JNU में एस जयशंकर के सामने लगे 'फ्री फलस्तीन' के नारे, बैरिकेड तोड़ कन्वेंशन सेंटर तक पहुंचे छात्र
जेएनयू में अरावली समिट में विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि भारत की विदेश नीति का मूल सिद्धांत राष्ट्रीय हित है जिससे कोई समझौता नहीं होगा। उन्होंने वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत को नेतृत्व करने की भूमिका में आने का आह्वान किया। जयशंकर ने वैश्विक शासन में सुधार और ग्लोबल साउथ के साथ जुड़ाव पर जोर दिया। समिट के दौरान छात्रों ने विरोध प्रदर्शन भी किया।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में सोमवार को आयोजित अरावली समिट का उद्घाटन विदेश मंत्री डाॅ. एस. जयशंकर ने किया।
इस अवसर पर उन्होंने कहा कि भारत की विदेश नीति का मूल सिद्धांत सदैव राष्ट्रीय हित रहा है और रहेगा। किसी भी बाहरी दबाव या अंतरराष्ट्रीय समीकरण के आगे भारत अपने हितों से समझौता नहीं करेगा।
विद्यार्थियों के प्रश्नों का जवाब देते हुए जयशंकर ने कहा कि भारत ने हमेशा वही निर्णय लिए हैं, जो उसके राष्ट्रीय हित में रहे हैं। अतीत में भी, जब भारत-सोवियत संबंधों का दौर था, तब भी हमारी नीतियां इसी दृष्टिकोण से बनीं। उस समय हम अमेरिका-पाकिस्तान-चीन त्रिकोण से घिरे हुए थे।
ऐसे में तटस्थ रहना संभव नहीं था, हमें वही करना था जो हमारे हित में था। उन्होंने आगे कहा कि भारत की विदेश नीति समय और परिस्थिति के अनुसार तय होती रही है।
आज भी कई देश हमें अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों का हवाला देकर दबाव बनाने की कोशिश करते हैं। लेकिन, मैं उनसे पूछता हूं, जब वही सिद्धांत हमारे ऊपर लागू होते थे, तब आप कहां थे? सिद्धांत महत्वपूर्ण हैं, पर अंतिम निर्णय में राष्ट्रीय हित सबसे ऊपर होता है।
डाॅ. जयशंकर ने कहा कि हमारी महत्वाकांक्षा केवल अनुकूलन भर की नहीं, बल्कि नेतृत्व करने की भी होनी चाहिए। जयशंकर ने व्यापार, जलवायु, प्रौद्योगिकी और सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में वैश्विक शासन ढांचों के पुनर्गठन और गठबंधनों को नए सिरे से परिभाषित करने में भारत की भूमिका की भी बात की।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत का ग्लोबल साउथ के साथ जुड़ाव दानभावना से नहीं, बल्कि आवश्यकता से उपजा है। ताकि अंतरराष्ट्रीय मंचों में वैधता और समानता सुनिश्चित की जा सके।
उन्होंने वर्तमान वैश्विक परिदृश्य को अत्यधिक उथल-पुथल भरा दौर बताया, जिसे भू-राजनीतिक महा-परिवर्तनों और हर चीज के शस्त्रीकरण से परिभाषित किया जा रहा है।
उन्होंने तर्क दिया कि भारत को न केवल अपने हितों की रक्षा करनी चाहिए, बल्कि इस अस्थिरता के बीच अपने उत्थान को जारी रखते हुए, रक्षात्मक रुख से आगे बढ़कर सक्रिय रुख अपनाना चाहिए।
यह अरावली समिट जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के 70वें स्थापना वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित की गई है। इसका आयोजन विदेश मंत्रालय और चिंतन रिसर्च फाउंडेशन के सहयोग से किया गया है।
सम्मेलन का मुख्य विषय 'भारत की वैश्विक भूमिका 2047 तक' रखा गया है। इसी बीच, जेएनयू छात्रसंघ के सदस्यों ने विश्वविद्यालय परिसर के कन्वेंशन सेंटर के बाहर विरोध प्रदर्शन किया, जहां जयशंकर का भाषण चल रहा था।
छात्रों ने 'गो बैक' और 'फ्री फलस्तीन' के नारे लगाए। पुलिस ने उन्हें रोकने के लिए बैरिकेड लगाए, लेकिन, प्रदर्शनकारी बैरिकेड तोड़कर कन्वेंशन सेंटर के मुख्य द्वार तक पहुंच गए। वहां वे झंडे लहराते और ढपली बजाते हुए नारेबाजी करते रहे, जबकि भीतर कार्यक्रम जारी रहा।
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