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    IMD के महानिदेशक डॉ. मृत्युंजय महापात्रा ने कहा- भारत का मौसम है ट्रेंडलेस, दिए हर सवालों के जवाब

    Updated: Sat, 27 Sep 2025 06:10 PM (IST)

    इस साल मानसून ने सबको चौंका दिया है। शुरुआत में पहाड़ी राज्यों में तबाही हुई फिर मैदानी इलाकों में बाढ़ आई और जाते-जाते बंगाल जैसे राज्य डूब गए। वर्षामापी यंत्रों में आंकड़े बढ़ रहे हैं पर तबाही की तस्वीरें मेल नहीं खा रहीं। मौसम विभाग के महानिदेशक डा. मृत्युंजय महापात्रा का कहना है कि भारत का मौसम ट्रेंडलेस हो गया है।

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    भारत का मौसम हुआ ट्रेंडलेस (फोटो सोर्स- जेएनएन)

    संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। इस साल मानसून ने हर किसी को हैरानी में डाल रखा है। मानसून के शुरुआत में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू जैसे पहाड़ी राज्यों में तबाही। फिर पंजाब जैसे मैदानी इलाकों में बाढ़ का कहर और जाते-जाते बंगाल सहित कई राज्यों को डुबो गया।

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    वर्षामापी यंत्र में दर्ज हो रहे आंकड़े ऊपर की ओर बढ़ जरूर रहे हैं लेकिन चारों ओर मची तबाही की तस्वीरों से मेल नहीं खा रहे हैं। सवाल दुरुस्त है कि सामान्य से मात्र पांच-छह प्रतिशत ज्यादा बारिश से इतनी तबाही कैसे आ सकती है। इन पर भारत मौसम विज्ञान विभाग (आइएमडी) के महानिदेशक डा. मृत्युंजय महापात्रा का कहना है भारत का मौसम ट्रेंडलेस हो गया है।

    बिहार, अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय को छोड़कर और सभी क्षेत्रों में सामान्य या अधिक वर्षा दर्ज की गई है। जहां तक बारिश की बात तो है, यह असामान्य होते हुए भी फसल, बिजली और जल स्तर के लिए बेहतर है, लेकिन इसकी वजह से लाग एरिया में बाढ़ और पहाड़ी इलाके भूस्खलन हो रहे हैं।

    ओडिशा में जन्मे डा. महापात्रा ने 30 साल के करियर में चक्रवात पूर्वानुमान और मौसम भविष्यवाणी प्रणालियों को विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वह विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) में भारत के स्थायी प्रतिनिधि के रूप में भी कार्यरत हैं और संगठन के तीसरे उपाध्यक्ष हैं। अमेरिकन मीटियोरोलाजिकल सोसाइटी ने उन्हें 2025 का 'आउटस्टैंडिंग सर्विस अवार्ड' प्रदान किया। मानसूनी बारिश, मौसम चक्र और बदलते ट्रेंड को लेकर दिल्ली राज्य ब्यूरो के प्रमुख संवाददाता संजीव गुप्ता ने भारत मौसम विज्ञान विभाग (आइएमडी) के महानिदेशक डा. मृत्युंजय महापात्रा से विस्तार से चर्चा की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंशः

    क्या इस साल हो रही वर्षा सामान्य ही कही जाएगी?

    इस बार वर्षा तो सामान्य नहीं है। अभी आज के दिन में एक जून से कुल वर्षा देखें तो अभी तक 109 प्रतिशत वर्षा रिकार्ड की गई है। यानी देश भर में नौ प्रतिशत वर्षा अधिक हुई है। जैसा हमने अनुमान किया था कि इस बार सामान्य से ज्यादा वर्षा होगी। अभी तक सामान्य से ज्यादा वर्षा ही रिकार्ड हुई है। पूरे देश की बात करें तो भी आप देखेंगे कि बिहार, अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय को छोड़कर सभी क्षेत्रों में सामान्य या अधिक वर्षा दर्ज की गई है।

    तो क्या इसे असामान्य वर्षा कहा जाए?

    बिलकुल। यह असामान्य की श्रेणी में ही आएगा। 104 प्रतिशत तक, चार प्रतिशत कम या ज्यादा वर्षा को सामान्य कहा जाता है। 104 प्रतिशत से 110 प्रतिशत तक की वर्षा को असामान्य कहा जाता है। 110 प्रतिशत से अधिक वर्षा को अत्यधिक की श्रेणी में रखा जाता है।

    इस बार अधिक वर्षा की वजह क्या है?

