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    देश का ऑटो सेक्टर 2050 तक नेट-जीरो उत्सर्जन कैसे प्राप्त कर सकता है? CEEW नई रिपोर्ट में आया सामने

    Updated: Tue, 29 Jul 2025 08:33 PM (IST)

    एक नई रिपोर्ट के अनुसार भारत का ऑटोमोबाइल उद्योग 2050 तक अपने उत्पादन उत्सर्जन को 87% तक कम कर सकता है। यह स्वच्छ बिजली और कम कार्बन उत्सर्जन वाले स्टील के उपयोग से संभव है। सीईईडब्ल्यू के अध्ययन में तीन प्रकार के उत्सर्जन का आकलन किया गया है जिसमें सप्लाई चेन उत्सर्जन 84% से अधिक है। विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रीन मैटीरियल्स की मांग बढ़ाने पर ध्यान देना होगा।

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    वाहन निर्माता कंपनियों को नियंत्रित करना होगा कार्बन उत्सर्जन।

    संजीव गुप्ता, नई दिल्ली । विश्व में तीसरा स्थान रखने वाला भारत का ऑटोमोबाइल उद्योग स्वच्छ बिजली और कम कार्बन उत्सर्जन वाले स्टील का इस्तेमाल करके 2050 तक अपने उत्पादन से जुड़े उत्सर्जन को 87 प्रतिशत तक घटा सकता है।

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    यह जानकारी काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) की नई रिपोर्ट ‘हाउ कैन इंडियाज आटोमोबाइल मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर गो नेट जीरो? एक्सप्लोरिंग डीकार्बोनाइजेशन पाथवेज’ से सामने आई है।

    यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है, जब कई विनिर्माताओं ने बीते वर्षों में इलेक्ट्रिक व हाइब्रिड वाहनों का अपना उत्पादन बढ़ाया है और इसके साथ ही वे उत्सर्जन कटौती करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य भी तय कर रहे हैं।

    रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के कई आटो विनिर्माताओं ने कार्बन उत्सर्जन को नेट-जीरो करने की वैश्विक परिभाषाओं के अनुरूप विज्ञान आधारित लक्षित पहल के प्रति भी अपनी प्रतिबद्धता जताई है।इसके लिए 2050 तक सभी वाहन निर्माण शृंखलाओं के कार्बन उत्सर्जन को घटाने की जरूरत है।

    रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के प्रमुख वाहन विनिर्माताओं के लिए आपूर्ति शृंखला को स्वच्छ बनाने से न केवल कार्बन उत्सर्जन घटेगा, बल्कि उनकी दीर्घकालिक लाभ प्रतिस्पर्धात्मकता भी बढ़ेगी और वे पसंदीदा अंतरराष्ट्रीय आपूर्तिकर्ता के रूप में स्थापित हो पाएंगे।

    सीईईडब्ल्यू का अध्ययन तीन दायरों में उत्सर्जन का आकलन करता है। वाहन विनिर्माण से होने वाला प्रत्यक्ष उत्सर्जन (स्कोप-1), बिजली के उपयोग से होने वाला अप्रत्यक्ष उत्सर्जन (स्कोप-2) और अपस्ट्रीम सप्लाई चेन का उत्सर्जन (स्कोप-3)।

    भारतीय आटो उद्योग के उत्सर्जन में स्कोप-3 का हिस्सा करीब 84 प्रतिशत से अधिक है, जिसका मुख्य कारण वाहन विनिर्माण में कोयले के उपयोग पर आधारित स्टील और रबर का इस्तेमाल है।

    सीईईडब्ल्यू के डाॅ. अरुणभा घोष ने कहा, “कम कार्बन उत्सर्जन वाली वैश्विक अर्थव्यवस्था में अग्रणी बने रहने के लिए, हमें न केवल उन वाहनों को, जिन्हें हम चलाते हैं, बल्कि उन्हें बनाने वाली औद्योगिक प्रक्रियाओं को भी डीकार्बोनाइज ((कार्बन उत्सर्जन मुक्त) करना होगा।”

    उन्होंने कहा, “वाहन विनिर्माताओं को यह देखना होगा कि उनके वाहन कैसे बनते हैं, किससे उनकी फैक्ट्रियां चलती हैं और उनके आपूर्तिकर्ता स्टील और रबर जैसी प्रमुख सामग्रियों को कैसे बनाते हैं।

    उन्हें अब ग्रीन मैटीरियल्स (कम कार्बन उत्सर्जन वाली प्रक्रिया से निर्मित सामग्री) की मांग बढ़ाने, लागत घटाने और स्वच्छ तकनीकों के इस्तेमाल में तेजी लाने पर ध्यान देना चाहिए।"

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