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विरोध की जिद में गांव-गांव फैला दी महामारी, धरना स्थल पर दम तोड़ रहे आंदोलनकारी किसान

संयुक्त किसान मोर्चा के नेता बलबीर राजेवाल ने कहा कि सरकार ने धरनास्थल पर ही सभी को वैक्सीन लगाने का प्रबंध क्यों नहीं किया जबकि कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर से बात भी हुई थी। घरों में मरने के बजाय हम आंदोलन में मरना बेहतर समझेंगे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 20 May 2021 01:16 PM (IST)Updated: Thu, 20 May 2021 01:16 PM (IST)
विरोध की जिद में गांव-गांव फैला दी महामारी, धरना स्थल पर दम तोड़ रहे आंदोलनकारी किसान
धरनों पर बैठे लोग न तो कोरोना की टेस्टिंग कराने को तैयार हैं और न ही वैक्सीनेशन को राजी हैं।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। हरियाणा और पंजाब के साथ दिल्ली सीमा पर प्रदर्शन कर रहे दोनों राज्यों के कृषि कानून विरोधी कोरोना के फैलाव का बड़ा कारण बन रहे हैं। इन धरनों पर हरियाणा व पंजाब के ग्रामीण लोगों की लगातार आवाजाही रहती है। धरनों पर बैठे लोग न तो कोरोना की टेस्टिंग कराने को तैयार हैं और न ही वैक्सीनेशन को राजी हैं। इससे ग्रामीण इलाकों में कोरोना का न केवल तेजी से फैलाव हुआ है, बल्कि कई लोग असमय काल कवलित हो चुके हैं।

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हरियाणा का हाल

प्रदेश के करीब एक दर्जन जिलों के लोगों की इन धरना स्थलों पर आवाजाही बनी हुई है। पिछले एक माह के दौरान इन जिलों के गांवों में जहां 1097 लोगों की सामान्य मृत्यु हुई है, वहीं कोरोना की वजह से 174 लोग मौत के आगोश में चले गए हैं।

जांच और टीकाकरण में जारी है असहयोग: हरियाणा के गृह एवं स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने बताया कि हमने दिल्ली-हरियाणा बार्डर पर जमे किसान संगठनों के लोगों से कोरोना की टेस्टिंग और वैक्सीनेशन के लिए बार-बार अपील की। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों और किसान संगठनों के नेताओं की आपस में मीटिंग कराई। उन्होंने कोरोना की टेस्टिंग कराने से साफ इन्कार कर दिया, लेकिन साथ ही यह कहा कि वैक्सीनेशन के लिए हम अपने मंच से कोई घोषणा नहीं करेंगे। स्वास्थ्य विभाग धरना स्थल के पास अपना वैक्सीनेशन कैंप लगा ले। यदि किसी व्यक्ति की इच्छा होगी तो वह टीका लगवा लेगा। अब तक मात्र 1800 लोगों ने टीके लगवाए हैं, जबकि एक भी व्यक्ति ने अपनी टेस्टिंग नहीं कराई।

राजनीतिक फायदे के लिए किसानों के जीवन से खिलवाड़: हरियाणा के डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने बताया कि आंदोलन की आड़ में कांग्रेस व अन्य बची हुई पार्टियां अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रही हैं। नेताओं को कोरोना महामारी का ध्यान रखते हुए किसानों के जीवन से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए।

चढ़ूनी दे चुके बचकाना बयान: जब आंदोलन शुरू हुआ था तब भी कोरोना था, तो क्या किसान रुक गया था। ये लोग झूठ बोल रहे हैं, कोरोना कोई बीमारी नहीं है, कोरोना एक बहुत बड़ा घोटाला है। मुझे ऐसा लगता है कि जो कोरोना का टीका लगवाएगा वो इनका हो जाएगा, उसके हार्मोन बदल सकते हैं और मुझे ये खतरा भी है कि ये टीके किसान यूनियन के नताओं को ना लगा दें।

गुरुनाम सिंह चढ़ूनी (21 मार्च को कैथल में एससी बीसी संयुक्त मोर्चा की तरफ से आयोजित बहुजन महापंचायत एवं सामाजिक सम्मेलन में)