    देखिए, इस बार लो प्रेशर सिस्टम काफी संख्या में विकसित हुआ है। मानसून लगातार सक्रिय रहा है। इसके अलावा लीना न्यूट्रल रहा है। इनर चैनल न्यूट्रल कंडीशन में है। मेडन-जूलियन आसिलेशन भी अनुकूल है। इसकी वजह से बादल भी लगातार बनते रहे हैं। इन्हीं सब कारणों से इस बार बारिश अधिक हो रही है। मेडन-जूलियन आसिलेशन एक उष्णकटिबंधीय जलवायु घटना है, जो भूमध्य रेखा के आसपास बादलों और वर्षा की एक पूर्व-मुखी तरंग या स्पंदन है। आमतौर पर यह 30 से 60 दिनों में होती रहती है। यह भारत और आस्ट्रेलिया जैसे क्षेत्रों में मानसून, चक्रवात और वर्षा के पैटर्न को प्रभावित करती है।

    इतना पानी आ कहां से रहा है?

    वाष्पीकरण...याद करिए, इसके बारे में हम सबने स्कूल में बहुत पढ़ा है। जल चक्र के तहत वाष्पीकरण के जरिए बादल जितना पानी जल स्रोतों से लेते हैं, उतना ही फिर वर्षा के रूप में बरसाते हैं। मानसून तक क्रास फ्लो वाली स्थिति भी रहती है। दक्षिणी मानसून हवाएं आ रही हैं। उसके साथ नमी भी आती है। जब कोई लो प्रेशर सिस्टम या मानसून ट्रफ सक्रिय होता है तो माइश्चर विंड ऊपर जाता है। ऊपर जाने के बाद कंडेंसेशन होता है। क्लाउड फार्मेशन होता है। इससे बारिश होती है। जब मानसून सर्कुलेशन आता है तो पहाड़ी इलाकों में इंटरैक्शन के साथ ज्यादा वर्षा हो जाती है। समय-समय पर जैसे ही कोई पश्चिमी विक्षोभ आता है उत्तर पश्चिमी भारत और हिमालय क्षेत्र में वर्षा बढ़ जाती है।

    मौसम चक्र के हिसाब से यह स्थिति अच्छी है या खराब?

    अच्छी है। अत्यधिक वर्षा होने से नुकसान होता है, लेकिन इस साल जो बारिश हो रही है वो आपकी खेती के लिए अच्छी है। वाटर इलेक्ट्रिसिटी के लिए भी अच्छी है। भूजल का स्तर बढ़ जाता है। औद्योगिक गतिविधियों के लिए भी पानी मिल जाता है। हालांकि यह भी सच है कि कभी-कभी जो लाग एरिया होता है, वहां बाढ़ आ जाती है। कहीं मड स्लाइड्स हो जाता है। लैंडस्लाइड भी हो जाता है। यह नकारात्मक प्रभाव हैं। इस बार यह दोनों चीजें काफी मात्रा में हो रहा है, इसलिए तबाही नजर आ रही है।

    पूर्वी और मध्य भारत के किसान कह रहे हैं कि ऐसी ही वर्षा होनी चाहिए। क्या आने वाले वर्षों में भी ऐसी वर्षा होगी?

    उत्तर देखिए हम तो सिर्फ चार महीने की जो बारिश होती है, उसका पूर्वानुमान अप्रैल 15 के आसपास जारी करते हैं। हम आने वाले सालों का कि अगले दो साल का, तीन साल का पूर्वानुमान नहीं देते हैं, इसलिए हम नहीं बता पाएंगे कि आने वाले साल में क्या होगा।

    तो क्या कोई ट्रेंड नहीं है...जो हम महसूस कर सकते हैं, या देख सकते हैं?

    पिछले 124 साल यानी 1901 से देखेंगे, तो मानसून का कोई ट्रेंड नहीं है। भारत ट्रेंडलेस है। 1901 से इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि मौसम विभाग के पास इस समय से आंकड़ों के रिकार्ड मौजूद हैं।

    मसलन, उत्तर-पूर्वी भारत के आसपास जो पूर्वी भारत है, झारखंड, बिहार, पूर्वी उप्र...उन सब इलाकों में बारिश थोड़ी कम हो रही है। पश्चिमी हिस्सों में बारिश बढ़ रही है। जैसे गुजरात, राजस्थान आदि क्षेत्रों में बारिश की आवृत्ति बढ़ रही है।

    कुछ क्षेत्रों में अधिक बारिश का कारण?

