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    LG VK Saxena Interview: छह साल में स्लम सिटी से कैपिटल सिटी बन जाएगी दिल्लीः एलजी

    Updated: Sat, 05 Apr 2025 11:56 AM (IST)

    दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने राजधानी के विकास के लिए अपनी महत्वाकांक्षी योजनाओं पर विस्तार से चर्चा की। डीडीए के कामकाज में सुधार फ्लैटों की बिक्री में वृद्धि अनधिकृत कॉलोनियों का विकास यमुना रिवरफ्रंट प्रोजेक्ट ड्रग्स मुक्त दिल्ली और बांग्लादेशियों को हटाने जैसे मुद्दों पर उन्होंने अपने विचार साझा किए। जानिए कैसे एलजी दिल्ली को स्लम सिटी से कैपिटल सिटी में बदलने की योजना बना रहे हैं।

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    LG VK Saxena: उपराज्यपाल वी के सक्सेना का साक्षात्कार। फोटो ध्रुव कुमार

    दिल्ली कहने को तो देश की राजधानी है, लेकिन यहां के हालात किसी स्लम यानी झुग्गी झोपड़ी जैसे क्षेत्र से बेहतर नहीं हैं। भीड़भाड़, यातायात जाम, टूटी सड़कें, उड़ती धूल, प्रदूषण, लचर सार्वजनिक परिवहन... यही कुछ है इस शहर की पहचान।

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    हालांकि, दिल्ली के अभिभावक और डीडीए के अध्यक्ष के रूप में उपराज्यपाल वीके सक्सेना हालात सुधारने के लिए प्रयासरत रहे हैं और उनके प्रयासों से कुछ सुधार भी नजर आता है, लेकिन अब भी बहुत कुछ किया जाना शेष है।

    दिल्ली को वह किस रूप में देखना चाहते हैं और यहां के हालात बदलने के लिए उनकी क्या योजनाएं हैं, इन बिंदुओं पर दैनिक जागरण के दिल्ली राज्य ब्यूरो में प्रमुख संवाददाता संजीव गुप्ता ने एलजी वीके सक्सेना से विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश....

    तकरीबन तीन साल के अति व्यस्त कार्यकाल से आप कितना संतुष्ट हैं? दिल्ली के विकास से जुड़े ऐसे कौन से कार्य हैं, जिन्हें आप नहीं कर पाए एवं जिसका आपको मलाल भी है?

    तीन साल पहले जब दिल्ली की बागडोर संभाली तो मन में बहुत कुछ करने की इच्छा थी। हालांकि, चुनौतियां भी कम नहीं थीं। मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं कि केजरीवाल सरकार का सहयोग न मिलने के कारण कई प्रोजेक्ट बीच में ही छोड़ने पड़ गए। फिर भी डीडीए की सहायता से जितना संभव हो सका, उतना कर पाए।

    सबसे बड़ी चुनौती तो डीडीए की भूमि से अतिक्रमण हटाना ही रही। फिर भी हमने यमुना बाढ़ क्षेत्र से बहुत हद तक अतिक्रमण हटाने में कामयाबी पाई। डीडीए घाटे में चल रहा था, नए फ्लैट बनाते थे, जबकि करीब 50 हजार पुराने फ्लैट बिक नहीं रहे थे। दिल्ली के नियोजित विकास से वह भटक गया था। दिल्ली की तरक्की की राह बाधित थी। निजी कंपनियों के बड़े-बड़े कार्यालय एनसीआर में खुले, जबकि वे दिल्ली में खुलने चाहिए थे।

    होना यह चाहिए था कि एनसीआर में रहने वाले लोग काम करने के लिए दिल्ली आते, लेकिन इसके विपरीत लोग दिल्ली में रहते हुए यहां से काम करने के लिए एनसीआर के शहरों में जाते हैं। दिल्ली को विकास की राह पर ले जाने के लिए डीडीए को बड़ी भूमिका निभानी चाहिए थी, इसे देखते हुए डीडीए के कामकाज में कई सुधार किए गए और अब उसके अच्छे परिणाम नजर आ रहे हैं।

    डीडीए ने दिल्ली के नियोजित विकास में अपनी उचित भूमिका का निर्वहन नहीं किया। लोगों ने डीडीए के फ्लैट भी खरीदना बंद कर दिया था। आपके आने के बाद डीडीए की कार्यप्रणाली में किस तरह बदलाव किया गया?

