Delhi News : दिल्ली में चोरों और जेबकतरों की खैर नहीं, अपराधियों के पीछे तेजी से दौड़ रही है ये वैन
दिल्ली पुलिस एआई आधारित फेस रिकॉग्निशन सिस्टम (एफआरएस) की मदद से अगले ही सेकंड में आरोपी की पहचान कर लेती है और उसका पूरा आपराधिक ब्योरा निकाल लेती है। इसके बाद अपराधियों तक पहुंचना आसान हो जाता है। सॉफ्टवेयर में तीन लाख से अधिक आरोपियों और संदिग्धों का डाटाबेस है। इसमें पुराने और नए आरोपियों के डोजियर भी शामिल हैं।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। वो दिन गए जब दिल्ली पुलिस किसी भी अपराधी का स्केच बनाती थी और स्केच की मदद से अपराधी को पकड़ लेती थी। इस प्रक्रिया में काफी मेहनत और समय लगता था, लेकिन अब दिल्ली पुलिस एआई आधारित फेस रिकॉग्निशन सिस्टम (एफआरएस) की मदद से अगले ही सेकंड में आरोपी की पहचान कर लेती है और उसका पूरा आपराधिक ब्योरा निकाल लेती है।
सॉफ्टवेयर में तीन लाख से अधिक आरोपियों का डाटाबेस
इसके बाद अपराधियों तक पहुंचना आसान हो जाता है। सॉफ्टवेयर में तीन लाख से अधिक आरोपियों और संदिग्धों का डाटाबेस है। इसमें पुराने और नए आरोपियों के डोजियर भी शामिल हैं। इसके अलावा गुमशुदा लोगों और अज्ञात शवों का डाटा भी शामिल है।
वैन की मदद से 428 आरोपियों की पहचान
उत्तरी जिला पुलिस ने एफआरएस वैन की मदद से 428 आरोपियों की पहचान की है। यह मोबाइल लाइव फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम वैन है, जो अत्याधुनिक उपकरणों और सुविधाओं से लैस है। इसमें कंप्यूटर, इंटरनेट, वॉकी-टॉकी, सीसीटीवी कैमरे और फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम सॉफ्टवेयर समेत आधुनिक सुविधाएं हैं।
एफआरएस की मदद से 92 मामलों को सुलझाने का दावा
इस वैन का इस्तेमाल पहले 15 अगस्त को लाल किले की सुरक्षा और 26 जनवरी की परेड के लिए किया जाता था, लेकिन अब वैन का इस्तेमाल संदिग्धों की पहचान करने और उन्हें आसानी से पकड़ने के लिए किया जा रहा है। उत्तरी जिला पुलिस ने एफआरएस की मदद से 92 मामलों को सुलझाने का दावा किया है।
428 आरोपियों को किया गया गिरफ्तार
उत्तरी जिला उपायुक्त राजा बांठिया के अनुसार, पिछले साल 8 जनवरी को उत्तरी जिले में एफआरएस वैन को शामिल किया गया था। तब से अब तक इस वैन को अलग-अलग जगहों पर खड़ा करके 428 आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है। इनमें कुछ नाबालिग भी थे।
दिवाली के मौके पर सदर बाजार में भीड़ के बीच चोरी, जेबतराशी और झपटमारी की घटनाओं को देखते हुए इसे तैनात किया गया था, जिसके चलते सदर बाजार में ही 107 संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया। शुरुआत में संदिग्धों के डेटाबेस के आधार पर एफआरएस का इस्तेमाल आतंकवाद विरोधी गतिविधियों में किया जा रहा था। बाद में 70 से 90 फीसदी तक सटीकता को देखते हुए इसका इस्तेमाल स्ट्रीट क्राइम को टारगेट करने के लिए किया जाने लगा।
कैसे होता है एफआरएस वैन का इस्तेमाल?
एफआरएस संदिग्धों की पहचान करने और उनकी गतिविधियों पर नज़र रखने का नवीनतम उपकरण है। यह तकनीक सिस्टम में लगे कैमरों से गुज़रने वाले संदिग्धों की पहचान तेज़ी से और सटीक तरीके से करती है, भले ही वे अपनी पहचान छिपाने की कोशिश कर रहे हों।
एफआरएस छवि को कैप्चर करता है और डेटाबेस में संग्रहीत वांछित अभियुक्तों, गुमशुदा व्यक्तियों और संदिग्धों के डेटा से उसका मिलान करता है। एफआरएस वैन में चार तकनीकी कर्मचारी तैनात हैं।
एक वैन में चार कैमरे लगे होते हैं, दो पीछे और दो दाएं और बाएं। एक निश्चित दूरी के भीतर पहचाने गए प्रत्येक मानव शरीर का चेहरा सहेजे गए डेटाबेस से मिलान करके कैप्चर किया जाता है।
एफआरएस वैन से अपराध में आई कमी
उत्तरी जिले में एफआरएस वैन को प्रतिदिन अलग-अलग स्थानों पर पूरे दिन के लिए खड़ा किया जाता है। अपराध की फिराक में घूम रहे बदमाश अब इस वैन को देखकर फरार हो रहे हैं, जिससे अपराध में कमी दर्ज की जा रही है।
अभी जिले में सिर्फ एक ही एफआरएस वैन तैनात है। उत्तरी जिले के अलावा नार्थ वेस्ट, साउथ-वेस्ट और सेंट्रल जिले में भी एफआरएस वैन तैनात है। अब इसके सफल परिणाम देखकर अन्य जिलों में भी जल्द ही वैन को तैनात किया जाएगा।
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