Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    IIT दिल्ली की छात्रा का लोथल में शोध के दौरान गड्ढे में गिरने से मौत, भविष्य के लिए SOP बनाने के निर्देश

    Updated: Sun, 29 Jun 2025 06:28 PM (IST)

    आईआईटी दिल्ली की एक छात्रा की गुजरात के लोथल में शोध के दौरान गड्ढे में गिरने से मौत हो गई थी। इस घटना पर आईआईटी दिल्ली की समिति ने रिपोर्ट सौंपी है जिसमें हादसे को दुर्भाग्यपूर्ण बताया गया है। समिति ने फील्ड वर्क के लिए सुरक्षा दिशानिर्देशों का पालन करने और उचित अनुमति लेने की सिफारिश की है। रिपोर्ट में सुरक्षा मानकों की कमी पर भी चिंता जताई गई है।

    Hero Image
    लोथल में छात्रा की मौत को माना हादसा, भविष्य के लिए एसओपी बनाई।

    उदय जगताप, नई दिल्ली। गुजरात के लोथल में शोध कार्य के दौरान गड्ढे में गिरने से शोध छात्रा की मौत के मामले में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली की ओर से गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। समिति ने हादसे को दुर्भाग्यपूर्ण घटना बताया है। एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) भी बनाई है। ऐसे शोध कार्यों में दिशानिर्देश का पालन करने को कहा है। साथ ही फील्ड वर्क से पहले संस्थान, विभाग व स्वजन से अनुमति लेने के निर्देश दिए हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    पिछले साल नवंबर में आईआईटी दिल्ली के पर्यावरण विज्ञान विभाग की छात्रा सुरभि वर्मा, प्रो. यामा दीक्षित के साथ गुजरात के लोथल में हड़प्पा कालीन क्षेत्र में शोध कार्य के लिए गईं थीं। इसके लिए उन्होंने करीब 10 से 12 फीट का गड्ढा खोदा था। गड्ढे से मिट्टी का नमूना लेने सुरभि को उतारा गया था, यहां मिट्टी ढह गई और उसके नीचे दबने से छात्रा की मौत हो गई थी।

    विस्तृत तकनीकी विश्लेषण नहीं कर पाई

    समिति घटना स्थल की खुदाई की उपयुक्त फोटोग्राफ उपलब्ध नहीं होने के कारण विस्तृत तकनीकी विश्लेषण नहीं कर पाई। समिति ने रिपोर्ट में कुछ महत्वपूर्ण पहलूओं का जिक्र किया है। इसमें कहा गया है कि यह खुदाई 10 फीट गहरी, पांच फीट चौड़ी और 10 फीट लंबी थी तथा जलोढ़ मैदान क्षेत्र में की जा रही थी। समिति के अनुसार, यह गड्ढा बहुत गहरा नहीं था और इसका गिरना एक दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना थी।

    वर्तमान में ऐसी उथली खुदाइयों के लिए कोई अनिवार्य एसओपी या सुरक्षा प्रोटोकाल निर्धारित नहीं हैं। रिपोर्ट में अहम सिफारिशें भी की गई हैं। भविष्य में खोदाई के लिए सड़क से दूर स्थलों का चयन किया जाए ताकि भारी वाहनों की कंपन से दीवारों पर असर न पड़े। खुदाई की चौड़ाई कम से कम 3.5 से चार मीटर रखी जाए, ताकि टीम के लोग सुरक्षित उतर-चढ़ सकें।

    खोदाई के दौरान निकाली गई मिट्टी को तुरंत हटा लिया जाए ताकि गड्ढे की दीवारों पर अधिक भार न पड़े। गड्ढे की दीवारों को हल्का तिरछा रखा जाए और एक ओर सीढ़ी या रैंप बनाया जाए। खुदाई के दौरान या बाद में दीवारों पर किसी भी प्रकार की दरार आने पर तुरंत कार्य रोका जाए। इस तरह के फील्डवर्क के लिए छात्रों के माता-पिता, विभागाध्यक्ष, संस्थान और स्थानीय प्रशासन से पूर्व अनुमति (अनापत्ति प्रमाण पत्र) ली जाए ताकि किसी भी अप्रत्याशित घटना से निपटा जा सके।

    समिति ने माना कि घटना सिर्फ एक दुर्घटना थी

    समिति ने माना कि घटना सिर्फ एक दुर्घटना थी, लेकिन इससे यह स्पष्ट होता है कि आइआइट जैसे शीर्ष संस्थानों में भी फील्डवर्क के लिए सुरक्षा मानकों की स्पष्ट व्यवस्था नहीं है। विशेषज्ञों ने इसे शोध कार्यों की सुरक्षा के लिहाज से चेतावनी माना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि खुदाई कार्यों के लिए सुरक्षा प्रोटोेकाल तैयार करना और उन्हें सख्ती से लागू करना अब समय की मांग है, ताकि आगे कोई छात्र या शोधकर्ता अपनी जान न गंवाए।

    मार्च में गठित हुई थी समिति

    आईआईटी दिल्ली के निदेशक प्रो. रंगन बनर्जी ने यह समिति 12 मार्च 2025 को गठित की थी। जिसमें भूविज्ञान और सिविल इंजीनियरिंग के विशेषज्ञ शामिल थे। आईआईटी कानपुर प्रो. जावेद एन मलिक को अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। प्रो. हेमा आच्युतन, अन्ना विश्वविद्यालय, चेन्नई, प्रो. दीपांकर चौधुरी, आइआटी बाम्बे इसमें शामिल थे।

    सवाल अनसुलझे

    समिति ने माना है कि फील्डवर्क के लिए दिशानिर्देशों का अभाव है। इसके बावजूद घटना के बाद भी किसी की कोई जिम्मेदारी तय नहीं की गई है। छात्रा के स्वजन ने आरोप लगाए थे कि मिट्टी का नमूना लेने छात्रा को अकेले उतारा गया था। मिट्टी दलदली थी। उसके बावजूद सुरक्षा मानकों का पालन नहीं किया गया। वहां आपदा प्रबंधन से जुड़े लोग उपस्थित नहीं थे। स्वजनों के इन सवालों के जवाब अभी तक नहीं मिले हैं।