जलभराव और जाम से निजात को दिल्ली में एक ही सिविक एजेंसी करे काम, समाधान के लिए हाई कोर्ट ने जताई जरूरत
दिल्ली हाई कोर्ट ने जलभराव की समस्या पर सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार को फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि जलभराव सीवेज और सड़कों के प्रबंधन के लिए कई एजेंसियों की बजाय एक ही एजेंसी होनी चाहिए। कोर्ट ने मुख्य सचिव को इस मामले में रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है। अदालत ने नागरिक एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी पर चिंता जताई।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। जलभराव और यातायात की समस्या से जुड़े मामले पर सुनवाई करते दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को एक बार फिर सड़कों के निर्माण, सीवेज, कचरा और नालियों के प्रबंधन जैसे मुद्दों से निपटने के लिए एक ही सिविक एजेंसी होने की बात कही।
न्यायमूर्ति प्रतिबा एम सिंह व न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने एजेंसियों के बीच कुप्रबंधन पर जोर देते हुए कहा कि जिस तरह नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (NDMC) लुटियंस दिल्ली में सभी सिविक सुविधाओं का ध्यान रखती है, उसी तरह पूरी दिल्ली के लिए एक ही सिविक एजेंसी होनी चाहिए।
पीठ ने कहा कि पानी, निर्माण, नाली और सड़क के लिए ऐसा ही होना चाहिए। पीठ ने कहा कि आप चाहें तो अलग-अलग विभाग बना सकते हैं, लेकिन एजेंसी एक ही होनी चाहिए।
उक्त टिप्पणी के साथ पीठ ने दिल्ली के मुख्य सचिव को इस आदेश को एडमिनिस्ट्रेशन या दिल्ली सरकार के अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत करने के बाद एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया, ताकि इस मामले पर उनका रुख पता लगाया जा सके। अगली सुनवाई तीन सितंबर को होगी।
सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार ने मुख्य सचिव के निर्देश पर दलील दी कि एकीकृत नाला प्रबंधन प्रकोष्ठ (आईडीएमसी) दिल्ली में सभी नालों की निगरानी करने वाला प्राधिकरण है।
इस पर पीठ ने कहा कि यह तथ्य गलत प्रतीत होता है क्योंकि आइडीएमसी, बरसाती नाले और सीवेज नालियों सहित सभी नालों का प्रबंधन करने वाली एकमात्र एजेंसी नहीं लगती है।
पीठ ने कहा 28 जुलाई को दिए गए आदेश का आशय यह था कि एनडीएमसी के मामले की तरह एक ऐसी सिविक एजेंसी होनी चाहिए जो सिविक कार्यों से जुड़े सभी मुद्दों को संभाले।
न्यायालय ने 28 जुलाई को जिम्मेदारियों के अनुचित निर्धारण के कारण विभिन्न नागरिक एजेंसियों के बीच व्याप्त भारी भ्रम का संज्ञान लिया था और दिल्ली सरकार से एडमिनिस्ट्रेशन और प्रबंधन के केंद्रीकरण पर निर्णय लेने को कहा था।
पीठ ने उदाहरण देते हुए कहा था कि बरसाती नालियां दिल्ली नगर निगम के प्रबंधन के अधीन हैं और सीवेज लाइनें दिल्ली जल बोर्ड के अधीन हैं।
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