दिल्ली में 'धूल' कम कर रही लोगों की सांसें, इन इलाकों की हालत बद से बदतर; पढ़ें क्या कहते हैं एक्सपर्ट
दिल्ली में धूल प्रदूषण एक गंभीर समस्या है जिससे लोगों का सांस लेना मुश्किल हो गया है। प्रदूषण में धूल का बड़ा योगदान है खासकर बाहरी दिल्ली और यमुनापार में स्थिति बदतर है। विशेषज्ञों के अनुसार धूल से सांस और हृदय संबंधी बीमारियां हो सकती हैं। सरकार ने प्रदूषण कम करने के लिए योजना बनाई है लेकिन जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है।
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। धूल भी दिल्ली के लोगों की सांसे कम कर रही है। इसका भी दिल्ली की हवा में जहर घोलने में योगदान है। मगर सरकारी प्रबंधन कागजों में अधिक जमीन पर कम दिखाई देते हैं। सरकारी एजेंसियां धूल प्रदूषण रोकने के जो दावे करती है सड़कों पर वह उतना नहीं दिखाई देता है।
इससे साफ कहा जा सकता है कि धूल प्रदूषण वाहनों से होने वाले प्रदूषण के साथ साथ धूल प्रदूषण पर भी कागजों में ही नहीे जमीन पर काम करने भी सख्त जरूरत है।अन्यथा प्रदूषण रूपी बीमारी का पूरी तरह इलाज कर पाना संभव नहीं होगा।
दिल्ली के प्रदूषण में धूल का योगदान काफी अधिक है। खासकर पीएम10 और पीएम2.5 कणों के मामले में सड़क की धूल एक प्रमुख प्रदूषक है। दिल्ली में सड़क की धूल पीएम10 प्रदूषण का 56% और पीएम2.5 प्रदूषण का 38% तक योगदान करती है। इसके अलावानिर्माण स्थलों से निकलने वाली धूल भी प्रदूषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जो कुल प्रदूषण में 2% तक योगदान करती है।
सरकारी एजेंसियों की लापरवाही का आलम यह है कि मानसून के दौरान भी आज आप को कई इलाकों में धूल उड़ती मिल जाएगी, वर्षा नहीं होने पर सड़काें की धूल आप को परेशान करेगी। मानसून को छोड़ दें तो अन्य महीनों में ताे आप को पूरी दिल्ली में ही धूूल से जूझना पड़ेगा। दिल्ली की स्थिति पर गौर करें तो दिल्ली के बाहरी इलाके इस समस्या से अधिक परेशान हैं।
बाहरी दिल्ली का सबसे बुरा हाल
बाहरी दिल्ली की आधा दर्जन से अधिक सड़कों पर उड़ती धूल से राहगीर परेशान हैं। इन सड़कों से धूल फांकते हुए लोग अपनी मंजिलों तक पहुंचते हैं। रोहिणी सेक्टर-22 की सुल्तानपुरी टर्मिनल से जोड़ने वाली डीडीए की 100 फुटा रोड हो या मुबारकरपुर मेन रोड या फिर रोहिणी सेक्टर-21 से कंझावला तक की सड़क सभी का धूल से हाल खराब है।
सुल्तानपुरी टर्मिनल से पूठकलां की ओर जाने वाली मुख्य सड़क के साथ साथ मंगोलपुरी, किराड़ी, शाहबाद डेरी, बादली, सिरसपुर समेत अन्य स्थानों का भी यही हाल है। यहां धूल उड़ने से राहगीर ही नहीं स्थानीय लोग भी परेशान है। दुकानदारों का कहना है कि उन्हें हर तीन से चार घंटे में दुकानों में रखे सामान की साफ-सफाई करनी पड़ती है इन इलाकों में लोगों को सांस से संबंधित बीमारियां हो रही हैं।
यमुनापार
यमुनापार में सड़क, फ्लाईओवर और अंडरपास की सफाई पर ध्यान नहीं है। किनारों पर हर वक्त धूल जमा रहती है। लोगों की मानें तो महीनों उनकी सफाई नहीं होती। दौड़ते वाहनों के पहियों के साथ धूल उड़ती है। इसी तरह तेज हवा चलने पर धूल का गुबार लोगों को परेशान करता है। खासकर दोपहिया वाहन चालक और पैदल आने-जाने वाले धूल खाते हुए जाते हैं। गोकलपुरी, सीलमपुर, शाहदरा, आनंद विहार और नोएडा लिंक रोड पर फ्लाईओवर की सफाई नहीं होती।
