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Digital India: बच्चों और किशोरों के योगदान से हो रहा एक नये भारत का उदय

नये-नये स्टार्टअप बनाकर लोगों को सुविधा प्रदान कर रहे हैं। डिजिटल इंडिया के विकास में अपना योगदान दे रहे हैं। इन बच्चों और किशोरों के योगदान से एक नये भारत का उदय हो रहा है। उत्साही बच्चे और किशोर नई-नई एप्लीकेशन बनाकर समस्या का समाधान ढूंढ़ रहे हैं।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Published: Sat, 23 Jan 2021 01:57 PM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 01:57 PM (IST)
Digital India: बच्चों और किशोरों के योगदान से हो रहा एक नये भारत का उदय
बच्चों और किशोरों के योगदान से एक नये भारत का उदय हो रहा है।

नई दिल्ली, यशा माथुर। आज के उत्साही बच्चे और किशोर एक एक ओर कोई एप्लीकेशन बनाकर समस्या का समाधान ढूंढ़ रहे हैं तो कुछ नयी राह पर आगे बढ़ते हुए दूसरों को प्रेरित कर रहे हैं। समाज के हित में नये-नये स्टार्टअप बनाकर लोगों को सुविधा प्रदान कर रहे हैं। डिजिटल इंडिया के विकास में अपना योगदान दे रहे हैं। इन

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बच्चों और किशोरों के योगदान से एक नये भारत का उदय हो रहा है।

अलग करने की थी चाहत:

दिल्ली के उज्ज्वल को टेक गैजेट्स खरीदने के लिए पैसे चाहिए थे, जो उनके पास नहीं थे। लेकिन उन्होंने गेम्स में ही अपना काम चालू रखा। वह कहते हैं, ‘उस समय मेरे पास कंप्यूटर भी नहीं था। मैंने फोन से ही ड्रैगन बॉल्ज गेम की वीडियोज यूट्यूब पर डालीं। व्यूज कम आने पर मैंने फेसबुक पर ग्रुप्स में इन्हें डालना शुरू किया। एक वीडियो वायरल हो गया। तीस हजार सब्सक्राइबर्स हो गए। फिर मैंने कंटेंट बदला और एक चैनल ‘उज्ज्वल गेमर’ और बनाया। दूसरे चैनल पर मैं पबजी के गेम्स डालने लगा।

जब यूट्यूब के कार्यक्रम में गया, तो मुङो किसी ने नहीं पहचाना। मुङो लगा कि फेसकैम करना बहुत जरूरी है। फिर कैमरा, कंप्यूटर लिया और कुछ अलग, यूनीक करने के बारे में सोचा। गेम बदले, फिर वीडियो वायरल हुआ और लोग मुङो देखने चैनल पर आने लगे। देखते-देखते आठ लाख सब्सक्राइबर हो गए। इस दौरान मैंने 12वीं पास कर लिया। आज मेरे दूसरे चैनल ‘उज्ज्वल गेमर्स’ पर भी 30 लाख सब्सक्राइबर्स हैं।

मेरी सीरीज जीटीए गेमप्ले वेबसीरीज के वीडियोज पर 35 करोड़ व्यूज तक आ जाते हैं।’ उज्ज्वल कहते हैं कि यह सब करते हुए वह स्कूल जाते थे, ट्यूशन जाते थे, होमवर्क करते थे और मम्मी का कहना मानते थे। इसलिए पैरेंट्स ने गेम्स खेलने पर कभी डांटा नहीं।

उपलब्ध करा रहे आर्सेनिक मुक्त जल  

आर्सेनिक के कारण लोगों का स्वास्थ्य खतरे में न पड़े, इसलिए बिहार के बाल विज्ञानियों ने लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग (पीएचईडी) के साथ मिलकर ग्रामीणों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने का बीड़ा उठाया है। उन्होंने आर्सेनिक फिल्ट्रेशन यूनिट तैयार की है। यह यूनिट पटना (बिहार) के मनेर प्रखंड के सुअर मरवा गांव में लगाई गई है। फिलहाल, यह प्रायोगिक दौर में है।

बाल विज्ञानी अक्षत आदर्श, अर्पित व अभिजीत ने आर्सेनिक फिल्ट्रेशन यूनिट को हैंडपंप में लगाया है। यह पानी से आर्सेनिक को छानकर बाहर कर देती है। इसे पिछले साल नवंबर में लगाया गया था। दरअसल, हैंडपंप से आर्सेनिक युक्त जल निकल रहा था। यूनिट लगने के बाद अब लोगों को आर्सेनिक मुक्त पानी मिलने लगा है। हैंडपंप में लगी यूनिट चुंबकीय सिद्धांत पर कार्य करती है। इसे दो मंचों पर राष्ट्रीय विज्ञान प्रतियोगिता में पुरस्कार भी मिल चुका है। इन बाल विज्ञानियों का कहना है, पहले तो समझ में नहीं आ रहा था कि क्या