    देखिए, पहले डीडीए जमीन का आवंटन करता था या नीलामी करता था, लेकिन अब इसके बजाय जमीन लीज पर दी जा रही है, ताकि आय भी बढ़े और जमीन का मालिकाना हक भी डीडीए के पास रहे। पहले बिल्डर दो हजार रुपये में डीडीए के फ्लैट बुक करके साल भर के लिए छोड़ देते थे और बाद में फ्लैट नहीं खरीदते थे।

    इससे फ्लैट बिक नहीं पाते थे। अब इसमें बदलाव कर पांच हजार रुपये में रजिस्ट्रेशन कराया जा रहा है और फ्लैट के मूल्य का दस प्रतिशत बुकिंग के समय लिया जा रहा है। इससे वास्तविक खरीदार बुकिंग करा रहे हैं और फ्लैट तेजी से बिक रहे हैं। पहले दो फ्लैटों के मिलाया नहीं जा सकता था, अब इसकी अनुमति दे दी गई।

    पहले लाटरी से फ्लैट निकलता था, अब खरीदार अपनी पसंद से फ्लैट बुक कर सकते हैं। पहले दिल्ली में एक निश्चित क्षेत्रफल की संपत्ति होने पर खरीदार को दूसरा फ्लैट लेने की अनुमति नहीं थी, इस नियम को भी खत्म किया गया।

    अब फ्लैट खरीदने पर खरीदार को एक फोल्डर में सारे दस्तावेज देकर और मिठाई खिलाकर व फ्लैट के सामने फोटो देकर फीलगुड कराया जाता है। इन प्रयासों से डीडीए के फ्लैट तेजी से बिक रहे हैं। डीडीए ने साढ़े आठ हजार से अधिक फ्लैट बेचकर करीब साढ़े चार हजार करोड़ रुपये की कमाई की है। पिछले दो वर्षों में डीडीए की आय भी अब घाटे से निकलकर सरप्लस में आ गई है।

    अब दिल्ली के विकास को लेकर क्या कर रहे हैं? मुख्यमंत्री से इसपर कितनी बार मुलाकात हुई है?

    दिल्ली के विकास के लिए डीडीए के जरिये कई योजनाओं पर काम चल रहा है। सिर्फ फ्लैट बनाने तक ही नहीं, डीडीए तमाम प्रोजेक्टों पर काम कर रहा है। डीडीए कड़कड़डूमा में ट्रांजिट ओरिएंटेड डेवलपमेंट (टीओडी) के तहत एक प्रोजेक्ट तैयार कर रहा है, जहां कार्यालय और आवास साथ-साथ होंगे।

    डीडीए आज गोल्ड सूक, अस्पताल, खेल परिसर, कारपोरेट कार्यालय, होटल इत्यादि तमाम प्रोजेक्टों के लिए लीज पर जमीन दे रहा है और बड़ी-बड़ी कंपनियां इन्हें विकसित करने के लिए प्रस्ताव भेज रही हैं। रोहिणी और नरेला में विश्वस्तरीय स्पोर्ट्स कांप्लेक्स बनाए जाएंगे, जिनमें अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं होंगी, होटल होंगे और खेलों के आयोजन हो सकेंगे।

    डीडीए बड़े होटलों के लिए भी भूमि दे रहा है और उम्मीद है कि द्वारका, रोहिणी और नरेला में अगले ढाई से तीन वर्षों में ये बनकर तैयार हो जाएंगे। नरेला में एजुकेशन हब विकसित किया जा रहा है। सीएम से भी दिल्ली के विकास पर लगातार बात होती है। उनका विजन बिल्कुल स्पष्ट है। दो साल में ही दिल्ली में सुधार नजर आने लगेगा और आप देखेंगे कि छह साल में दिल्ली स्लम सिटी से कैपिटल सिटी में बदल जाएगी।

    दिल्ली के गांव और अनियोजित कालोनियां विकास से दूर हैं और दिल्ली के समग्र विकास की राह में बाधक हैं, इसके लिए क्या किया जा रहा है?

    देखिए, पीएम उदय योजना जो 2019 से मृत पड़ी थी, उसने अचानक अभूतपूर्व गति पकड़ ली है। इससे न केवल दिल्ली की 1700 से अधिक अनधिकृत कालोनियों के निवासियों को मालिकाना हक मिलेगा, बल्कि पहली बार ऐसी कालोनियों में योजनाबद्ध विकास गतिविधियां भी होंगी, जहां दिल्ली की लगभग 40 प्रतिशत आबादी रहती है।

    गांवों के विकास पर भी तेजी से काम चल रहा है। 958 करोड़ रुपये के विकास कार्य होने हैं। रोडमैप तैयार किया गया है और उसके अनुरूप काम किया जा रहा है। अगले माह तक दिल्ली का मास्टर प्लान भी आ सकता है, जिसके बाद नियोजित विकास की दिशा में दिल्ली और आगे बढ़ेगी।

    पहले आपने कहा था कि मिलेनियम डिपो की जमीन पर साबरमती की तर्ज पर रिवरफ्रंट बनेगा। अब कहा जा रहा है कि यह रिवरफ्रंट यमुना के दिल्ली में पूरे 22 किमी के स्ट्रेच पर बनेगा। इसके पीछे क्या सोच है?

