गिरीश कर्नाड के मशहूर नाटक 'तुग़लक' का 2 दिन पहले दिल्ली में हुआ था मंचन
टाइगर जिंदा में अभिनेता सलमान खान के साथ बतौर अभिनेता काम करने वाले गिरीश कर्नाड पिछले कई महीनों से बीमार चल रहे थे। उन्हें कई बार अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
नई दिल्ली, जेएनएन। फिल्म और टेलीविजन की दुनिया में अपने उम्दा अभिनय के साथ रंगमंचीय (Theatre) योगदान के चलते दर्शकों के दिलों पर गहरी छाप छोड़ने वाले गिरीश कर्नाड (81) ने सोमवार को दुनिया को अलविदा कह दिया। जानकारी के मुतािबक, बेंगलुरु के एक निजी अस्पताल में मल्टीपल ऑर्गेन का फेल होने से से उनकी मौत हुई।
19 मई 1938 को महाराष्ट्र के माथेरान में जन्मे गिरीश कर्नाड धारवाड़ स्थित कर्नाटक विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद रोड्स स्कॉलर के रूप में इंग्लैंड चले गए, जहां उन्होंने ऑक्सफोर्ड के लिंकॉन तथा मॅगडेलन महाविद्यालयों से दर्शनशास्त्र, राजनीतिशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की थी। वे शिकागो यूनिवर्सिटी के फुलब्राइट कॉलेज में विजिटिंग प्रोफेसर भी रह चुके थे। 15 जून को दिल्ली के श्रीराम सेंटर में उनके द्वारा लिखित नाटक 'अग्नि और बरखा' का मंचन होना है। श्रीराम सेंटर में ही 8 जून को नाटक तुगलक का मंचन हुआ था।
यहां पर बता दें कि दो दिन पहले शनिवार शाम को दिल्ली के श्रीराम सेंटर सभागार में गिरीश कर्नाड के मशहूर नाटक 'तुगलक' का मंचन किया गया था और नाटक खत्म होने के बाद तालियों के बीच इसके इसके लेखक को याद किया गया था। इस दौरान रंगकर्मियों के साथ दर्शकों को अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि कुछ दिनों में नाटकर गिरीश कर्नाड दुनिया को ही अलविदा कह देंगेे। गिरीश कर्नाड ऐसे अभिनेता थे, जिन्होंने कर्मशिल सिनेमा के साथ समानांतर सिनेमा के लिए भी जमकर काम किया था।
बता दें कि 'टाइगर जिंदा' में अभिनेता सलमान खान के साथ बतौर अभिनेता काम करने वाले गिरीश कर्नाड पिछले कई महीनों से बीमार चल रहे थे। उन्हें कई बार अस्पताल में भर्ती कराया गया था। काफी बीमारी के बाद 81 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा है। उनके चाहन वालों के लिए काफी दुख की खबर है।
बता दें कि गिरीश कर्नाड को 1978 में आई फिल्म 'भूमिका' के लिए नेशनल अवॉर्ड मिला था। इसके अलावा, उन्हें 1998 में साहित्य के प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ अवॉर्ड से नवाजा गया था।
लेखक-अभिनेता गिरीश कर्नाड ने कन्नड़ फिल्म संस्कार (1970) से अपनी अभियन यात्रा की शुरुआत की थी। गिरीश कार्नाड का जन्म 19 मई, 1938 माथेरान, महाराष्ट्र में हुआ था। वे लेखक, अभिनेता, फ़िल्म निर्देशक और नाटककार थे। इसी के साथ वे कन्नड़ और अंग्रेजी भाषा दोनों में दक्ष थे।
यह थी उपलब्धियां
संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, पद्मश्री, पद्मभूषण , कन्नड़ साहित्य अकादमी पुरस्कार , साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार व कालिदास सम्मान प्राप्त वरिष्ठ साहित्यकार, फिल्मकार व अभिनेता थे।
पढ़िए 'तुग़लक' नाटक के बारे में
नाटक का कथानक मुहम्मद बिन तुग़लक चारित्रिक विरोधाभास में जीने वाला एक ऐसा बादशाह था जिसे इतिहासकारों ने उसकी सनकों के लिए खब़्ती करार दिया। उसमें मज़हब से परे इंसान की तलाश थी। हिंदू और मुसलमान दोनों उसकी नजर में एक थे। ह भी जानें
सत्ता पर काबिज होते ही ‘मुहम्मद बिन तुगलक’ ने अपने साम्राज्य को अपने हिसाब से बदलना शुरु कर दिया. इसके लिए उसने कई परिवर्तन किए। उसने 1329 में दिल्ली की जगह देवगिरी को अपनी राजधानी बना दिया, जिसे दौलताबाद के नाम से जाना गया। दिलचस्प बात तो यह थी कि इस फैसले के तहत सिर्फ राजधानी को नहीं बदला गया था, बल्कि दिल्ली की आबादी को भी दौलताबाद में स्थानांतरित होने का आदेश दिया था।
तुगलक अपने एक दूसरे सख्त फैसले के लिए वह जाना जाता है। इसके तहत उसने रातों-रात चांदी के सिक्कों की जगह तांबे के सिक्कों को चलन में लाने का आदेश दे दिया था, जबकि उसने तांबे के जो सिक्के जारी किए थे, वे अच्छे नहीं थे। आसानी से उनकी नकल की जा सकती थी।
हुआ भी यही लोगों ने नकली सिक्के अपने घर में ही बनाने लगे, इससे राजस्व की भारी क्षति हुई और फिर उस क्षति को पूरा करने के लिए उसने करों में भारी वृद्धि भी की, जिस कारण लोग उससे नाराज रहने लगे।
30 लाख सैनिक फिर भी था कमजोर...
तुगलक भारत में अपना विस्तार चाहता था, इसीलिए 1329 तक उसने करीब 30 लाख सैनिक इकट्ठा कर लिए। इस दौरान उसकी सेना में कुछ ऐसे भी लोग भी भर्ती थे जो सैनिक थे ही नहीं। वह लड़ना ही नहीं जानते थे, सिर्फ संख्या बल बढ़ाने के लिए सैनिक बनाए गए थे। तुगलक ने इन सैनिकों को साल भर तक भुगतान करने का जिम्मा ले रखा था, इसलिए इस तरह उसके राजस्व पर इसका गहरा असर पड़ा।
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