स्ट्रक्चर उपयोग किया जाए, लेकिन फिर मेहनत और रिसर्च से सफल हो पाए।

नन्ही ग्लोरी का बड़ा आसमान 

सफलता के आड़े उम्र नहीं आती, इसे साबित किया है मात्र पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाली प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) की ग्लोरी ने। ग्लोरी ने डिजिटल प्लेटफॉर्म पर बड़ा कैनवास बना दिया है। उन्होंने अपना यू-ट्यूब चैनल बनाया है। वह खुद वीडियो बनाकर उसे अपलोड करती हैं। उसके यू-ट्यूब चैनल से बड़े-बड़े पढ़ते हैं। सब उसे छोटे सर बुलाते हैं। ग्लोरी कभी मैथ्स, कभी अंग्रेजी और कभी जनरल नॉलेज से जुड़े वीडियो अपलोड करती हैं। इसमें उसकी मदद करती हैं उनकी असिस्टेंट प्रोफेसर मां रंजना। ग्लोरी के पढ़ाने का अंदाज,‘हैलो दोस्तो, आपका स्वागत है, आपके अपने चैनल आइएम ग्लोरी में’ सबको भाता है।

ग्लोरी को वीडियो बनाने की प्रेरणा अपने मामा से मिली। उसने मामा के मोबाइल पर चुपके से वीडियो बनाया। बाद में उन्हें दिखाया, तो सबको अच्छा लगा। तभी से शुरू हो गया यह नया सफर। इस समय ग्लोरी के चैनल के 11 लाख सब्सक्राइबर हैं। उन्हें यू ट्यूब की तरफ से सिल्वर बटन मिल चुका है और आगे के लिए गोल्ड बटन का प्रस्ताव मिला है।

नरेश ने संभाली सामाजिक जिम्मेदारी  

ऐसा नहीं है कि छोटे बच्चों व किशोरों को समाज का दर्द नहीं सालता। अहमदाबाद (गुजरात) के नरेश सीजापति किसी मिसाल से कम नहीं हैं। वैश्विक महामारी ने जब समाज के हजारों-लाखों दिहाड़ी मजदूरों के अलावा चाय-पान की दुकान करके, छतरी या मोमो आदि बेचकर परिवार का भरण-पोषण करने वालों का रोजगार व नौकरी छीन ली, तो नरेश ने उनकी जिंदगी को दोबारा से पटरी पर लाने की पहल की।

पनाह संस्था के फाउंडर नरेश बताते हैं, ‘100 फॉर 100’ प्रोजेक्ट के माध्यम से हम जरूरतमंदों को बिना ब्याज दस हजार रुपये तक का कर्ज, साजो-सामान एवं अन्य संसाधन उपलब्ध कराते हैं। यह कर्ज किसी दस्तावेज के आधार पर नहीं, बल्कि उनकी ईमानदारी को देखकर दिए जाते हैं। इसके अलावा, शुरुआत में उन्हें प्रतिदिन 300 रुपये भी दिए जाते हैं, चाहे कमाई हो या न हो। एक बार जब उनका कारोबार स्थापित हो जाता है, तो उन्हें कर्ज की राशि वापस करनी होती है।’ नरेश ने फिलहाल 700 लोगों की मदद करने का लक्ष्य रखा है।

बांट रहे ज्ञान का भंडार 

प्रतापगढ़ (उप्र) जिले के मांधाता विकास खंड अंतर्गत पूर्व माध्यमिक विद्यालय मल्हूपुर में दो विद्याíथयों का यू-ट्यूब चैनल कोरोनाकाल में काफी चर्चा में रहा है। कक्षा आठ के दीपांशु त्रिपाठी व कक्षा सात की श्रेया सिंह के साथ-साथ सौरभ गुप्ता व सगुन चौरसिया ने अपना यू-ट्यूब चैनल राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षक श्याम प्रकाश मौर्य के निर्देशन में बनाया है।

दीपांशु के यू-ट्यूब चैनल का नाम ‘अल्ट्रा एजुकेशन’ है, जबकि श्रेया सिंह के चैनल का नाम ‘श्रेया एजुकेशन’। इसके जरिए विज्ञान, सामान्य ज्ञान, अंग्रेजी व हिंदी व्याकरण से संबंधित पाठ्यसामग्री अपलोड की जाती है। शिक्षक श्याम प्रकाश मौर्य का दावा है कि स्कूल के कुल 86 बच्चों के साथ अन्य स्कूलों के विद्यार्थी भी इससे लाभान्वित हो रहे हैं।

कोरोना ने दी इनोवेशन की सीख 

कोरोना ने छोटे बच्चों को बीमारी से लड़ने के लिए इनोवेशन करने की ऐसी सीख दी कि फरीदाबाद स्थित शिव नाडर स्कूल के कक्षा चार में पढ़ने वाले नौ साल के छोटे से इनोवेटर क्षितिज गोयल ने एक सांस लेने वाला उपकरण ‘संजीवनी’ तैयार किया, जो एक स्वचालित बैग वाल्व मास्क है। यह कोविड-19 जैसे तीव्र श्वसन रोगों से पीड़ित लोगों के लिए एक अस्थायी वेंटीलेटर मशीन के रूप में कार्य कर सकता है।