    जहां-जहां आपका वेदर सिस्टम सक्रिय रहता है, वहां ज्यादा बारिश होती है। इस समय तो पूरे भारत में ही अच्छी बारिश हो रही है। जैसा मैंने आपको बताया कि सिर्फ उत्तर-पूर्वी भारत का असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और बिहार छोड़कर अभी तक सभी राज्यों में सामान्य या सामान्य से अधिक बारिश हुई है। उत्तर-पूर्व में जैसे देखेंगे, अगस्त महीने में बहुत अच्छी बारिश हुई है।

    उसका कारण पश्चिमी विक्षोभ के साथ मानसून की पारस्परिक क्रिया (इंटरेक्शन) होती है। जब भी इंटरेक्शन होता है, जीयोग्राफिकल डोमिनेंट एरिया, यानी प्रमुख भौगोलिक क्षेत्र (पृथ्वी की सतह का वह क्षेत्र है जो अपनी विशिष्ट प्राकृतिक विशेषताओं, जैसे संसाधन, जलवायु, वनस्पति, वन्य जीवन या भू-आकृति के आधार पर एक विशेष पहचान रखता है) में बारिश होती है।

    आमतौर पर यह पहाड़ी इलाका होता है। यही कारण रहा कि इस बार उत्तराखंड और इसके साथ लगे हुए मैदानों में अच्छी बारिश हुई है। वेस्टर्न घाट एरिया यानी पश्चिमी घाट क्षेत्र में जो लोकल सिस्टम बनता है, उससे मध्य भारत में बारिश होती है। इसके अलावा प्रायद्विपीय भारत के पश्चिमी घाट में भी ज्यादा बारिश हो रही है। यह भारत के पश्चिमी तट के साथ फैली हुई एक पर्वत श्रृंखला है। गुजरात से कन्याकुमारी तक लगभग 1600 किमी तक इसका विस्तार है।

    क्या यह ग्लोबल वार्मिंग का असर भी है?

    ग्लोबल वार्मिंग की वजह से जो तापमान बढ़ रहा है, इसी वजह से भारी वर्षा की फ्रीक्वेंसी बढ़ रही है। आप कह सकते हैं कि यह भी एक कारक है।

    इस बार जो हालात बने हैं उसे देखते हुए जनता या सरकार के लिए क्या सुझाव देंगे?

    बतौर मौसम विज्ञानी मेरा काम मौसम की गतिविधियों की पहचान करना और जितना संभव हो सके आगाह करना है। इस दिशा में आइएमडी बहुत काम कर रहा है। हम मौसम के बारे में इंपैक्ट बेस्ड फोरकास्ट (प्रभाव आधारित पूर्वानुमान) जारी कर रहे हैं। इसमें हम उन्हें जोखिमों के लिए आगाह करते रहे हैं। इस बार भी हमने भारी वर्षा की चेतावनी दी है और साथ ही एडवाइजरी भी जारी की है। लोग इसके अनुरूप चलें और सतर्क रहें। सुरक्षित रहें। दूसरों को भी सुरक्षित रहने में मदद करें। स्थानीय स्तर पर बेहतर प्रबंधन से हालातों का मुकाबला करें। यदि कोई चिंता है तो कभी भी हमारे कार्यालय को संपर्क करें। मौसम विभाग का मोबाइल एप और वेबसाइट का इस्तेमाल कर सकते हैं।

    तबाही को देखते हुए सवाल उठ रहे हैं क्या पूर्वानुमान और पहले संभव है, ताकि बचाव प्रक्रिया और पुख्ता की जा सके?

