दिल्ली के चितरंजन पार्क काली मंदिर में है 48 वर्ष की संस्कृति, बंगाल के बाहर दुर्गा पूजा की सबसे भव्य परंपरा
दक्षिणी दिल्ली के चितरंजन पार्क में स्थित काली मंदिर अपनी भव्यता और अटूट आस्था के लिए प्रसिद्ध है। यहां पिछले 48 सालों से दुर्गा पूजा का आयोजन किया जा रहा है जिसमें हर साल लगभग 10 लाख भक्त शामिल होते हैं। 1973 में स्थापित इस मंदिर में 1977 से बंगाली समुदाय द्वारा दुर्गा पूजा की जा रही है। दुर्गा पूजा का समारोह पूरे एक महीने तक चलता है।

शालिनी देवरानी, दक्षिणी दिल्ली। यूं तो दिल्ली का चितरंजन पार्क यहां होने वाली कई भव्य दुर्गा पूजा के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मंगलवार को जिस काली मंदिर में दुर्गा पूजा समारोह में शामिल हुए ये अपनी अटूट आस्था के साथ भव्यता के लिए भी जाना जाता है। इस मंदिर परिसर में पिछले 48 सालों से दुर्गा पूजा का आयोजन किया जा रहा है। हर साल तकरीबन 10 लाख लोग पूजा में शामिल होते हैं। इनमें एनसीआर सहित विभिन्न शहरों के भक्त भी होते हैं।
बंगाल के बाहर का सबसे बड़ा काली मंदिर
मंदिर की स्थापना 1973 में शिवजी के मूर्ति स्थापना के साथ की गई थी। इसके बाद 1977 से मंदिर परिसर में बंगाली समुदाय के लोगों द्वारा दुर्गा पूजा की जा रही है। बंगाली समुदाय की बड़ी संख्या को देखते हुए मंदिर में 1982 में मां काली और राधा-कृष्ण की मूर्ति स्थापित की गई थी। रोजाना होने वाले भव्य समारोह में लाखों की संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। मान्यता है कि टेराकोटा मंदिर वास्तुकला से सुसज्जित ये मंदिर बंगाल के बाहर का सबसे बड़ा काली मंदिर है।
एक महीने तक चलता है समारोह
दुर्गा पूजा की खासियत है पूरे एक महीने तक चलने वाला कार्यक्रम। सीआर पार्क के सिर्फ इसी पंडाल में एक महीने पहले से ही दुर्गा पूजा की रौनक छा जाती है और प्री कल्चरल एक्टीविटीज शुरू हो जाती हैं। सांस्कृतिक विभाग से जुड़े संजय देब बताते हैं कि सांस्कृतिक कार्यक्रम में गीत-संगीत और इंस्ट्रूमेंटल आयोजन होते हैं। इसमें बच्चे, महिलाएं व बुजुर्ग सभी भाग लेते हैं। इस बार एक सितंबर से एक अक्टूबर तक गतिविधियां होंगी।
परंपरा से जुड़ी है आस्था की जड़ें
मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ने के पीछे इसकी मान्यता है। पूजा समिति सचिव डा. राजीव नाग बताते हैं कि ये मंदिर अपनी मान्यता के लिए प्रसिद्ध है। परिसर में पंडाल बंगाल से आए कलाकार सजाते हैं, जिसे पूरी तरह पारंपरिक तरीके से लाल और सफेद रंगों से सुसज्जित किया जाता है। इस बार माता की करीब 20 फीट ऊंची मूर्ति स्थापित की गई है। खासियत ये भी है कि मूर्ति परंपरागत तौर पर एक ही ढांचे पर बनती है। पूजा समिति के एडवाइजर सुबीर दत्ता बताते हैं लोग माता के दरबार से घर प्रसाद ले जा सकें इसके लिए खास पूजा की तैयार की जाती है। वहीं ये पंडाल मंदिर परिसर में है, इसलिए सिर्फ यहां शुद्ध शाकाहारी बिना प्याज लहसुन का भोग की बनता है।
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