पिछली सरकार की इन गलतियों के कारण दिल्ली की स्वास्थ्य सेवा बदहाल, जानिए नई सरकार के लिए कितनी बड़ी चुनौती
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार एक हजार की आबादी पर अस्पतालों में पांच बेड उपलब्ध होने चाहिए। फिलहाल दिल्ली में एक हजार की आबादी पर 2.70 बेड उपलब्ध हैं। ऐसे में डब्ल्यूएचओ के मानकों के मुताबिक दिल्ली का स्वास्थ्य ढांचा अभी भी कमजोर है। यही वजह है कि बड़े सरकारी अस्पतालों की ओपीडी और दवा काउंटरों पर मरीजों की लंबी कतारें लगी रहती हैं।
संवाददाता जागरण, नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव में आयुष्मान भारत जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) अहम मुद्दा रहा। 27 साल बाद दिल्ली की सत्ता में आई भाजपा सरकार ने अपने वादे के मुताबिक पहली कैबिनेट बैठक में ही गरीबों और 70 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गों के लिए दिल्ली में इस योजना को लागू करने की घोषणा कर अपने इरादे साफ कर दिए हैं, लेकिन इस योजना के दायरे में मध्यम वर्ग की बड़ी आबादी नहीं आती है।
रेखा सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी
इसलिए अकेले इस योजना के सहारे दिल्ली के हर व्यक्ति को मुफ्त और सस्ता इलाज मुहैया नहीं कराया जा सकता। साथ ही दिल्ली के सरकारी अस्पतालों पर दूसरे राज्यों से आने वाले मरीजों के इलाज की भी जिम्मेदारी है। ऐसे में अस्पतालों की लंबित परियोजनाओं को पूरा करना और हर जिले में एक सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल बनाकर राष्ट्रीय राजधानी के स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करना रेखा सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी।
हजार की आबादी पर 2.70 बेड उपलब्ध
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार एक हजार की आबादी पर अस्पतालों में पांच बेड उपलब्ध होने चाहिए। फिलहाल दिल्ली में एक हजार की आबादी पर 2.70 बेड उपलब्ध हैं। ऐसे में डब्ल्यूएचओ के मानकों के मुताबिक दिल्ली का स्वास्थ्य ढांचा अभी भी कमजोर है। यही वजह है कि बड़े सरकारी अस्पतालों की ओपीडी और दवा काउंटरों पर मरीजों की लंबी कतारें लगी रहती हैं।
इन कमियों से जूझ रहा सरकारी अस्पताल
मरीजों को घंटों लाइन में खड़े रहने को मजबूर होना पड़ता है। सर्जरी और जांच के लिए इंतजार करना भी बड़ी समस्या है। इसका कारण यह है कि दिल्ली सरकार के अस्पताल डॉक्टरों, नर्सिंग और पैरामेडिकल स्टाफ की भारी कमी से जूझ रहे हैं।
साथ ही अस्पतालों में अल्ट्रासाउंड, अल्ट्रासाउंड डॉपलर, सीटी स्कैन, एमआरआइ, पीईटी-सीटी जैसी रेडियोलॉजी जांच की सुविधाओं का भी अभाव है। हाईकोर्ट की ओर से गठित कमेटी की रिपोर्ट में भी इन समस्याओं को उजागर किया गया।
फिलहाल 24 अस्पतालों की परियोजनाएं लंबित
फिलहाल 24 अस्पतालों की परियोजनाएं लंबित हैं। इनमें सात आईसीयू अस्पताल, चार नए अस्पताल और 13 मौजूदा अस्पतालों के विस्तार की परियोजनाएं शामिल हैं। इन परियोजनाओं के पूरा होने पर दिल्ली सरकार के अस्पतालों में 16,186 बेड बढ़ जाएंगे।
देरी के कारण बजट में बढ़ोतरी
छह अस्पतालों का निर्माण कार्य 90 से 99 फीसदी और चार अस्पतालों का काम 80 से 89 फीसदी पूरा हो चुका है। स्वास्थ्य विभाग के तीन आईएएस अधिकारियों द्वारा पिछले साल अगस्त में दिल्ली के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री को लिखे गए पत्र के मुताबिक करीब 5590 करोड़ की लागत से ये अस्पताल परियोजनाएं शुरू की गई थीं। निर्माण में देरी के कारण बजट में बढ़ोतरी हुई है।
पांच हजार करोड़ के बजट की जरूरत
इसके कारण इन परियोजनाओं की चिकित्सा सेवा शुरू करने के लिए करीब पांच हजार करोड़ के भारी भरकम बजट की जरूरत होगी। स्वास्थ्य बजट वर्ष 2022-23 में 9,769 करोड़ और वर्ष 2023-24 में 9,742 करोड़ था, जिसे वर्ष 2024-25 में घटाकर 8,685 करोड़ कर दिया गया।
