कम जगह में अधिक बिजली उत्पादन, IIT दिल्ली ने विकसित की नई सोलर सेल तकनीक; चीन और दूसरे देशों पर निर्भरता होगी खत्म
आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ताओं ने उच्च दक्षता वाली सिलिकॉन हेटरोजंक्शन (एसएचजे) सोलर सेल विकसित की है जो कम जगह में अधिक बिजली उत्पादन करेंगे। इससे सोलर सेल के लिए चीन और दूसरे देशों पर निर्भरता खत्म हो जाएगी। इस तकनीक से बने सोलर सेल उच्च तापमान पर भी बेहतर प्रदर्शन करेंगे और अधिक विद्युत उत्पादन करेंगे। यह विकास भारत को सोलर तकनीक में आत्मनिर्भर बनाएगा।

उदय जगताप, नई दिल्ली। भारत लंबे वक्त से सोलर सेल से बिजली उत्पादन की तकनीक के लिए चीन और दूसरे देशों पर निर्भर था। पर, जल्द ही यह निर्भरता समाप्त हो जाएगी।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली के शोधकर्ताओं ने एक बड़ी सफलता हासिल करते हुए उच्च दक्षता वाली सिलिकॉन हेटरोजंक्शन (एसएचजे) सोलर सेल विकसित की है, जिसकी विद्युत उत्पादन की क्षमता 23 प्रतिशत से अधिक है।
यह उपलब्धि आईआईटी दिल्ली के एनर्जी साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग के सोलर फोटोवोल्टिक ग्रुप द्वारा हासिल की गई है।
सिलिकॉन आधारित सोलर तकनीक निभा रही मुख्य भूमिका
वर्तमान में, दुनिया में ग्रीन एनर्जी की जरूरतों को पूरा करने में सिलिकॉन आधारित सोलर तकनीक मुख्य भूमिका निभा रही है। पूरी दुनिया में सोलर पावर प्लांट से विद्युत उत्पादन की कुल क्षमता 2200 गीगावाट तक पहुंच गई है। इसमें भारत का योगदान 100 गीगावाट से अधिक है।
(उच्च दक्षता वाली सिलिकान हेटरोजंक्शन (एसएचजे) सोलर सेल विकसित करने वाली लैब का द़ृश्य। सौजन्य आइआइटी दिल्ली)
इनमें से 95 प्रतिशत से ज्यादा इकाइयों में सिलिकॉन सोलर सेल्स का इस्तेमाल हो रहा है। एसएचजे तकनीक पारंपरिक सोलर सेल्स की तुलना में कई फायदे देती है, जैसे कि ज्यादा तापमान पर बेहतर प्रदर्शन, दोनों तरफ से रोशनी सोखने की क्षमता और अधिक विद्युत उत्पादन।
साथ ही, यह तकनीक कम तापमान पर और आसान प्रक्रिया से तैयार की जा सकती है, जिससे इसकी लागत भी भविष्य में घटेगी।
सोलर सेल की पांचवीं जेनरेशन विकसित की
शोध के प्रमुख सोलर एनर्जी साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर वामसी कृष्ण कोमाराला ने कहा, भारत में तीसरी जनरेशन के सोलर पैनल बनते हैं। हमने पांचवी जनरेशन के सोलर सेल विकसित किए हैं।
एक बाय एक इंच के सोलर पैनल प्रयोगशाला में बनाए हैं। इनका फिल फैक्टर लगभग 81 प्रतिशत और वोल्टेज करीब 735 एमवी है, जो कि छोटे आकार के सोलर सेल्स के लिए बेहद प्रभावशाली है।
यह विकास पूरी तरह भारत में उपलब्ध संसाधनों और उपकरणों के आधार पर किया गया है, जिससे यह साफ होता है कि भविष्य में भारत इस तकनीक में आत्मनिर्भर बन सकता है।
अभी अंतरराष्ट्रीय मानकों से पीछे लेकिन...
अभी अंतरराष्ट्रीय मानकों से पीछे हैं। लेकिन,यह तकनीक भारत में पहली बार बनी है और इसे बनाने में 10 वर्ष का समय लगा है। इनकी दक्षता अधिक है यानी एसएचजे तकनीक के दो सोलर सेल पांच आम सेल के बराकर बिजली का उत्पादन करेंगे।
भारत में अक्सर सेल के कांच पर रोशनी पड़ने पर अंदर का तापमान 70 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। इससे क्षमता कम हो जाती है। लेकिन, यह सेल क्षमता को कम नहीं होने देंगे।
कई देश कर रहे इस तकनीक का उपयोग
प्रो.कोमाराला ने कहा, प्रयोगशाला में छह बाय छह इंच के सेल बनाने पर काम कर रहे हैं। इन्हें जब इंडस्ट्री में ले जाया जाएगा तो इनकी क्षमता वहां उत्पादन के बाद थोड़ी और बढ़ जाएगी।
प्रयोगशालाओं की सीमाओं के चलते अभी ऐसा नहीं हो पा रहा है। अभी यह तकनीक चीन, स्विट्जरलैंड, जर्मनी और जापान में इस्तेमाल हो रही है। जब प्रयोगशाला से बाहर निकलकर तकनीक इंडस्ट्री तक पहुंचेगी तब हम भी इसमें शामिल हो जाएंगे।
सोलर चैलेंज अवार्ड योजना के तहत की गई विकसित
प्रो. कोमाराला ने कहा, यह शोध कार्य इंस्टिट्यूट आफ एमिनेंस ग्रांट और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की सोलर चैलेंज अवार्ड योजना के तहत किया गया है। इसके लिए आईआईटी दिल्ली की सेंट्रल और नैनोस्केल रिसर्च फैसिलिटी का उपयोग किया गया।
इसके लिए 12 करोड़ का फंड दिया गया। प्रतियोगिता में आईआईटी मुंबई और मद्रास भी शामिल थे। लेकिन, आईआईटी दिल्ली ने पहले इसे विकसित किया है। उन्होंने कहा अगर छोटे आकार में अधिक क्षमता विकसित की जाती है, तो भविष्य में गाड़ियों में भी इसका उपयोग किया जा सकेगा।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।