दक्षिणी दिल्ली में सड़कों पर उड़ती है धूल
यहां ओखला लैंडफिल साइट के सामने मां आनंदमयी मार्ग पर 500 मीटर तक सड़क के दोनों ओर दिनरात धूल उड़ती है। धूल के गुबार में पैदल चलने वालों का दम घुटने लगता है। वहीं बाइक सवारों को हेलमेट के भीतर भी सांस लेने में परेशानी होती है। दरअसल, लैंडफिल साइट से भारी वाहन (डंफर) निकलकर मां आनंदमयी मार्ग पर आते हैं और आगे लाल बत्ती से यू-टर्न लेते हैं।
दिनभर चलने वाले सैकड़ों भारी वाहनों के पहियों में चिपककर लैंडफिल साइट की धूल-मिट्टी भी सड़क किनारे पहुंचती रहती है। वहीं दूसरी ओर एमबी रोड पर मेट्रो के काम के कारण कई जगह पर खोदाई भी की गई है। इससे भी धूल हो रही है। तुगलकाबाद, संगम विहार और साकेत के पास ऐसी ही स्थिति है। हालांकि मेट्रो की ओर से बीच बीच में ट्रैंकरों से पानी का छिड़काव भी कराया जाता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
धूल के कारण वातावरण में पीएम 10 और पीएम 2.5 का स्तर बढ़ जाता है। ये प्रदूषक कण सांस के जरिये फेफड़े में पहुंचते हैं। इससे सांस की नली में सूजन व फेफड़े में परेशानी होती है। इससे तात्कालिक तौर पर सांस की परेशानी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारी होती है। इसके अलावा पीएम 2.5 जैसे सूक्ष्म कण फेफड़े से ब्लड में पहुंच सकते हैं। इससे ब्लड प्रेशर व हृदय रोग की समस्या हो सकती है। इसके अलावा धूल में कई अन्य प्रदूषक तत्व होते हैं। यह जगह और वहां की व्यवसायिक व भौगोलिक स्थिति पर निर्भर करता है। कई इलाकों के धूल में सिलिका होता है। इससे सिलकोसिस होने का खतरा रहता है। इसके अलावा कई प्रदूषक तत्व धूल में शामिल होते हैं, जो फेफड़े पर जमा होने पर धीरे-धीरे फेफड़े में फाइब्रोसिस होने का खतरा रहता है। फाइब्रोसिस होने पर उसे ठीक नहीं किया जा सकता है। इससे फेफड़े की कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है। धूल का यह दीर्घकालिक दुष्प्रभाव ज्यादा खतरनाक हो सकता है। - डॉ. संजय राय, प्रोफेसर, कम्युनिटी मेडिसिन विभाग, एम्स
दिल्ली सरकार की योजना
दिल्ली सरकार की व्यापक सड़क धूल प्रदूषण शमन परियोजना पर 10 वर्षों की अवधि में 2,388 करोड़ रुपये खर्च होने की संभावना है।पिछले माह दिल्ली सरकार द्वारा दी गई मंजूरी के तहत प्रदूषण नियंत्रण और आपातकालीन उपाय परियोजना के तहत 1,158 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से एंटी-स्माग गन से लैस 250 पानी के छिड़काव मशीनें किराये पर ली जाएंगी।
इसके अलावा 210 वाटर स्प्रिंकलर, वाटर टैंकर और एंटी-स्माग गन से लैस 70 मैकेनिकल रोड स्वीपिंग (एमआरएस) मशीनें सात साल की अवधि के लिए 1,230 करोड़ रुपये की लागत से किराये पर ली जाएंगी।लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) मानसून के मौसम को छोड़कर पूरे वर्ष अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत सड़कों पर यांत्रिक रूप से सफाई और पानी के छिड़काव की सुविधा प्रदान करेगा।
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