अफजल और मकबूल भट की कब्रों से जुड़ी याचिका पर HC का बड़ा फैसला, विचार करने से किया इनकार
दिल्ली हाई कोर्ट ने अफजल और मोहम्मद मकबूल भट की कब्रों को तिहाड़ जेल से हटाने की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि 12 साल बाद इसे चुनौती नहीं दी जा सकती। याचिकाकर्ता का कहना था कि कब्रों से आतंकवाद का महिमामंडन होता है।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। आतंकवादी मोहम्मद अफजल और मोहम्मद मकबूल भट्ट की कब्रों को तिहाड़ जेल परिसर से हटाने का निर्देश देने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर विचार करने से दिल्ली हाई कोर्ट ने इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि जेल में दफनाने का कार्य 2013 में हुआ था और अब 2025 है।
आप कह रहे हैं कि लोग वहां जाकर श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं, लेकिन इसके आंकड़े कहां हैं? 12 साल से वहां मौजूद एक कब्र को हटाने का अनुरोध किया जा रहा है, जबकि यह सरकार ने यह फैसला है और परिवार को शव देने या बाहर दफनाने की अनुमति देने के परिणामों को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया था।
क्या हम 12 साल बाद इसे चुनौती दे सकते हैं?
अदालत ने कहा कि ये बहुत संवेदनशील मुद्दे हैं। पीठ ने कहा कि किसी के अंतिम संस्कार का सम्मान किया जाना चाहिए। साथ ही, हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कोई कानून-व्यवस्था की समस्या न पैदा हो। सरकार ने इन्हीं मुद्दों को ध्यान में रखते हुए जेल में दफनाने का फैसला किया था। अदालत ने पूछा कि क्या हम 12 साल बाद इसे चुनौती दे सकते हैं?
अदालत के रुख को देखते हुए याचिकाकर्ता संस्था विश्व वैदिक सनातक संघ की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता ने याचिका वापस लेने की अनुमति देने का अनुरोध किया। इस पर पीठ ने याचिका को वापस लेने के आधार पर खारिज कर दिया। दोनों को फांसी की सजा सुनाई गई थी और फिर जेल परिसर में फांसी दी गई थी।
याचिका में कहा गया कि इनकी कब्रों को गुप्त स्थान पर स्थानांतरित किया जाए ताकि आतंकवाद का महिमामंडन और जेल परिसर का दुरुपयोग रोका जा सके। विश्व वैदिक सनातन संघ ने याचिका में दावा किया गया है कि जेल के अंदर इन कब्रों का निर्माण और उनका निरंतर अस्तित्व अवैध, असंवैधानिक और जनहित के विरुद्ध है।
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