दिल्ली हाई कोर्ट का अहम फैसला, GST में कमी के बाद कीमतों में कमी न करना धोखाधड़ी के समान
दिल्ली हाई कोर्ट ने जीएसटी दरों में कमी को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। अदालत के अनुसार जीएसटी दरें कम होने पर उपभोक्ताओं को कीमतों में सीधा लाभ मिलना चाहिए न कि उत्पादों में बदलाव करके उन्हें ठगा जाना चाहिए। कीमतों में बदलाव किए बिना मात्रा बढ़ाने से टैक्स कटौती का लाभ नहीं मिलता। अदालत ने यह फैसला मेसर्स शर्मा ट्रेडिंग कंपनी की याचिका पर सुनाया।

विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) दरों में हाल में किए गए भारी बदलाव के बीच दिल्ली हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। एक याचिका पर अदालत ने निर्णय सुनाया कि जीएसटी की दरें जब कम की जाती हैं, तो उपभोक्ताओं को कीमतों में प्रत्यक्ष गिरावट दिखनी चाहिए न कि उत्पादों में सूक्ष्म बदलाव करके उन्हें ठगा जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति प्रतिबा एम सिंह व न्यायमूर्ति शैल जैन की पीठ ने निर्णय में स्पष्ट किया कि कीमतों में बदलाव किए बगैर केवल मात्रा बढ़ाने या प्रमोशनल स्कीम चलाने से टैक्स कटौती का वास्तविक लाभ नहीं मिलता।
हाई कोर्ट का यह फैसला जीएसटी परिषद द्वारा 22 सितंबर 2025 से प्रभावी नए कर ढांचे में बड़े बदलाव के मद्देनजर महत्वपूर्ण है। इसमें बहु-स्लैब प्रणाली से मुख्य रूप से दो दरों पांच प्रतिशत और 18 प्रतिशत किया गया है, जबकि विलासिता वस्तुओं के लिए 40 प्रतितश की दर शामिल है।
हालांकि, वर्तमान मामला जीएसटी दरों में पहले की गई कमी से संबंधित है। पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि जीएसटी दरों को कम करने का उद्देश्य वस्तुओं और सेवाओं को खरीदारों के लिए अधिक किफायती बनाना है। इस तरह की प्रथाएं कटौती के उद्देश्य को विफल करती हैं और धोखाधड़ी के समान हैं।
अदालत ने उक्त टिप्पणी व निर्णय मेसर्स हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड के वितरक के रूप में माल की बिक्री के व्यवसाय में लगी मेसर्स शर्मा ट्रेडिंग कंपनी द्वारा दायर एक याचिका पर दिया। इसमें राष्ट्रीय मुनाफाखोरी निरोधक प्राधिकरण (एनएपीए) के सितंबर 2018 के आदेश को चुनौती दी गई थी।
एनएपीए ने जीएसटी दरों में कटौती का लाभ उपभोक्ताओं तक न पहुंचाने के कारण फर्म को मुनाफाखोरी का दोषी ठहराया और फर्म को मुनाफाखोरी के लिए 18 प्रतिशत ब्याज सहित उपभोक्ता कल्याण कोष में 550186 रुपये जमा करने का निर्देश दिया।
वर्ष 2017 में कर घटाकर 18 प्रतिशत कर दिए जाने के बाद भी फर्म ने वैसलीन की बिक्री पर 28 प्रतिशत जीएसटी वसूलना जारी रखा और उपभोक्ताओं को लाभ पहुंचाने के बजाय बेस मूल्य बढ़ा दिया।
कंपनी की याचिका का निपटारा करते हुए पीठ ने कहा कि जीएसटी में कमी का उद्देश्य उपभोक्ताओं के लिए उत्पादों और सेवाओं को अधिक लागत प्रभावी बनाना है।
पीठ ने कहा कि अदालत की राय जीएसटी दरों में कमी के पीछे का तर्क यह सुनिश्चित करना भी है कि उपभोक्ता को उक्त कमी का लाभ मिले। पीठ ने कहा कि मूल्य में कमी न करने को इस आधार पर उचित नहीं ठहराया जा सकता कि मात्रा बढ़ा दी गई है या कोई ऐसी योजना थी जो मूल्य वृद्धि को उचित ठहराती है।
पीठ ने कहा कि ऐसे दृष्टिकोण से जीएसटी दरों में कमी का पूरा उद्देश्य विफल होगा और इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।
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