीर बीमारी और मौतें नहीं होंगी। अस्पतालों में भर्ती कराने की बहुत सिफारिशें आ रही हैं, लेकिन भर्ती की भी एक सीमा है। करीब 10 फीसद मरीजों को ही भर्ती करने की जरूरत होती है। ज्यादातर मरीजों का घर में ही ज्यादा बेहतर देखभाल हो सकता है। घर में कोई संक्रमित हो तो परिवार के सभी सदस्यों को मास्क का इस्तेमाल करना चाहिए।
सवाल- हाल ही में लेंसेट में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि संक्रमण से बचाव में अब सिर्फ एन-95 मास्क कारगर है, इस पर क्या कहना है?
जवाब- कोरोना वायरस का आकार पांच माइक्रॉन से छोटा होता है। ज्यादा म्यूटेंट स्ट्रेन का संक्रमण हो रहा है। संक्रमित व्यक्तियों के जोर से बोलने, खांसने व छींकने पर वायरस हवा में आएगा। पहले हम ट्रॉपलेट से संक्रमण होने की बात करते थे। कुछ ड्रॉपलेट हवा में रहेंगे और कुछ सतह पर गिर जाएंगे। अब लेंसेट में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि पांच माइक्रॉन का वायरस हवा में काफी देर तक रहता है। दिक्कत तब ज्यादा बढ़ जाती है जब कमरे में वेंटिलेशन ठीक न हो।
इसलिए कमरे में वेंटिलेशन अच्छा होना चाहिए। । एसी का इस्तेमाल करते समय भी वेंटिलेशन का ध्यान रखना होगा। शोध में यह भी कहा गया है कि कोरोना से बचाव में एन-95 मास्क ज्यादा कारगर है। यदि तीन लेयर वाले सर्जिकल मास्क का इस्तेमाल कर रहे हैं तो दो मास्क एक साथ इस्तेमाल करना चाहिए। तभी संक्रमण से बचाव हो सकेगा। सिंगल मास्क से बचाव नहीं होगा। मास्क हमेशा नाक के उपर होना चाहिए।
सवाल- कई डॉक्टर कुछ दिनों तक लॉकडाउन या एक राज्य से दूसरे राज्य में आवागमन स्थगित करने की सलाह दे रहे हैं, आप क्या सोचती हैं?
जवाब- आर्थिक स्थिति को भी ध्यान में रखना होगा। कई लोगों के पास खाने के लिए पैसे नहीं है। कामगारों को जो लोग नौकरी पर रखते हैं वे 15 दिन भी खर्च उठाने को तैयार हैं, इसलिए पूरे हालात पर नजर रखना जरूरी है। एक बार फिर पहले की तरह लोग डर कर अपने गृह राज्य में जाने लगे हैं। इससे संक्रमण और बढ़ सकता है। कोशिश होनी चाहिए कि लोगों को वापस गृह राज्य नहीं जाने दें। उनके लिए यहीं पर व्यवस्था करने की कोशिश होनी चाहिए।
सवाल- अस्पतालों में बेड नहीं मिल पा रहे हैं ऐसी स्थिति में डर तो स्वभाविक है?
जवाब- अस्पतालों में जोखिम वाले मरीजों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। यदि डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मियों की क्षमता 300 से 400 मरीजों के देखने की है, लेकिन उन पर कई गुना ज्यादा मरीजों को देखने का दबाव होगा तो व्यवस्था प्रभावित होगी। इसलिए आरडब्ल्यूए से भी कहा गया है कि वे अपने कॉलोनी में संक्रमित हुए लोगों की देखभाल के लिए आगे आएं। पहले की तरह इतना डर नहीं है कि मरीजों से भेदभाव हो। इसलिए मरीजों की देखभाल सोसाइटी में भी हो सकती है।

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