क्षितिज के साथ ही स्वप्निल डे को जब यंग इनोवेटर डिजाइन चैलेंज 2020 में ‘द रोबोटिक अल्ट्रा-वायलेट लाइट बॉक्स’ प्रोटोटाइप बनाने के लिए प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया गया, तो हर कोई उनकी प्रतिभा को देख हैरान था। उन्होंने एक ट्यूब लैंप बनाया था, जो कम आवृत्ति वाली यूवी-सी किरणों का उत्सर्जन करता है और कोरोना वायरस को मारता है।

वहीं अक्षत शर्मा का अनूठा ‘कोरोनाबोट’ एक ऐसा रोबोट है, जो व्यक्ति के तापमान, आपके फेफड़ों के स्वास्थ्य आदि की जांच करते हुए शरीर के अंगों के वाइटल्स पर नजर रखता है, क्लाउड पर डेटा अपलोड करता है और अलेक्सा के साथ कनेक्ट भी हो सकता है। हम कह सकते हैं कि देश के नवनिर्माण में किशोर-युवा अपने

स्तर से वह सब करने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे देश को आगे बढ़ाने के साथ-साथ अपनी पहचान बनाने में भी मदद मिल सके।

आत्मनिर्भर बने नन्हें हाथ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भरता के मंत्र को पूरी तरह आत्मसात करने में भी पीछे नहीं हैं नये भारत के प्रतिभाशाली बच्चे। लॉकडाउन के दौरान लुधियाना के अग्रिम खुराना और अक्षा सेठी ने केक बनाने की कला सीखी और अपना वेंचर शुरू कर ऑर्डर लेना शुरू किया। 11 वर्षीय अक्षा सेठी थीम बेस्ड केक बनाने में माहिर हो गई हैं। छोटी सी उम्र में उन्हें बेंगलुरु समेत विभिन्न शहरों से केक के ऑर्डर मिल रहे हैं। वह कुकीज, ब्राउनीज, कप केक आदि तैयार कर रही हैं।

वहीं, शहर के मॉडल टाउन के 13 वर्षीय अग्रिम खुराना ने लॉकडाउन के समय अपनी मां और यू-ट्यूब की मदद से केक बनाना सीखा। इसके बाद आस-पड़ोस और रिश्तेदारों से केक के ऑर्डर मिलने शुरू हो गए। इससे अग्रिम का उत्साह बढ़ा और उन्होंने पिछले साल सितंबर में बेकर्स ज्वाय वेंचर शुरू कर दिया। अब तक वह लुधियाना के अलावा जालंधर,चंडीगढ़, पठानकोट, करनाल तक केक के ऑर्डर भेज चुके हैं।

अक्षा सेठी

ऑनलाइन गेम के बने बादशाह

मात्र 18 साल के हैं उज्ज्वल चौरसिया और ऑनलाइन गेमिंग में नाम और दाम दोनों कमा रहे हैं। उनके चैनल ’टेक्नो गेमर्ज’ पर सब्सक्राइबर्स की संख्या 1.2 करोड़ पार कर गई है। हाल ही में उन्होंने ’गेम ऑन’ नाम से म्यूजिक वीडियो बनाकर रिलीज किया है। कहते हैं उज्ज्वल, बचपन से गेम्स में दिलचस्पी थी। पूरे समय गेम्स ही खेलता रहता था। शुरू में मुङो जो फोन मिला था, उसमें प्ले स्टोर ही नहीं था।

तब मैंने यूट्यूब पर सीखा कि इस फोन में गेम्स कैसे चलाऊं? खुद ही सीखकर मैंने प्ले स्टेशन का गेम फोन पर ले लिया। जब बच्चे टेंपल रन खेलते थे, तब मैं तीस हजार के प्ले स्टेशन का पांच हजार का आने वाला गेम अपने पुराने एंड्रॉयड फोन में खेल रहा था। जब मेरे दोस्तों को यह बहुत अच्छा लगा, तो मैंने शुरू में चार-पांच वीडियो डाल दिए। हालांकि वे वहां साल भर तक पड़े रहे। उन पर 150 व्यूज ही आए थे। फिर मेरे बड़े भाई ने मुङो प्रोत्साहित किया। फिर मैंने ’टेक्नो गेमर्ज’ नाम से प्रोफेशनल चैनल बनाया।

(इनपुट : नोएडा से अंशु सिंह, प्रयागराज से अमलेंदु त्रिपाठी, प्रतापगढ़ से रमेश त्रिपाठी, पटना से पिंटू कुमार, लुधियाना से राधिका कपूर) 

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