धरना स्थल पर दम तोड़ रहे किसान: कुंडली और टीकरी बार्डर हाट स्पाट बने हुए हैं। कुंडली बार्डर पर लगातार दूसरे दिन एक प्रदर्शनकारी की मौत हो गई। बुधवार सुबह लुधियाना के गांव फूलांवाला निवासी आंदोलनकारी महेंद्र सिंह की संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो गई। हालांकि अभी उनकी कोरोना जांच रिपोर्ट का इंतजार है। इससे पहले मंगलवार देर शाम धरनास्थल पर टेंट में मृत मिले पटियाला के गांव शंकरपुर के बलबीर सिंह की कोरोना जांच रिपोर्ट पाजिटिव आई है। हालांकि आंदोलनकारी दोनों मौत का कारण शुगर व हृदयाघात बता रहे हैं। आंदोलन स्थल पर बने अस्पताल में रोजाना होने वाले ओपीडी में 80 प्रतिशत बुखार व कोरोना के अन्य सिम्टम वाली मरीज होते हैं। बड़ी संख्या में कोरोना के संदिग्ध मरीज घूम रहे हैं।

पंजाब की पीड़ा: पंजाब में शहरों से ज्यादा गांव कोरोना महामारी की जद में हैं और किसान कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन की जिद पर अड़े हुए हैं। अपनी जान भी गंवा रहे हैं और लौट कर गांवों में सुपर स्प्रेडर भी बन चुके हैं।

नहीं करवा रहे टेस्ट: जिला फतेहगढ़ साहिब का त्रिलोचन सिंह सिंघु बार्डर पर धरनों में शामिल था। नौ मई को जब वह वापस आया तो उसने हलके बुखार के बाद भी टेस्ट नहीं करवाया। 14 और 15 मई को उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी। रविवार सुबह तक उसे सांस आनी बंद हो गई। वैक्सीन भी हुई राजनीति का शिकारदस अप्रैल से लेकर 13 मई तक मंडियों में सरकार की पहल के बावजूद महज 9664 किसानों ने ही वैक्सीन लगवाई जो मात्र एक फीसद बनती है। दरअसल जोगिंदर सिंह उगराहां जैसे किसान नेता इसे मोदी वैक्सीन बता किसानों को न लगवाने के लिए भ्रमित करते रहे हैं।

केस स्टडी-एक: तरनतारन जिले में 900 किसान दिल्ली धरने से लौटे। उनमें से अब तक सात की कोरोना से मौत हो चुकी है। जिले के माणकपुर गांव में 20 से अधिक लोग पाजिटिव आए हैं। इनमें सात टीकरी बार्डर से लौटे हैं। जो अन्य पाजिटिव हैं उनमें भी ज्यादातर उन लोगों के संपर्क में रहे हैं, जो दिल्ली से लौटे हैं।

केस स्टडी-दो: श्री मुक्तसर साहिब के गांव आलमवाला में 40 पाजिटिव हैं। इनमें 10 ऐसे हैं, जो दिल्ली मोर्चे में शामिल हुए थे। अन्य 30 गांव के ही हैं जो इनकी जान-पहचान के हैं। सहायक सिविल सर्जन कंवलजीत सिंह ने कहा कि बाहर से आने वालों से ही संक्रमण फैला है।

बरगला रहे किसान नेता: संगरूर के गांव अलखोवाल में मनरेगा योजना को समझाने के लिए रखी वर्कशाप में बहुत कम औरतें शामिल हुईं। पिंड बचाओ, पंजाब बचाओ के नेता गुरमीत सिंह ने बताया कि लोगों में भय है कि यहां उन्हें कोरोना की वैक्सीन लगा दी जाएगी। उगराहां बार बार कह चुके हैं कि कोरोना के बहाने सरकार हमारा आंदोलन फेल करना चाहती है।

अब कराने लगे टेस्टिंग: पटियाला जिले के अजनौदा गांव में 13 लोगों की मौत हो गई। उनमें कोरोना के लक्षण थे। इन 13 लोगों में 10 महिलाएं थीं, इनके परिवारों के सदस्य लगातार सिंघु बार्डर पर धरनों में जाते रहे हैं। अब लोगों ने फैसला किया है वे धरने पर नहीं जाएंगे।

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खतरा भी मान रहे और अड़े भी हैं: किसान नेता मानते हैं कि धरना स्थल पर संक्रमण का खतरा है लेकिन वे हटने को तैयार नहीं। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता बलबीर राजेवाल ने कहा कि सरकार ने धरनास्थल पर ही सभी को वैक्सीन लगाने का प्रबंध क्यों नहीं किया जबकि कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर से बात भी हुई थी। घरों में मरने के बजाय हम आंदोलन में मरना बेहतर समझेंगे।

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