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    Delhi Heatwave: बढ़ती गर्मी गर्भवती महिलाओं के लिए खतरनाक, एक्सपर्ट ने दी बचाव की सलाह

    नई दिल्ली से आई खबर के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती गर्मी गर्भवती महिलाओं के लिए खतरनाक साबित हो रही है। पिछले पांच सालों में दुनिया के 90% से ज़्यादा देशों में गर्भावस्था के लिए खतरनाक गर्म दिनों की संख्या दोगुनी हो गई है। विशेषज्ञ इस स्थिति को गंभीर बताते हुए जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने की सलाह दे रहे हैं।

    By sanjeev Gupta Edited By: Rajesh KumarUpdated: Mon, 19 May 2025 07:12 PM (IST)
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    गर्भ में पल रहे जीवन पर भी असर। फाइल फोटो

    संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। पसीने से तर दोपहर सिर्फ चुभन ही नहीं दे रही, बल्कि गर्भ में पल रहे जीवन पर भी हमला कर रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती गर्मी अब गर्भवती महिलाओं के लिए जानलेवा साबित हो रही है।

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    पिछले पांच सालों में दुनिया के 90 फीसदी देशों में गर्भावस्था के लिए खतरनाक गर्म दिनों की संख्या दोगुनी हो गई है। चिंता की बात यह है कि यह बदलाव सिर्फ मौसम का नहीं है, बल्कि यह हमारी नीतियों, हमारे ऊर्जा स्रोतों और हमारी लापरवाही का भी नतीजा है।

    गैर सरकारी संगठन क्लाइमेट सेंट्रल की नवीनतम रिपोर्ट से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया के 90 प्रतिशत से अधिक देशों में गर्भवती महिलाओं को अब हर साल खतरनाक गर्मी के दोगुने दिन सहना पड़ता है।

    नई रिपोर्ट (2020 से 2024) से पता चलता है कि इंसानों की वजह से होने वाले जलवायु परिवर्तन ने उस हद तक गर्मी पैदा की है जो पहले कभी नहीं देखी गई। रिपोर्ट के मुताबिक, 247 देशों और 940 शहरों के तापमान का विश्लेषण किया गया।

    इसमें पाया गया कि अब औसतन हर साल कई दिन ऐसे होते हैं जब किसी इलाके का तापमान उसके इतिहास के 95 फीसदी से भी ज्यादा होता है। ये दिन गर्भवती महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक माने जाते हैं।

    क्यों डराने वाली है ये बात?

    ऐसे "हीट-रिस्क डेज" यानी गर्भावस्था के लिए खतरनाक गर्म दिन समय से पहले जन्म के जोखिम को बढ़ाते हैं। एक बार समय से पहले जन्म होने पर न केवल बच्चे के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है, बल्कि मां को भी बाद में कई जटिल स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

    रिपोर्ट में सामने आए कुछ अन्य अहम तथ्य

    • हर देश में ऐसे गर्म दिनों में वृद्धि देखी गई। इसका सबसे बड़ा कारण कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधन का जलना है।
    • 247 देशों और क्षेत्रों में से 222 में, पिछले पांच वर्षों में ऐसे खतरनाक गर्म दिनों की संख्या दोगुनी से भी अधिक हो गई है।
    • 78 देशों में, जलवायु परिवर्तन ने हर साल एक अतिरिक्त महीने की गर्मी बढ़ा दी है। यानी गर्भवती महिलाओं के लिए 30 दिन और खतरनाक माने जाते हैं।
    • कई देशों और शहरों में, गर्मी के जोखिम वाले सभी दिन जलवायु परिवर्तन के कारण थे। अगर यह परिवर्तन नहीं हुआ होता, तो शायद वहां इतनी गर्मी नहीं पड़ती।

    सबसे ज़्यादा असर कहां?

    स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में पहले से ही पिछड़े हुए देश, जैसे कि कैरेबियाई देश, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत द्वीप समूह, दक्षिण-पूर्व एशिया और उप-सहारा अफ्रीका, सबसे ज़्यादा पीड़ित हैं। जलवायु संकट में इनका योगदान सबसे कम है, लेकिन उन्हें ही इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।

    मां और बच्चे - दोनों की सेहत पर संकट

    गर्भावस्था के दौरान अत्यधिक गर्मी से उच्च रक्तचाप, गर्भावधि मधुमेह, अस्पताल में भर्ती होना, भ्रूण की मृत्यु और समय से पहले प्रसव जैसी गंभीर स्थितियाँ पैदा हो सकती हैं। और इसका असर न केवल जन्म तक बल्कि जीवन भर रह सकता है।

    क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

    महिला स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. ब्रूस बेकर ने कहा, "आज अत्यधिक गर्मी गर्भवती महिलाओं के लिए सबसे बड़ा ख़तरा बन गई है. ख़ासकर उन इलाकों में जहाँ स्वास्थ्य सुविधाएँ पहले से ही कमज़ोर हैं. अगर हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित रखना है तो हमें जीवाश्म ईंधन जलाना बंद करना होगा."

    वहीं, क्लाइमेट सेंट्रल में विज्ञान की उपाध्यक्ष डॉ. क्रिस्टीना डाहल कहती हैं, "गर्भावस्था के दौरान जानलेवा गर्मी का एक दिन भी बड़ी समस्या पैदा कर सकता है। अब जलवायु परिवर्तन ऐसे कई दिन जोड़ रहा है जिन्हें टाला जा सकता था। अगर हम अब भी कार्रवाई नहीं करेंगे तो स्थिति और खराब हो जाएगी।"

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