स्वास्थ्य बजट का एक बड़ा हिस्सा मौजूदा अस्पतालों के संचालन और कर्मचारियों के वेतन पर खर्च हो जाता। ऐसे में नई सरकार के लिए स्वास्थ्य परियोजनाओं के लिए जरूरी बजट जुटाना आसान नहीं होगा।
ट्रामा व इमरजेंसी सेवा बढ़ाने की जरूरत
दिल्ली में हर साल सड़क हादसों में एक हजार से ज्यादा लोग अपनी जान गंवाते हैं। फिर भी दुर्घटना पीड़ितों के इलाज के लिए दिल्ली में सिर्फ दो ट्रॉमा सेंटर हैं। इसमें भी दिल्ली सरकार के सुश्रुत ट्रॉमा सेंटर की हालत ठीक नहीं है।
इसी के चलते हाईकोर्ट द्वारा गठित कमेटी ने भी दिल्ली के सभी जिलों में इमरजेंसी और ट्रॉमा सेंटर की सुविधाएं बढ़ाने की सिफारिश की थी। ताकि दुर्घटना पीड़ितों को जल्दी इलाज मिल सके।
आइसीयू बेड दोगुना करने की जरूरत
दिल्ली सरकार के अस्पतालों में 1058 आईसीयू बेड हैं। हाईकोर्ट द्वारा गठित कमेटी ने वर्ष 2028 तक अस्पतालों में आईसीयू बेड की संख्या दोगुनी करने की सिफारिश की थी। मरीजों को अक्सर अस्पतालों में आईसीयू बेड न मिलने की समस्या का सामना करना पड़ता है। ऐसे में अस्पतालों में आईसीयू बेड की संख्या बढ़ाने की सख्त जरूरत है।
अस्पतालों के बीच बेहतर रेफरल सिस्टम का अभाव
दिल्ली के सरकारी अस्पतालों के बीच बेहतर रेफरल सिस्टम नहीं है। इस वजह से गंभीर मरीज एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल जाने को मजबूर हैं। इसलिए केंद्र और दिल्ली सरकार के अस्पतालों के बीच बेहतर रेफरल सिस्टम बनाने की जरूरत है। एम्स प्रशासन ने सभी अस्पतालों में बेड की उपलब्धता की जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध कराने के लिए डैशबोर्ड जारी करने की भी सिफारिश की है।
केजरीवाल सरकार ने लगाया था अड़ंगा
लोगों को अपने घर के नजदीक स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सकें, इसके लिए प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाने की जरूरत है। वर्ष 2021 में केंद्र सरकार ने पीएम आयुष्मान भारत इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन योजना (पीएम भीम) के तहत दिल्ली के लिए 2406.77 करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मंजूरी दी थी। जिसे आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने लागू नहीं किया।
इस योजना के तहत 1139 शहरी आयुष्मान आरोग्य मंदिर, 11 एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य लैब और नौ क्रिटिकल केयर सेंटर बनाए जाने हैं। इस योजना को लागू करने की जरूरत है। भाजपा के सत्ता में आने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने भी इस योजना को लागू करने के प्रयास शुरू कर दिए हैं।
इसके तहत मौजूदा 553 मोहल्ला क्लीनिकों को आयुष्मान आरोग्य मंदिर में बदला जाएगा। इसके अलावा 419 अतिरिक्त आयुष्मान आरोग्य मंदिर बनाए जाएंगे। इसके लिए उपयुक्त स्थान ढूंढना और डॉक्टर व स्टाफ की नियुक्ति करना सबसे बड़ी चुनौती होगी।
भाजपा के घोषणा पत्र में किए गए वादे
भाजपा ने अपने घोषणापत्र में आयुष्मान भारत योजना में शामिल सभी सरकारी अस्पतालों में महिलाओं के लिए सर्वाइकल कैंसर और ओवेरियन कैंसर की मुफ्त जांच की सुविधा देने का वादा किया है।
इसके अलावा मोहल्ला क्लीनिकों को आयुष्मान आरोग्य मंदिर में तब्दील कर गर्भवती महिलाओं और शिशुओं के इलाज, संक्रामक और गैर संक्रामक रोगों की जांच और जांच की व्यवस्था शुरू की जाएगी। पीएम-अभिम को लागू किया जाएगा।
हर जिले में एक सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल बनाने का भी वादा किया है। इसके अलावा सात नए मेडिकल कॉलेज, नर्सिंग और फार्मेसी मेडिकल कॉलेज शुरू किए जाएंगे। डॉक्टरों, नर्सिंग और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी को दूर करने के लिए समयबद्ध नियुक्तियां की जाएंगी।
500 जन औषधि केंद्र खोले जाएंगे ताकि मरीजों को सस्ती दवाइयां उपलब्ध हो सकें। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम के तहत सभी सरकारी अस्पतालों में डायलिसिस की सुविधा दी जाएगी।
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