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    Geetika Case: तथ्यों और सबूतों के सामने में नहीं टिक सके आरोप, पढ़ें Gopal Kanda को बरी करने वाला पूरा आदेश

    By Pooja TripathiEdited By: Pooja Tripathi
    Updated: Wed, 26 Jul 2023 05:16 PM (IST)

    अदालत ने कहा कि जाहिर है कि मृतक गीतिका ने सुसाइड नोट में बताया था कि आरोपित किस तरह के चरित्र वाले हैं लेकिन उन्होंने ऐसा कोई तथ्य पेश नहीं किया जिससे यह पता चल सके कि कैसे उसे धोखा दिया गया था या उनके भरोसे को तोड़ा गया था। जिसके कारण आत्महत्या के अलावा उनके सामने कोई विकल्प नहीं बचा था।

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    अदालत ने गोपाल कांडा को किया बरी।

    नई दिल्ली, विनीत त्रिपाठी। चर्चित एयरहोस्टेज गीतिका शर्मा की आत्महत्या के मामले में हरियाणा के पूर्व मंत्री गोपाल कांडा व अरुणा चड्ढा पर लगाए गए आरोप तथ्यों, साक्ष्याें और जांच की कसौटी पर साबित नहीं हो सके।

    अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विकास ढुल ने कहा कि रिकार्ड पर पेश किए गए सबूतों से पता चलता है कि आरोपित कांडा व गीतिका की मां के बीच कुछ पेपर पर हस्ताक्षर करने को लेकर बातचीत हुई थी। ऐसे में इस तरह की कल्पना नहीं की जा सकती है कि आरोपित की मंशा यह थी कि गीतिका आत्महत्या कर ले।

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    65 गवाह हुए पेश

    इंस्पेक्टर दिनेश कुमार द्वारा पेश किए गए सबूत के तहत गीतिका की मौत से सात से आठ महीने पहले तक कांडा की उनसे कोई बातचीत नहीं हुई थी। न ही अरुणा चड्ढा व गीतिका के बीच मौत से एक महीने पहले तक कोई बात हुई। इस मामले में अभियोजन पक्ष की तरफ से 65 गवाह पेश किए गए थे।

    सुसाइड नोट में थी गीतिका की हैंडराइटिंग

    गीतिका द्वारा छोड़े गए सुसाइड नोट पर अदालत ने पाया कि हैंडराइटिंग विशेषज्ञों की रिपोर्ट के अनुसार, उक्त सुसाइड नोट गीतिका ने ही लिखा था। जहां तक सवाल यह है कि क्या सुसाइड नोट में नाम होने पर आरोपितों को दोषी करार दिया जाता है।

    नेतई दत्ता व गुरुचरण सिंह बनाम पंजाब सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि तो यह स्थापित कानून है कि जब तक सुसाइड नोट में किसी की ओर से किया गया विशिष्ट कार्य या उकसावे का जिक्र न हो, तब तक महज नाम होने के आधार पर आरोपित को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।

    सुसाइड नोट में नहीं था इस बात का जिक्र

    सुसाइड नोट में इसका कोई जिक्र नहीं है कि गोपाल कांडा मृतक गीतिका शर्मा पर सुंडेल एजुकेशनल सोसाइटी के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने का दबाव बना रहा थे और न ही गोवा में नूपुर  व अंकिता सिंह के खिलाफ प्राथमिकी करने का दबाव बनाया जा रहा था।

    इतना ही नहीं, ऐसे तथ्य भी स्पष्ट नहीं है कि आईआईएलएम में एमबीए की फीस के रूप में कांडा द्वारा जमा कराए गए 7.45 लाख वापस लौटाने का ही उन पर दबाव बनाया गया था। सुसाइड नोट में उक्त तीनों ही परिस्थितियों का जिक्र नहीं है।

    अदालत ने कहा कि जाहिर है कि मृतक गीतिका ने सुसाइड नोट में बताया था कि आरोपित किस तरह के चरित्र वाले हैं, लेकिन उन्होंने ऐसा कोई तथ्य पेश नहीं किया जिससे यह पता चल सके कि कैसे उसे धोखा दिया गया था या उनके भरोसे को तोड़ा गया था। जिसके कारण आत्महत्या के अलावा उनके सामने कोई विकल्प नहीं बचा था।