    प्रकृति के बारे में सटीक पूर्वानुमान आसान नहीं है। पूर्वानुमान सटीकता के निकट हो सकते हैं, मगर एकदम सटीक भविष्यवाणी कोई नहीं कर सकता। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि जिस फार्मूले से पूर्वानुमान निकाले जाते हैं, उसमें दो और दो चार नहीं होते, इसलिए पूर्वानुमान में हमेशा अनुमान ही जताया जाता है, पूरी तरह प्रामाणिक भविष्यवाणी नहीं की जाती। इसके लिए भौगोलिक परिस्थितियां भी जिम्मेदार हैं। मौसम विभाग के राडार, आटोमैटिक वेदर स्टेशन (स्वचालित मौसम केंद्र) और वर्षा नापने के लिए रेन गोज उपकरणों का नीचे के स्तर तक विस्तार न होना भी उत्तरदायी है। वैसे पिछले कुछ सालों में हमारे पूर्वानुमान काफी हद तक सटीक साबित हो रहे हैं। आपदाओं के चलते होने वाली जानमाल की हानि भी अब बहुत कम हो गई है। आप देखेंगे कि पिछले 10 सालों में हमारे पूर्वानुमान में 40-50 प्रतिशत सुधार हुआ है। आज के समय में हम जो भारी वर्षा का पूर्वानुमान जारी करते हैं, 80 प्रतिशत तक सही और मात्र 20 प्रतिशत तक गलत जाता है।

    बेहतर पूर्वानुमान के लिए मौसम विभाग ने भारत पूर्वानुमान प्रणाली भी विकसित की थी। इसका क्या असर है और आने वाले समय में क्या विस्तार किया जाएगा?

    अभी तक आइएमडी सुपर कंप्यूटर की मदद से 12 किमी की रेंज में मौसम पूर्वानुमान जारी करता रहा है। यानी ब्लाक स्तर पर हम मौसम की जानकारी देते थे। नई प्रणाली से छह किमी के दायरे में पूर्वानुमान जारी किया जा रहा है, यानी पंचायत स्तर पर हम मौसम का हाल बता रहे हैं। भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आइआइटीएम) पुणे द्वारा विकसित बीएफएस भविष्यवाणी करने वालों को छोटे पैमाने की मौसम विशेषताओं का अधिक सटीक पूर्वानुमान लगाने में सक्षम बनाती है। मौसम विज्ञानियों द्वारा विकसित नया पूर्वानुमान माडल आइआइटीएम परिसर में 11.77 पेटाफ्लाप की क्षमता और 33 पेटाबाइट्स की भंडारण क्षमता वाले नए सुपर कंप्यूटर अर्का की स्थापना से संभव हुआ। पिछले सुपर कंप्यूटर 'प्रत्युष' को पूर्वानुमान माडल चलाने में 10 घंटे तक का समय लगता था। अर्का चार घंटे के भीतर ही डाटा-क्रंचिंग कर लेता है। पहले के माडल 12 किमी के ग्रिड के लिए पूर्वानुमान देते थे, जबकि बीएफएस छह किमी के ग्रिड में होने वाली संभावित मौसम घटनाओं के बारे में जानकारी देता है। बीएफएस माडल को चलाने के लिए देश भर के 40 डापलर मौसम रडार के नेटवर्क से डाटा का उपयोग किया जाएगा, जिससे मौसम कार्यालय को अधिक स्थानीय पूर्वानुमान और वर्तमान पूर्वानुमान जारी करने में मदद मिलेगी। धीरे-धीरे डापलर राडार की संख्या बढ़कर 100 हो जाएगी, जिससे मौसम विभाग देशभर में अगले दो घंटों के लिए पूर्वानुमान जारी कर सकेगा।

    मानसून जाते-जाते भी बंगाल सहित कई राज्यों को डुबो गया। पैटर्न से क्या समझें?

    देखिए मैंने 15 अप्रैल और 26 मई को प्रेस वार्ता में इस आशय का पूर्वानुमान पहले ही दे दिया था। लेकिन इस स्थिति का पैटर्न के तौर पर आंकलन करना सहज नहीं है। इसके लिए तो पिछले 50 साल का रिकार्ड देखना पड़ेगा। मानसून की परिस्थितियां बदलती रहती हैं।

    क्या मानसून के इस रुख का असर आने वाले मौसम पर पड़ेगा? ठंड ज्यादा पड़ेगी या कम? गर्मी का मौसम कैसे रहेगा?

    इस बार हुई मानसून की वर्षा रबी की फसलों के लिए बहुत फायदेमंद साबित होगी। अच्छी बारिश से मिट्टी में नमी बरकरार है। पानी की कमी भी पूरी हो गई है। सिंचाई के लिए पानी की कमी नहीं रह गई है। यानी, कृषि जगत के लिए मानसून अच्छा रहा है और भूजल स्तर के लिए भी। नदियों में भी जल स्तर बढ़ा है। हालांकि इसका ठंड पर कितना असर पड़ेगा, यह कहना थोड़ा मुश्किल है। हम 30 सितंबर या एक अक्टूबर को अपना पहला पूर्वानुमान जारी करेंगे।