दिल्ली सरकार ने एलजी के आदेश के खिलाफ दायर याचिका वापस ली, मनपसंद वकीलों की नियुक्ति के फैसले को पलटा था
दिल्ली सरकार ने दिल्ली दंगों से जुड़े मामलों में अपनी पसंद के वकीलों की नियुक्ति के फैसले को पलटने के खिलाफ याचिका वापस ले ली है। उपराज्यपाल के आदेश को चुनौती देने वाली इस याचिका को सरकार ने हाई कोर्ट में वापस लेने की अनुमति मांगी। कोर्ट ने सरकार के अनुरोध को स्वीकार करते हुए याचिका खारिज कर दी।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली दंगों से संबंधित मामलों पर बहस करने के लिए अपनी पसंद के अभियोजकों का एक पैनल नियुक्त करने के कैबिनेट के फैसले को पलटने संबंधी उपराज्यपाल के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका दिल्ली सरकार ने सोमवार को दिल्ली हाई कोर्ट से वापस ले ली। दिल्ली सरकार ने मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ के समक्ष याचिका वापस लेने की अनुमति देने का अनुरोध किया।
दिल्ली सरकार वर्ष 2021 में चुनौती याचिका दायर की थी। वहीं, सुनवाई के दौरान उपराज्यपाल कार्यालय की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता संजय जैन ने उक्त अर्जी पर कोई आपत्ति नहीं जताई। सरकार के अनुरोध को स्वीकार करते हुए कहा कि रिट याचिका को वापस लेने की मांग करने वाली अर्जी को स्वीकार करते हुए मूल याचिका खारिज की जाती है।
दिल्ली सरकार ने अपनी पसंद का पैनल किया था नियुक्त
दिल्ली सरकार ने दिल्ली पुलिस की सिफारिशों को ठुकराते हुए अपनी पसंद का एक पैनल नियुक्त किया था। हालांकि, बाद में उपराज्यपाल ने संविधान के अनुच्छेद 239-एए(4) के प्रावधान के तहत अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रपति के फैसले के लंबित रहने तक उक्त मामलों का संचालन करने के लिए दिल्ली पुलिस के चुने हुए अधिवक्ताओं को विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) के रूप में नियुक्त किया था। दिल्ली सरकार ने तर्क दिया था कि एसपीपी की नियुक्ति असाधारण के बजाए एक नियमित प्रक्रिया है और इसके लिए राष्ट्रपति को संदर्भित करने की आवश्यकता नहीं थी।
एलजी नियमित रूप से एसपीपी की नियुक्ति में हस्तक्षेप कर रहे
यह भी आरोप लगाया गया था कि एलजी नियमित रूप से एसपीपी की नियुक्ति में हस्तक्षेप कर रहे हैं और निर्वाचित सरकार को कमजोर कर रहे हैं, जो अनुच्छेद 239-एए के भी खिलाफ है। याचिका में कहा गया था कि जांच एजेंसी यानी दिल्ली पुलिस द्वारा एसपीपी की नियुक्ति की स्वतंत्रता पर अतिक्रमण करती है, जोकि निष्पक्ष सुनवाई की संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन करती है।
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