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    प्रो. मीनाक्षी जैन के अयोध्या पर लेखन ने निभाई थी राम मंदिर मुकदमे में अहम भूमिका, बनीं राज्यसभा की सांसद

    Updated: Sun, 13 Jul 2025 09:17 PM (IST)

    दिल्ली विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर और इतिहासकार डॉ. मीनाक्षी जैन को राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा के लिए नामित किया गया। अयोध्या पर उनके कार्यों के लिए उन्हें विशेष रूप से जाना जाता है राम मंदिर के मुकदमे में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। वे डीयू से राज्यसभा जाने वाले प्रोफेसरों में शामिल हैं। उन्होंने एनसीईआरटी की मध्यकालीन भारत की पाठ्यपुस्तक भी लिखी है और उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।

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    प्रो. मीनाक्षी जैन के अयोध्या पर लेखन ने निभाई थी राम मंदिर मुकदमे में अहम भूमिका।

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय के गार्गी कॉलेज की पूर्व प्रोफेसर और इतिहासकार डॉ. मीनाक्षी जैन को राष्ट्रपति की ओर से राज्यसभा के लिए नामित किया गया है। यूं तो प्रो. जैन लेखन के लिए विख्यात रहीं हैं, लेकिन अयोध्या पर किए उनके कार्यों के लिए सर्वाधिक उन्हें याद किया जाता है।

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    राम मंदिर से जुड़े मुकदमे में रामलला विराजमान के पक्ष में फैसला आने में उनके कार्य की अहम भूमिका रही है। डीयू में उनका सफर यादगार रहा है। डीयू से राज्यसभा जाने वाले प्रोफेसरों की फेहरिस्त में वह शामिल हो गई हैं।

    ऐतिहासिक व्याख्याओं की पुनः समीक्षा

    डॉ. जैन का कार्य मुख्यधारा की ऐतिहासिक व्याख्याओं की पुनः समीक्षा करता है और स्वदेशी स्रोतों व परंपराओं पर आधारित वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। उनके गहन शोधपरक ग्रंथों में फ्लाइट आफ डीटीज एंड रीबर्थ आफ टेम्पल्स (2019), द बैटल फॉर राम: केस आफ द टेम्पल एट अयोध्या (2017), सती: एवनजेलिकल्स, बैपटिस्ट मिशनरीज एंड द चेंजिंग कालोनियल डिस्कोर्स (2016), राम एंड अयोध्या (2013) तथा पैरलल पाथवेज: एसेज ऑन हिंदू–मुस्लिम रिलेशंस (1707–1857) (2010) प्रमुख हैं।

    उन्होंने तीन खंडों वाली शृंखला द इंडिया दे सॉ: फारेन अकाउंट्स आफ इंडिया फ्राम द ऐर्थ टू मिड-19थ सेंचुरी (2011) का सह-संपादन भी किया है, जिसमें आठवीं शताब्दी से उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक भारत आए यात्रियों और इतिहास क्रोनिकल्स के वृत्तांत संकलित हैं। डॉ. जैन गर्गी कॉलेज के इतिहास विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर रह चुकी हैं।

    उन्होंने 1975 के आसपास कॉलेज में अध्यापन शुरू किया

    उन्होंने 1975 के आसपास कॉलेज में अध्यापन शुरू किया था। 2016 में वह सेवानिवृत्त हो गईं। पढ़ाने के दौरान व बाद में उनका लेखन और अध्यान कार्य जारी रहा। वे नेहरू मेमोरियल म्यूज़ियम एंड लाइब्रेरी की फेलो भी रहीं और इंडियन काउंसिल आफ हिस्टारिकल रिसर्च (आइसीएचआर) की गवर्निंग काउंसिल की सदस्य भी रही हैं।

    एनसीईआरटी की मध्यकालीन भारत की पाठ्यपुस्तक भी लिखी

    वर्तमान में वे इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च (आइसीएसएसआर) में सीनियर फेलो हैं और उनका शोध मध्यकालीन तथा प्रारंभिक आधुनिक भारत की सांस्कृतिक व धार्मिक प्रवृत्तियों पर केंद्रित है। इसके अलावा, 2002 में एनसीईआरटी की मध्यकालीन भारत की पाठ्यपुस्तक भी उन्होंने ही लिखी थी, जिसने पूर्ववर्ती संस्करण का स्थान लिया था। डॉ. जैन को 2020 में साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।

    राज्यसभा में उनकी उपस्थिति से स्वदेशी ऐतिहासिक दृष्टिकोण और भारत की सभ्यतागत विरासत को सार्वजनिक विमर्श में नई ऊर्जा मिलने की संभावना है। बता दें कि उनसे पहले डीयू के प्रो. वीपी दत्त, प्रो. रत्नाकर पांडेय, प्रो. राकेश सिन्हा, प्रो. मनोज झा जैसे नाम राज्यसभा में जा चुके हैं। मनोज सिन्हा वर्तमान में आरजेडी की ओर से सदस्य हैं।

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