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दुनिया के तमाम देशों में लोकप्रिय है हिंदी, किताबों के प्रति भी है खास लगाव

यूरोप में हिंदी साहित्य की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि महाभारत का पोलैंड में एक सौ साल पहले ही पोलिश में अनुवाद हो चुका है। अब वहां रामायण का अनुवाद किया जा रहा है।

By Amit MishraEdited By: Published: Sat, 13 Jan 2018 02:01 PM (IST)Updated: Sun, 14 Jan 2018 09:31 AM (IST)
दुनिया के तमाम देशों में लोकप्रिय है हिंदी, किताबों के प्रति भी है खास लगाव
दुनिया के तमाम देशों में लोकप्रिय है हिंदी, किताबों के प्रति भी है खास लगाव

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। हिंदी विश्व की तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा नहीं है। आत्मीयता का भाव समेटे इस भाषा के कद्रदानों की कमी विदेशों में भी नहीं है। इसका साक्षात प्रमाण इन दिनों प्रगति मैदान में चल रहे 26वें विश्व पुस्तक मेले में देखने को मिल रहा है। यूरोपीय संघ (ईयू) के मंडप में विदेशी स्टाल पर भी हिंदी में विदेशी साहित्य देशी-विदेशी सभी पाठकों को लुभा रहा है।

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यूरोपीय संघ के 23 सदस्य देशों की उपस्थिति दर्ज

हॉल नं. 7 एक, बी, सी में बनाए गए ईयू मंडप में यूरोपीय संघ के 28 में से 23 सदस्य देशों की उपस्थिति दर्ज हुई है। ये देश हैं- ऑस्ट्रिया, साइप्रस, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, ग्रीस, हंगरी, लातविया, पोलैंड, पुर्तगाल, स्लोवेनिया, स्वीडन तथा स्विटजरलैंड। इन देशों की स्टाल से गुजरते हुए रैक में करीने से सजाई हुई हिंदी पुस्तकों को देख हिंदी प्रेमी पाठकों की आंखें चमक उठती हैं। 

हिंदी में विदेशी साहित्य 

जर्मनी के स्टाल पर अन्य पुस्तकों के अलावा योहान्न वोल्फगांग फॉन गोएठे की कविताओं की पुस्तक और हेर्टा म्यूलर की 'भूख का व्याकरण' एवं 'पेशी' पुस्तकें प्रदर्शित हैं। स्पेन के स्टाल पर रामोन ल्युल की चुनी हुई रचनाएं तथा 'बालेआर द्वीपों के कवि' शीर्षक से 20वीं सदी के कवियों और उनकी कविताओं का संकलन उपलब्ध है। पोलैंड के स्टाल पर आदम जगयेफ्स्की लिखित पुस्तक 'परायी सुंदरता में' तथा रिषार्ड कापुश्चिंस्की की 'शाहों का सार' प्रदर्शित है। स्वीडन के स्टाल पर बच्चों की ढेर सारी अनूदित पुस्तकें प्रदर्शित हैं। इसी तरह यूरोपीय संघ के एक अन्य स्टाल, जो विभिन्न देशों की मिश्रित पुस्तकों का स्टाल है, पर भी संघ देशों की हिंदी में अनूदित पुस्तकें प्रदर्शित हैं। 

भारतीय भाषाओं में पुस्तकें

यूरोपीय देशों के स्टालों पर हिंदी और भारतीय भाषाओं की पुस्तकें देखकर एक भारतीय पाठक को सहज ही गर्व और हर्ष की सुखद अनुभूति होती है। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास से भी यूरोपीय संघ के दो देशों की पुस्तकों के हिंदी अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। पोलैंड के लेखक मिहाऊ रुशिनेक द्वारा लिखित पुस्तक का हिंदी अनुवाद 'नन्हा शोपेन' जबकि स्वीडन के लेखक जुज्जा व वाइजलैंडर लिखित पुस्तक का हिंदी अनुवाद 'कजरी गाय झूले पर' नाम से प्रकाशित है।

हिंदी साहित्य के प्रति यूरोप के पाठकों में खासी रूचि

यूरोपीय संघ के राजदूत टोमाश कोजलॉस्की ने कहा कि हिंदी साहित्य के प्रति यूरोप के पाठकों में खासी रूचि है। इसीलिए न केवल वहां की पुस्तकों का हिंदी भाषा में बल्कि हिंदी की पुस्तकों का वहां की स्थानीय भाषाओं में भी अनुवाद होता रहा है। यूरोप में हिंदी साहित्य की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि महाभारत का पोलैंड में एक सौ साल पहले ही पोलिश में अनुवाद हो चुका है। अब वहां रामायण का अनुवाद किया जा रहा है।

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