जज्बे को सलाम: दिव्यांग इशिका ने रचा इतिहास, देश के कई युवाओं ने असंभव को संभव में बदला
Delhi News जीवन में अगर कुछ कर दिखाने का जज्बा हो तो कोई भी काम मुश्किल नहीं होता है। हमारी टीम ने ऐसे ही कुछ लोगों से बातचीत की है जिन्होंने असंभव को ...और पढ़ें

लोकेश शर्मा, नई दिल्ली। सपने बड़े देखना गलत नहीं है, लेकिन जब दिव्यांगता आपके रास्ते में बाधा बने तो अधिकतर लोग हार मान लेते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपनी इच्छाशक्ति और मेहनत से हर मुश्किल को पार कर दिखाते हैं।
आज अंतर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस के अवसर पर हम आपको उन प्रेरणादायक बच्चों की कहानियां बता रहे हैं, जिन्होंने अपनी दिव्यांगता को पीछे छोड़कर असाधारण उपलब्धियां हासिल की हैं।
इशिका ने अपनी कमजोरी को ताकत बनाया
21 वर्षीय इशिका फोगाट सफदरजंग एन्क्लेव की रहने वाली इशिका जन्म से ही एक किडनी के सहारे जीवन जी रही हैं। डॉक्टरों ने उनकी लंबी उम्र को लेकर संदेह जताया था, लेकिन इशिका ने अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बनाया।
मानसिक रूप से छह वर्ष की स्थिति में होने के बावजू, उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर थाईलैंड 2023 में विश्व विकलांगता एथलेटिक्स में स्वर्ण पदक जीता। इसके अलावा इशिका ने 400 मीटर दौड़ को 2.7 सेकंड में पूरा कर कारनामा भी कर चुकी है।
बल्ब बेचकर अपने घर को सहारा देते हैं सुजीत
30 वर्षीय सुजीत जंगपुरा के रहने वाले सुजीत एक ब्लाइंड क्रिकेट खिलाड़ी हैं और राज्य स्तर पर दिल्ली का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके पिता दिहाड़ी मजदूर हैं और परिवार का गुजारा मुश्किल से चलता है। सुजीत एलईडी बल्ब बेचकर अपने घर को सहारा देते हैं।
वहीं, क्रिकेट के अलावा उन्होंने 100 मीटर दौड़ को 11.84 सेकंड में पूरा कर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। अब तक वह 16 से अधिक पदक जीत चुके हैं।
कीर्ति चौहान ने किया देश का नाम रोशन
31 वर्षीय कीर्ति चौहान ने बचपन में खेलते समय कलाई से हाथ खो चुकी है। हाथ गवाने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। आज वह एथलेटिक्स में 25 से अधिक पदक जीत चुकी हैं। उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें सरकारी स्कूल में शिक्षक भी बनाया है। वह उन लोगों के लिए प्रेरणादायक है जो दिव्यांग होने के बाद जिंदगी से हार मान बैठते है। उन लोगों को कीर्ती से सीखने की जरुरत है कि कैसे अपनी कमजोरी से आगे अपने सपनों को रखना है।
2024 में जीता था रजत पदक
गोकुलपुरी के रहने वाले 24 वर्षीय नीतिन बचपन में लकवे के शिकार हो गए थे। उन्हें चलने में कठिनाई होती थी, लेकिन उनकी लगन ने उन्हें फुटबॉल खिलाड़ी बनाया। उनके कोच अमरजीत ने बताया कि उन्हें अन्य अकादमियों से निराशा मिली, लेकिन यहां उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया। इंटरनेशनल मीट 2024 में नीतिन ने 200 मीटर दौड़ में कांस्य और 400 मीटर दौड़ में रजत पदक जीता।
चंडीगढ़ के 24 वर्षीय विजय कुमार बचपन में पोलियो से प्रभावित हो गए थे। एथलेटिक्स में आगे बढ़ने के लिए वह दिल्ली आए और कड़ी मेहनत से 2019 में वैश्विक स्तर पर कांस्य पदक और 2018 एशियन एथलेटिक्स में कांस्य पदक जीता।
विजय ने बताया कि 2015 में मेरी माता की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद 2020 में पिता भी कोविड में गुजर गए। एक छोटा भाई है, जिसका मैं अपने खेल के जरिए लालन-पालन कर रहा हूं।
यमुना पार घोंडा की 18 वर्षीय भक्ति शर्मा बचपन से ही सुन और बोल नहीं सकतीं। कमजोर पैरों के बावजूद उनकी इच्छाशक्ति ने उन्हें निशानेबाजी का चैंपियन बना दिया। विश्व एबिलिटी गेम्स में 10 मीटर एयर पिस्टल एसएच-1 वर्ग में स्वर्ण पदक जीतने वाली भक्ति का चयन खेलो इंडिया पैरा गेम्स में हो चुका है।
यह भी पढ़ें- Farmers Protest: दलित प्रेरणा स्थल पर किसानों का धरना-प्रदर्शन, नई दिल्ली इलाके में धारा 163 लागू
इन बच्चों ने अपनी दिव्यांगता को कभी अपने सपनों के आड़े नहीं आने दिया। उनकी मेहनत, हौसले और अटूट विश्वास ने उन्हें दुनिया के सामने एक मिसाल बना दिया है। इनकी कहानियां हमें सिखाती हैं कि कठिनाइयों से घबराने की बजाय उन्हें अपने आत्मबल से पार करना ही असली जीत है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।