दिल्ली में HIFU तकनीक से बची 43 वर्षीय मरीज की जान, बिना ऑपरेशन किया प्रोस्टेट कैंसर का इलाज
नई दिल्ली में 43 वर्षीय प्रोस्टेट कैंसर रोगी की जान एचआईएफयू तकनीक से बचाई गई। राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट के डॉक्टरों ने बिना ऑपरेशन के केवल कैंसर वाले हिस्से का इलाज किया। लांसेट कमीशन के अनुसार भारत में प्रोस्टेट कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं लेकिन एचआईएफयू जैसी तकनीकें मरीजों के लिए नई उम्मीद लेकर आई हैं। इससे जीवन की गुणवत्ता बनाए रखने में मदद मिलती है।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। प्रोस्टेट कैंसर अब केवल बुजुर्गों की बीमारी नहीं रह गई है। जीवनशैली में बदलाव के चलते अन्य भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। लांसेट कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्रतिवर्ष 33 से 42 हजार केस प्रोस्टेट कैंसर के आते हैं। वर्ष 2040 तक इसके नए मामलों की संख्या 71 हजार तक पहुंचने की आशंका है। जल्द पहचान और प्रभावी उपचार से मरीजों का जीवन बचाया जा सकता है, हाई-इंटेंसिटी फोकस्ड अल्ट्रासाउंड (एचआइएफयू) तकनीक बेहतर साबित हो रहा है।
बिना ऑपरेशन किया इलाज
रोहिणी स्थित राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च की टीम ने हाल ही में 43 वर्षीय मरीज की जान इसी तकनीक से बचाई है, जो देश के सबसे कम उम्र के प्रोस्टेट कैंसर मरीजों में से एक था। टीम ने बिना प्रोस्टेट को नुकसान पहुंचाए केवल कैंसर वाले हिस्से का इलाज किया, वो भी बिना आपरेशन। मरीज अब पूरी तरह स्वस्थ है।
शुरुआती रिपोर्ट्स में कैंसर कंट्रोल
दरअसल, वरिष्ठ यूरो व आंकोलाजिस्ट प्रो. सुधीर कुमार रावल के निर्देशन में संस्थान ने एचआइएफयू तकनीक 2024 में अपनाया गया। इस तकनीक को एमआरआइ फ्यूजन बायोप्सी और जेनेटिक प्रोफाइलिंग जैसी आधुनिक जांचों के साथ मिलाकर मरीजों को पूरी तरह व्यक्तिगत इलाज दिया जा रहा है।
प्रो. रावल के मुताबिक एमआरआई से शुरुआती अवस्था में कैंसर पकड़ में आ गया। उपचार के बाद मरीज को जिंदगीभर के साइड इफेक्ट्स का डर नहीं झेलना पड़ेगा। उसकी रिकवरी तेज हो रही है। पेशाब पर नियंत्रण होने के साथ ही यौन क्षमता बनी रही। शुरुआती रिपोर्ट्स में कैंसर कंट्रोल में है।
ब्रिटेन से दिल्ली तक एचआईएफयू नई उम्मीद
वर्ष 2012 में यूनिवर्सिटी कालेज-लंदन के प्रो. मार्क एंबरटन और उनकी टीम ने एक बड़ा सवाल उठाया। उनके मुताबिक क्या हम सिर्फ कैंसर वाले हिस्से का इलाज कर सकते हैं, बिना पूरी प्रोस्टेट को नुकसान पहुंचाए? एचआइएफयू के ट्रायल में जो नतीजे सामने आए, वे उम्मीद से कहीं बेहतर थे। एक वर्ष बाद भी मरीज को पेशाब रोक पाने में कोई दिक्कत नहीं हुई।
कोई साइडइफेक्ट भी नहीं रहा
वहीं, 90 प्रतिशत मरीजों में यौन क्षमता बनी रही। इस इलाज ने मरीजों को पहली बार ये विकल्प दिया कि वे कैंसर से भी लड़ सकें और अपनी जीवन की गुणवत्ता भी बनाए रख सकते हैं। तकनीक लागू होने के सात वर्ष के बाद के आंकड़ों में ब्रिटेन के हेल्थ सेंटरों के 97 प्रतिशत मरीज जीवित मिले। प्रोस्टेट कैंसर से लगभग कोई मौत नहीं हुई। साथ ही, इसका किसी प्रकार का कोई साइडइफेक्ट भी नहीं रहा।
देश में इन अस्पतालों में है एचआईएफयू
एचआईएफयू तकनीक देश में राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च-दिल्ली, टाटा मेमोरियल हास्पिटल-मुंबई व कोकिलाबेन अस्पताल-मुंबई में नोवोमेड इनकार्पोरेशन के सहयोग से उपलब्ध है। इससे प्रोस्टेट कैंसर के इलाज में ऑपरेशन का डर खत्म हो रहा है।
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