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    बदल गया दिल्ली की इस सड़क का नाम, असम के सीएम ने दी जानकारी; जानिए कौन हैं बोडोफा उपेंद्रनाथ ब्रह्मा

    By rais rais Edited By: Sonu Suman
    Updated: Sun, 27 Apr 2025 06:30 AM (IST)

    असम से ताल्लुक रखनेवाले उपेंद्रनाथ ब्रह्मा एक बोडो सामाजिक कार्यकर्ता थे। उन्होंने असम में छात्र-नेतृत्व वाली सक्रियता को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने 1978-79 में गोलपाड़ा जिला छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया और बाद में 1981 और 1986 के बीच आल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (एबीएसयू) के उपाध्यक्ष और उसके बाद अध्यक्ष बने।

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    बोडोफा उपेंद्रनाथ ब्रह्मा के नाम से जानी जाएगी कैलाश कॉलोनी रोड।

    जागरण संवाददाता, दक्षिणी दिल्ली। दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) ने बोडो नेता उपेंद्रनाथ ब्रह्मा के सम्मान में ग्रेटर कैलाश में ए-5 से ए-18 कैलाश कालोनी रोड का नाम बदलकर “बोडोफा उपेंद्रनाथ ब्रह्मा मार्ग” रखने की मंजूरी दे दी है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने एक्स पर पोस्ट कर इसकी जानकारी दी। साथ ही प्रस्ताव का समर्थन करने के लिए गृहमंत्री अमित शाह का आभार व्यक्त किया।

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    असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने एक्स पोस्ट में लिखा, “दिल्ली के केंद्र में एक सड़क का नाम बोडोफा उपेंद्रनाथ ब्रह्मा मार्ग रखने के प्रस्ताव को आगे बढ़ाने के लिए माननीय केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के प्रति मेरी हार्दिक कृतज्ञता।” सरमा ने आगे कहा, “एमसीडी ने A5-A18 कैलाश कालोनी से बोडोफा उपेंद्रनाथ ब्रह्मा मार्ग के रूप में सड़क को मंजूरी दे दी है, जिसे जल्द ही राष्ट्र को समर्पित किया जाएगा, जो कि आधुनिक गृहमंत्री की ओर से बीटीआर के लोगों से की गई प्रतिबद्धता को पूरा करता है।”

    मरणोपरांत मिली थी 'बोडोफा' उपाधि

    उपेंद्रनाथ ब्रह्मा एक बोडो सामाजिक कार्यकर्ता थे। उन्होंने असम में छात्र-नेतृत्व वाली सक्रियता को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने 1978-79 में गोलपाड़ा जिला छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया और बाद में 1981 और 1986 के बीच आल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (एबीएसयू) के उपाध्यक्ष और उसके बाद अध्यक्ष बने।

    उनके पुण्यतिथि को बोडोफा दिवस के रूप में मनाया जाता है

    उनके नेतृत्व में एबीएसयू ने सांस्कृतिक से राजनीतिक मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित किया, जिसका उद्देश्य बोडो युवाओं में राजनीतिक परिपक्वता को बढ़ावा देना था। उनका निधन 1 मई, 1990 को हुआ। उनके नेतृत्व और दूरदर्शिता के सम्मान में आठ मई 1990 को उन्हें मरणोपरांत "बोडोफा" (बोडो के संरक्षक) की उपाधि प्रदान की गई। उनकी मृत्यु के दिन को अब हर साल बोडोफा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

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