Delhi News: मेधा पाटकर मानहानि मामले में हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही स्थगित
दिल्ली उच्च न्यायालय ने मेधा पाटकर द्वारा उपराज्यपाल वीके सक्सेना के खिलाफ दायर मानहानि शिकायत में साकेत कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगा दी है। न्यायमूर्ति कौर ने निचली अदालत को 20 मई के बाद तारीख देने का निर्देश दिया। पाटकर ने गवाह से जिरह करने की अर्जी खारिज करने को चुनौती दी थी। अदालत ने मुकदमे पर रोक लगाई क्योंकि उच्च न्यायालय में याचिका लंबित है।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर द्वारा दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना के खिलाफ दायर मानहानि शिकायत में साकेत कोर्ट को कार्यवाही स्थगित करने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति शैलिंदर कौर की पीठ ने निचली अदालत को मामले में 20 मई के बाद की तारीख देने का निर्देश दिया।
पाटकर की अपील याचिका पर सुनवाई
अदालत पाटकर की अपील याचिका पर सुनवाई कर रही है। पाटकर ने गवाह से जिरह करने के उनके अनुरोध को खारिज करने के साकेत कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है। पाटकर ने कहा था कि उक्त गवाह का नाम शुरू में गवाहों की सूची में नहीं था।
बुधवार को सुनवाई के दौरान पाटकर की ओर से पेश हुए अधिवक्ता अभिमन्यु श्रेष्ठ ने पीठ को बताया कि यदि मुकदमे पर रोक नहीं लगाई गई तो उच्च न्यायालय के समक्ष दायर याचिका निरर्थक हो जाएगी। उन्होंने यह भी बताया कि मामला उच्च न्यायालय में लंबित होने के बावजूद न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी की अदालत में मुकदमे की कार्यवाही जारी है।
28 जनवरी को पाटकर ने निचली अदालत से कहा कि वह एक अन्य गवाह से पूछताछ करना चाहती हैं, जिसे शुरू में पेश किए गए गवाहों की सूची में शामिल नहीं किया गया था। पाटकर ने इस संबंध में 18 फरवरी को मजिस्ट्रेट अदालत में एक आवेदन दायर किया था और निचली अदालत ने 18 मार्च को इसे खारिज कर दिया था।
क्या है पूरा मामला?
गौरतलब है कि 25 नवंबर 2000 को मेधा पाटकर ने एक बयान में वीके सक्सेना पर हवाला लेन-देन का आरोप लगाया था और उन्हें कायर कहा था। मेधा पाटकर ने कहा था कि वीके सक्सेना विदेशी हितों के लिए गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को गिरवी रख रहे हैं। उस समय वीके सक्सेना अहमदाबाद स्थित काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज नामक एक एनजीओ के प्रमुख थे।
वीके सक्सेना ने 2001 में अहमदाबाद की अदालत में मेधा पाटकर के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा दायर किया था। गुजरात की निचली अदालत ने इस मामले का संज्ञान लिया था। 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने मामले को सुनवाई के लिए गुजरात से दिल्ली के साकेत कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया था।
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