    देखिए, दिल्ली में यमुना का जल स्तर घटता बढ़ता रहता है, इसलिए साबरमती की तर्ज पर दिल्ली में एक ही जगह रिवरफ्रंट बनाना व्यावहारिक नहीं होगा। बेहतर यही है कि दिल्ली में वजीराबाद से ओखला तक यमुना के पूरे 22 किमी लंबे स्ट्रेच को अलग-अलग हिस्से में रिवरफ्रंट के तौर पर विकसित किया जाए।

    इससे जनता को यमुना के पास लाना संभव हो पाएगा और उन्हें प्रदूषण मुक्त एवं अविरल यमुना के प्रति जागरूक और संवेदनशील भी बनाया जा सकेगा। मिलेनियम डिपो की जमीन पर भी तेजी से काम चल रहा है।

    छोटे-छोटे टेंट लगाकर हस्तशिल्प, आर्गेनिक और खानपान का सामान मिलेगा तो सेंट्रल पियाजा और टोपियरी पार्क सहित बांस के पुल भी आकर्षण का केंद्र होंगे। यहां लान व दो बड़े पार्किंग स्थल भी तैयार किए जा रहे हैं।

    सीएम ने हमारे साथ बातचीत में कहा कि दिल्ली की स्थिति शून्य से शुरुआत करने जैसी है। नए तरीके से टाउन प्लानिंग करनी होगी। आप क्या कहते हैं इस पर?

    सीएम का कहना बिलकुल सही है। शून्य नहीं, बल्कि दो शून्य जैसे हालात बने हैं। राज्य सरकार से जुड़े किसी भी क्षेत्र में पिछले 11 वर्षों के दौरान सही मायनों में कुछ हुआ ही नहीं है, इसीलिए जनता भी परेशान है।

    लेकिन अब नई सरकार ने सभी क्षेत्रों में काम शुरू कर दिया है। हालात एक दिन में नहीं बदलेंगे, समय लगेगा लेकिन बदलाव होगा।

    दिल्ली में कई स्थानों पर डीडीए के कामर्शियल काम्प्लेक्स और कम्युनिटी हाल बदहाल स्थिति में हैं, इनके लिए क्या कोई योजना है?

    यह सही है कि कई कामर्शियल काम्प्लेक्स की स्थिति ऐसी है, लेकिन उसमें सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं। अभी आपने देखा कि नेहरू प्लेस काम्प्लेक्स का कायाकल्प किया गया है। कई कम्युनिटी हाल ऐसे स्थानों पर बनाए गए, जहां लोगों को उनका लाभ नहीं मिल रहा था। उन्हें लाइब्रेरी में बदला जा रहा है।

    दिल्ली को बांग्लादेशियों से मुक्ति दिलाने की मुहिम कहां तक पहुंची, इससे आप कितने संतुष्ट हैं?

    इस दिशा में लक्ष्यबद्ध तरीके से काम चल रहा है। मेरे पास नियमित रिपोर्ट आती है। हम ऐसे लोगों को न केवल चिह्नित कर रहे हैं, बल्कि उन्हें दिल्ली से हटाने पर भी काम कर रहे हैं। साथ ही उनके दस्तावेज बनाने वालों तक भी पुलिस पहुंच रही है और उनपर कार्रवाई की जा रही है।

    आपने दिल्ली को तीन साल में ड्रग्स फ्री करने की बात कही है। क्या दिल्ली को वाकई तीन साल में ड्रग्स फ्री किया जा सकेगा?

    बिल्कुल किया जा सकेगा। हमने इस दिशा में एक माह लंबा विशेष अभियान भी चलाया था। उस दौरान ड्रग्स की तस्करी और प्रयोग को रोकने के लिए जो कदम उठाए गए, वे सभी लगातार जारी हैं और मुझे उम्मीद है कि इसी तरह यह कार्य चलता रहा तो तीन वर्ष में दिल्ली ड्रग्स फ्री हो जाएगी।

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