अगर किसी को जांच और निगरानी से अलग रखा जाएं, तो वही लोकतंत्र के पतन का कारण बनता है: उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने द कांस्टीट्यूशन अडाॅप्ट पुस्तक के विमोचन पर कहा कि किसी को भी जांच से दूर रखना लोकतंत्र के लिए खतरा है। उन्होंने एक न्यायाधीश के आवास पर नकदी मिलने के मामले में एफआईआर न होने पर चिंता जताई। अटार्नी जनरल ने संविधान को जीवंत दस्तावेज बताया।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली: कानून से ऊपर कोई नहीं होता और यदि किसी को जांच और निगरानी से अलग रखा जाता है, तो वही लोकतंत्र के पतन का कारण बनता है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भारत मंडपम में द कांस्टीट्यूशन अडाॅप्ट पुस्तक के विमोचन के दौरान यह कहा। लुटियंस दिल्ली स्थित एक न्यायाधीश के आवास पर नकदी मिलने की घटना पर चिंता जताते हुए कहा कि अब तक उस मामले में एफआईआर नहीं हुई है।
धनखड़ ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि देश में कानून का शासन ही समाज की नींव है और इसमें किसी भी प्रकार की देरी या भेदभाव की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। लोकतंत्र को जीवंत बनाए रखने के लिए सबसे जरूरी अभिव्यक्ति, संवाद और जवाबदेही को तय करना है।
हर व्यक्ति और संस्था को जांच और जवाबदेही की प्रक्रिया का सामना करना चाहिए। अगर किसी को इससे छूट दी जाती है, तो वह व्यक्ति या संस्था खुद में कानून बन जाती है। जो किसी भी लोकतांत्रिक समाज के लिए घातक हो सकता है।
सरकारी कार्यालयों में लगाई जाएगी उपराष्ट्रपति की तस्वीर !
मुख्य न्यायाधीश द्वारा प्रोटोकाल के महत्व को रेखांकित करने का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि न्यायपालिका के सर्वोच्च पद के लिए तय शिष्टाचार केवल सम्मान नहीं बल्कि प्रणाली की मर्यादा का प्रतीक है।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने व्यक्तिगत अनुभव भी साझा करते हुए कहा कि खुद भी कई बार उपेक्षा का शिकार हुए हैं। सरकारी कार्यालयों में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की तस्वीरें लगी होती हैं, पर उपराष्ट्रपति की तस्वीर नहीं लगती।
मैं अब यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा हूं कि मेरे बाद आने वाले उपराष्ट्रपति की तस्वीर सरकारी कार्यालयों में जरूर लगे।
संविधान एक बार लागू कर देने वाला दस्तावेज नहीं है: वेंकटरमानी
भारत के अटार्नी जनरल आर वेंकटरमानी ने कहा कि संविधान कोई एक बार लागू कर देने वाला दस्तावेज नहीं है। यह समय और समाज की जरूरतों के अनुसार निरंतर आत्मसात किया जाने वाला जीवंत मार्गदर्शक है।
ऐसे समय में इस पुस्तक का उद्देश्य नागरिकों और संस्थाओं को यह याद दिलाना है कि संविधान न केवल अधिकार देता है बल्कि जिम्मेदारियों की भी मांग करता है।
पुस्तक के लेखक सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने कहा कि इस पुस्तक में संसद का न्यायालय कक्ष और अदालत कक्ष से जुड़ी लगभग सभी धाराओं का जिक्र किया गया है। जो कानून की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों के लिए काफी सहायक है।
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