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    धरती में पहली हलचल से ही मिल जाएगी भूकंप की चेतावनी, जापान और ताइवान की तकनीक से बनेगा अर्ली वार्निंग सिस्टम

    Updated: Tue, 17 Jun 2025 01:30 PM (IST)

    अर्ली वार्निंग सिस्टम के जरिये भूकंप से होने वाले जान-माल का नुकसान कम किया जा सकता है। राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (एनसीएस) जापान और ताइवान की तकनीक से सिस्टम विकसित कर रहा है। धरती के भीतर पहली हलचल होते ही नियंत्रण कक्ष में संकेत आ जाएंगे और एस वेव से पहले अलर्ट जारी किया जाएगा। इसकी शुरुआत हिमाचल प्रदेश से होगी।

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    भूगर्भीय हलचल शुरू होते ही मिल जाएगी भूकंप की चेतावनी।

    राज्य ब्यूरो, जागरण, नई दिल्ली: भूकंप की पूर्व चेतावनी से जान-माल का नुकसान कम किया जा सकता है। इसी सोच के साथ अर्ली वार्निंग सिस्टम विकसित करने पर काम चल रहा है।

    जापान और ताइवान की विश्वस्तरीय तकनीकों के साथ पहली बार राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (एनसीएस) अर्ली वार्निंग सिस्टम विकसित करने पर काम कर रहा है।

    एनसीएस ऐसा सिस्टम तैयार कर रहा है, जिससे जमीन के भीतर फाल्ट लाइन पर भूकंप की पहली हलचल (पी वेव) होते ही केंद्रीय नियंत्रण कक्ष में संकेत आ जाएं। इसके बाद भूकंप के झटके (एस वेव यानी सरफेस वेव) लगने से पहले कुछ ही क्षणों में इसका अलर्ट जारी कर दिया जाए।

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    भूकंप में सबसे पहले उठती है पी वेव, नुकसान पहुंचाती है पी वेव

    विज्ञानियों के अनुसार किसी भूकंप में सबसे पहले पी-वेव उठती हैं, जो काफी तेजी से आती हैं। इसके बाद अपेक्षाकृत धीमी रफ्तार से उठने वाली एस-वेव भारी नुकसान पहुंचाती हैं।

    अर्ली वार्निंग सिस्टम पहले तेजी से उठने वाली पी-वेव की पहचान कर तुरंत नियंत्रण कक्ष को इसकी सूचना भेज देता है। इस सूचना में यह भी शामिल रहता है कि धरती कहां तक हिलेगी और भूकंप का आकार क्या होगा?

    एनसीएस के मुताबिक फिलहाल देशभर में भूकंप की गतिविधियों पर निगाह रखने के लिए जमीन के नीचे 168 सिस्मोग्राफी एवं एक्सिलरोग्राफी उपकरण लग चुके हैं।

    ये उपकरण 100 और लगेंगे। 34 ग्लोबल नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम (जीएनएसएस) लगाने पर भी काम शुरू होने को है।

    20 जून को एनसीएस और जीएसआई के बीच होगा एमओयू

    इसी सप्ताह 20 जून को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में एनसीएस और ज्योलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के बीच एमओयू साइन होने जा रहा है।

    दिल्ली एनसीआर में 25 उपकरण लगे हैं, 15 जीएनएसएस भी लगा दिए गए हैं। दोनों ही जगह नए उपकरणों में कुछ डेटा रिसीविंग स्टेशन भी स्थापित किए जाएंगे।

    एनसीएस के अनुसार डेटा रिसीविंग स्टेशन की मदद से एनसीएस के नियंत्रण कक्ष में संभावित भूकंप के संकेत प्रामाणिक तौर पर जल्दी मिल जाएंगे।

    पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर हिमाचल प्रदेश से होगी शुरुआत

    संकेत मिलते ही राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीआरएफ) की सहायता से सभी संबंधित राज्य सरकारों, जिला प्रशासन, अस्पतालों, स्थानीय निकायों सहित राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को सूचना दी जाएगी।

    पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इसी साल के अंत अथवा नए साल की शुरुआत में हिमाचल प्रदेश से इसकी शुरुआत की जाएगी।

    एनसीएस विज्ञानियों के अनुसार हालांकि पी वेव और एस वेव के बीच समय का अंतराल अधिकतम कुछ मिनटों का ही होता है।

    लेकिन तब भी बिजली आपूर्ति बंद करके, गैस आपूर्ति रोक कर, पेट्रोल पंपों पर एहतियात बरतकर, अग्निशमन विभाग को अलर्ट मोड पर रख कर राज्य और जिला स्तर पर बचाव के यथासंभव उपाय किए जा सकते हैं। अस्पतालों को भी अलर्ट मोड पर रखा जा सकता है।

    भूकंप को लेकर अर्ली वार्निंग सिस्टम केंद्र सरकार का एक बड़ा प्रयास है। हम लोग इस पर कई वर्षों से कम कर रहे है। काफी हद तक पायलट अर्ली वार्निंग सिस्टम का प्रारूप तैयार हो चुका है।

    हिमाचल स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट भी यंत्र को सही जगह पर स्थापित करने के लिए समन्वित रूप से सहयोग भी कर रहा है। इस साल के अंत या अगले साल की शुरुआत में हिमाचल प्रदेश से इसकी शुरुआत किए जाने की संभावना है।

    इसके बाद धीरे - धीरे देश के अन्य हिस्सों में रीजनल स्केल पर काम किया जाएगा ताकि भारत एक भूकंप जनित जोखिम को काफी हद तक घटा सके। साथ ही नाभिकीय खतरे को कम और बांध सुरक्षा को भी बढ़ाया जा सके।

    - डाॅ. ओपी मिश्रा, निदेशक, एनसीएस

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