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Kisan Andolan: कैसे संयुक्त किसान मोर्चा और राकेश टिकैत की जिद बनी लाखों लोगों की मुसीबत

Kisan Andolan संयुक्त किसान मोर्चा के नेता कई बार कह चुके हैं कि जब तक तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों को पूरी तरह से वापस नहीं लिया जाता है आंदोलन जारी रहेगा। वहीं किसान आंदोलन से लोग परेशान हैं। लोगों की नौकरी चली गई तो कई का कारोबार बर्बाद हो गया।

By Jp YadavEdited By: Published: Tue, 24 Aug 2021 12:29 PM (IST)Updated: Tue, 24 Aug 2021 12:29 PM (IST)
Kisan Andolan: दिल्ली-एनसीआर के लाखों लोगों पर भारी पड़ रही किसानों की जिद

नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ यूपी, पंजाब और हरियाणा समेत कई राज्यों के किसानों के आंदोलन को 2 दिन बाद यानी 26 अगस्त को 9 महीने पूरे हो जाएंगे। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम सुनवाई के दौरान कहा कि कुछ भी हो सड़क इस तरह बंद नहीं की जा सकती। प्रदर्शनकारियों को किसी निश्चित स्थान पर प्रदर्शन का अधिकार हो सकता है, लेकिन इस तरह सड़क नहीं रोकी की जा सकती। निर्बाध आना-जाना नहीं रोका जा सकता।

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जिद पर अड़ा हुआ है संयुक्त किसान मोर्चा

सुप्रीम कोर्ट की इस बात से दिल्ली-एनसीआर के करोड़ों लोग इत्तेफाक रखते हैं, लेकिन सवाल वही है कि क्या किसान लोगों की समस्या को देखते हुए रास्ता खाली करेंगे? इसका जवाब किसानों की ओर से फिलहाल 'ना' ही मिलेगा, क्योंकि संयुक्त किसान मोर्चा के नेता कई बार कह चुके हैं कि जब तक तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों को पूरी तरह से वापस नहीं लिया जाता है आंदोलन जारी रहेगा। वहीं, किसान आंदोलन से लोग परेशान हैं। आर्थिक दिक्कत भी है, स्थानीय लोगों की नौकरी चली गई तो कई लोगों का कारोबार तक बर्बाद हो गया। उधर, भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत तो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 तक आंदोलन के खिंचने का इशारा कर चुके हैं।

सैकड़ों लोगों की जा चुकी है नौकरी

कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली के विभिन्न बार्डर पर चल रहे किसानों के आंदोलन ने दिल्ली-एनसीआर के लाखों लोगों की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं। अब तक सैकड़ों लोगों की नौकरी जा चुकी है और अरबों रुपये के कारोबार का नुकसान हो चुका है। वहीं, किसानों अपनी जिद पर अड़े हैं। ऐसा इसलिए एक तरफ किसान जहां कृषि कानून को रद करने की मांग पर अड़े हुए हैं वहीं सरकार का कहना है कि ये कानून किसानों के ही हित में हैं। केंद्र सरकार संशोधन पर राजी हो सकती है, लेकिन उसका कहना है कि इस कानून को वापस नहीं लिया जा सकता, बातचीत कर इसमें संशोधन किया जा सकता है। रद करने का सवाल ही नहीं उठता। यही वजह है कि गतिरोध बरकरार है।

माल के आयात पर भी पड़ा असर

किसानों के आंदोलन का असर न सिर्फ आम जनता पर पड़ रहा है, बल्कि यूपी, हरियाणा और दिल्ली सरकार को भी अच्छा खासा नुकसान हो रहा है। पीएचडी चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की मानें तो किसान आंदोलन से प्रत्येक तिमाही में 70,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो रहा है। इसका कारण खासकर पंजाब, हरियाणा और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के सीमावर्ती इलाकों में आपूर्ति व्यवस्था में बाधा उत्पन्न होना है। वहीं, कैट के मुताबिक, किसान आंदोलन की वजह से दिल्ली व एनसीआर राज्यों को अभी तक हजारों करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा है। कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भरतिया व राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने बताया कि पंजाब और हरियाणा से दिल्ली आने वाले माल की आपूर्ति पर बड़ा फर्क पड़ा है, जो लगातार जारी है।

आवाजाही धमने के बावजूद आंदोलन के लंबा चलने के आसार

तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं (शाहजहांपुर, टीकरी, सिंघु और गाजीपुर बार्डर) पर चल रहे आंदोलन में ठहरने वाले किसान कम हुए तो आवाजाही का दौर भी धीमा पड़ रहा है। अब पहले की तरह पंजाब से आने वाली ट्रेनों में वह भीड़ नहीं आ रही। बावजूद इसके यह आंदोलन लंबा खिंचता जा रहा है।

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सुप्रीम कोर्ट भी कई बार दे चुका नहीसत

किसानों के आंदोलन का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है और सोमवार को इस पर सुनवाई हुई है। वहीं अपनी जिद पर अड़े किसान सड़क के किनारे रात-दिन गुजार रहे हैं, लेकिन झुकने के लिए तैयार नहीं हैं। किसान नेताओं का कहना है कि सरकार कह रही है कि वह इन कानूनों को वापस नहीं लेगी, हम कह रहे हैं कि हम आपसे ऐसा करवाएंगे। संयुक्त किसान मोर्चा कह चुका है कि हमारी लड़ाई उस चरण में पहुंच गई है जहां हम मामले को जीतने के लिए प्रतिबद्ध हैं। वहीं, सुप्रीम कोर्ट भी कई बार कह चुका है कि रास्ते रोककर लोगों को परेशान करना सही नहीं है।

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