दिल्ली का एक ऐसा किला जो कभी आबाद नहीं हो सका, जानिए- इसके पीछे की दिलचस्प कहानी
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के आधिकारिक दस्तावेजों में इस बात का जिक्र है कि किले का काम भी पूरा नहीं हुआ था और गयासुद्दीन तुगलक अपनी राजधानी को इस किले में ले आया था। कुछ दिन ही बीते थे कि बंगाल में विद्रोह हो गया।
नई दिल्ली [वी.के.शुक्ला]। मंगोलों के आक्रमण से बचने के दिल्ली के सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक ने 1321 ईस्वी में तुगलकाबाद में किला बनवाया था। मगर यह किला कभी आबाद नहीं हो सका और उसका ख्वाब अधूरा रह गया। ऐसा बताया जाता है कि एक तरफ किला बस रहा था और दूसरी ओर लोग यहां से छोड़कर जा रहे थे। ऐसा क्यों हुआ हम बताएंगे आपको विस्तार से इसकी दिलचस्प कहानी? बहरहाल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) इस किले के अंदर के हिस्से में बचे महत्वपूर्ण अवशेषों में बड़े स्तर पर संरक्षण कार्य कराने की योजना बना रहा है। जिसके तहत रॉयल कांप्लैक्स, मीना बाजार क्षेत्र और बावली की दशा सुधारी जाएगी। इनमें करीब 30 साल बाद बड़े स्तर पर काम शुरू होगा।
एएसआइ पुराने फोटो और दस्तावेजों की भी मदद ले रहा है कि जिससे किले के गिर चुके महत्वपूर्ण भागों के बारे में जानकारी ली जा सके। इसके आधार पर जहां तक संभव होता संरक्षण कार्य के तहत गिर चुके कुछ भागों को फिर ने बनाया जा सकेगा। इसके अलावा किले के अंदर अलग-अलग स्थानों पर सूचना बोर्ड लगाकर पर्यटकों को जानकारी उपलब्ध कराने की भी योजना है। ताकि यहां आने वाले पर्यटकों को इसके बारे में विस्तृत जानकारी मिल सके।
किले के प्रवेश द्वार और इसके आसपास की जाएगी रोशनी की व्यवस्था
आने वाले तीन माह के अंदर इधर से गुजरने वाले लोग सुनहरी रोशनी में किले का दीदार कर सकेंगे। एएसआइ ने इस कार्य के लिए एनबीसीसी (नेशनल बिल्डिंग कांस्ट्रक्शन कारपोरेशन) को जिम्मेदारी दी है। इससे पहले 2010 में भी इस किले पर रोशनी का प्रबंध किया गया था। मगर शरारती तत्व लाइटों को चुरा ले गए या उन्होंने लाइटें तोड़ दी थीं। उसके बाद से फिर इस किले पर रोशनी को लेकर कोई प्रयास नहीं किए गए। एनबीसीसी यहां लाइटों के ढांचे को जमीन के अंदर स्थापित करने की योजना बना रहा है। इसके अलावा लाइटों पर मोटे जाल लगाए जाएंगे। जिससे लाइटों को चुरा पाना या इन्हें नुकसान पहुंचा पाना आसान नहीं होगा।
किले का महत्व और इतिहास
दिल्ली में 1321 ईस्वी में मुबारक शाह का शासन था। यह वह समय था मंगोल बहुत सक्रिय थे और उनसे बचने के लिए पंजाब सूबे के गवर्नर गाजी मलिक ने पहाड़ी पर किला बनाकर राजधानी स्थापित करने का सुझाव मुबारकशाह को दिया। उस समय राजधानी का संचालन हौजखास सीरीफोर्ट के प्रसिद्ध सीरी किला से होता था। इस पर मुबारक शाह ने उसका मजाक बनाया और ऐसा करने से मना कर दिया। मगर वक्त में ऐसा पलटा खाया कि मुबारक शाह की मौत के बाद यही गाजी मलिक दिल्ली का सुल्तान बना और गयासुद्दीन तुगलक के नाम से मशहूर हुआ। जिसने यह किला बनवाया। मगर यह किला आबाद नहीं हो सका।
बताया जाता है कि उसके किले और आसपास का पानी जहरीला हो गया था। एक तरफ लोग बस रहे थे और दूसरी ओर छोड़ कर जा रहे थे। चार साल में ही किला उजड़ हो गया। गयासुद्दीन न ही किले से शासन चला सका और न ही इसे आबाद कर सका। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के आधिकारिक दस्तावेजों में इस बात का जिक्र है कि किले का काम भी पूरा नहीं हुआ था और गयासुद्दीन तुगलक अपनी राजधानी को इस किले में ले आया था। कुछ दिन ही बीते थे कि बंगाल में विद्रोह हो गया जिसे शांत करने के लिए उसे बंगाल कूच करना पड़ा। वहां उसे सूचना मिली कि निजामुद्दीन औलिया ने वह बावली बनवा ली है। जिसे उसने बनवाए जाने से रोकने का प्रयास किया था। उसने वहां से अपने दरबारी कवि व औलिया के शिष्य अमीर खुसरो से उनको (औलिया) संदेश भिजवाया कि राजधानी तुरंत छोड़ दें अन्यथा दिल्ली पहुंचने पर उनका सिर कलम कर दिया जाएगा। जिस पर औलिया ने कहा था कि सुल्तान दिल्ली नहीं देखेगा। उसके लिए दिल्ली दूर है (दिल्ली दूर अस्त)। एएसआइ के दस्तावेजों में वर्णित है कि लौटते समय अपने किले से छह मील दूर रह जाने पर एक लकड़ी के मचान में दबकर उसकी मौत हो गई।
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