    गीतिका के छोड़ने के बाद भाई बना था निदेशक

    अदालत ने यह भी नोट किया कि गीतिका के भाई अंकित शर्मा जनवरी 2012  में कांडा की कंपनी एमडीएलआर में निदेशक के पद पर नियुक्त हुआ था, जबकि गीतिका ने दिसंबर 2011 में यहां से इस्तीफा दिया था। अंकित ने यह भी स्वीकार किया गीतिका बीएमडब्ल्यू कार में आफिस आती थी।

    अदालत ने कहा कि शर्मा के चड्ढा के साथ मित्रतापूर्ण संबंध थे और और वह उनके साथ विभिन्न रेस्तरां में जाती थी। ऐसे में कोई भी समझदार और विवेकशील व्यक्ति उस व्यक्ति से मेलजोल नहीं रखेगा या लाभ या एहसान नहीं लेगा, जो उसके जीवन में तनाव पैदा करता हो ।

    गीतिका के प्रति आकर्षण के लिए कांडा ने दिए थे लाभ

    अदालत ने कहा कि यह अनुमान लगाया जा सकता है कि कांडा शर्मा के प्रति आकर्षित था और यही कारण हो सकता है कि कांडा ने उन्हें अपनी कंपनी एमडीएलआर में फिर से शामिल होने का अनुरोध करने के लिए दुबई की यात्रा की।

    अदालत ने यह भी कहा कि कांडा ने शर्मा को कंपनी में निदेशक बनाने के साथ ही बीएमडब्ल्यू कार दी। एमबीए पाठ्यक्रम के लिए उनकी फीस को प्रायोजित करने के साथ ही सिंगापुर ले गए। इतना ही नहीं, स्कूल चलाने का कोई अनुभव नहीं होने के बावजूद उन्हें सुंडेल एजुकेशनल सोसाइटी का अध्यक्ष बनाया ।

    इस सबसे साबित होता है कि कांडा ने उन्हें उनकी पसंद या उनके प्रति आकर्षण के कारण ये लाभ दिए थे। ऐसे में यह विश्वास नहीं किया जा सकता है कि शर्मा को कांडा इतने सारे उपकार और लाभ प्रदान करके ऐसी परिस्थितियां पैदा करना चाहते थे कि उनके पास आत्महत्या करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचे।

    इसके साथ ही अदालत ने बचाव पक्ष की उस दलील को भी ठुकरा दिया कि आरोपित शर्मा पर सुंडले एजुकेशनल सोसाइटी  के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डाल रहे थे।

    निर्णय से चकित गीतिका का परिवार

    11 साल तक चले मामले में तमाम उतार-चढ़ाव से गुजरने वाले गीतिका शर्मा के परिवार ने अदालत के निर्णय पर हैरानी जताई। गीतिका के भाई अंकित शर्मा ने मीडिया से कहा कि फैसले के बाद वे सदमे की स्थिति में हैं।

    उन्होंने कहा कि हम सब अपने जीवन को लेकर डरे हुए हैं। यह हमारे जीवन के लिए खतरा पैदा करने वाली स्थिति है। उन्होंने कहा कि परिवार के पास मामला लड़ने का साधन नहीं है और उन्होंने राज्य सरकार से निर्णय के खिलाफ अपील दायर करने का आग्रह किया।

    गीतिका पक्ष के तर्क

    अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया था कि गोपाल कांडा व अरुणा चड्ढा  ने 18 अक्टूबर 2006 से लेकर आत्महत्या की रात चार-पांच अगस्त 2012 के बीच गीतिका के खिलाफ आपराधिक साजिश रची। इसके कारण गीतिका के सामने आत्महत्या करने के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचा। यह भी आरोप लगाया कि उक्त समयावधि के बीच आरोपितों ने गीतिका का उत्पीड़न किया और यही वजह रही गीतिका को आत्महत्या करने जैसा गंभीर कदम उठाना पड़ा।

    गोपाल कांडा व अरुणा चड्ढा के तर्क

    दोनों की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल के खिलाफ आरोप तय करने के लिए अभियोजन पक्ष ने 65 गवाहों का परीक्षण किया, लेकिन उनके मुवक्किल के खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं हुआ। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष के मामले में संदेह उत्पन्न करने का पहला तथ्य यह है कि

    मामले में देरी से प्राथमिकी कराई गई। यह भी तर्क दिया कि वर्ष 2006 से 2010 तक के बीच उत्पीड़न का आरोप लगाया गया, लेकिन एमडीएलआर एयरलाइन्स में काम करने के दौरान उत्पीड़न के संबंध में कोई शिकायत से जुड़ा तथ्य अभियोजन पक्ष ने पेश नहीं किया।