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    दिल्ली में प्रदूषण के कारण अनेक, फिर भी लगा देते हैं वाहनों पर 'ब्रेक', जानें क्‍या कहते हैं एक्‍सपर्ट...

    दिल्ली में पुराने वाहनों पर रोक लगने से वाहन चालकों के सामने समस्या आ खड़ी हुई है। विशेषज्ञ प्रदूषण के अन्य कारकों पर ध्यान देने की सलाह देते हैं। उनका कहना है कि सार्वजनिक परिवहन को मजबूत करना और प्रदूषण फैलाने वाले अन्य स्रोतों पर काम करना जरूरी है। पुराने वाहनों की जगह नए वाहन आ जाएंगे इसलिए प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों पर कार्रवाई होनी चाहिए।

    By sanjeev Gupta Edited By: Neeraj Tiwari Updated: Sun, 06 Jul 2025 01:56 PM (IST)
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    सभी पुराने वाहन प्रदूषण फैला रहे हों, ऐसा कतई नहीं है। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

    संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। उम्रदराज वाहनों को ईंधन न देकर उन्हें जब्त करने के अभियान ने जहां एक ओर दिल्ली के लाखों वाहन चालकों के सामने समस्या खड़ी कर दी है। वहीं, वायु प्रदूषण की रोकथाम के सरकारी उपायों पर भी सवालिया निशान लगा दिया है। विशेषज्ञों का भी कहना है कि प्रदूषण फैलाने वाले कारक निरंतर बढ़ रहे हैं जबकि उन्हें रोकने के स्थायी उपाय अपनाने की जगह जब तब अव्यवहारिक प्रतिबंध लगा दिए जाते हैं।

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    ...तो वैसे ही निजी वाहन कम हो जाएंगे

    जानकारों के मुताबिक वाहनों का धुआं दिल्ली के प्रदूषण का महज एक कारक है, जबकि अन्य कारक कहीं ज्यादा हैं। इसके बावजूद अन्य कारकों पर गंभीरता से ध्यान नहीं देकर वाहनों पर तलवार लटका दी जाती है। अगर दिल्ली की सार्वजनिक परिवहन सेवा मजबूत हो तो सड़कों से वैसे ही निजी वाहन कम हो जाएंगे।

    दूसरे प्रदूषण कम करने के लिए उसकी सभी वजहों पर काम होना चाहिए। तभी कुछ सकारात्मक परिणाम सामने आ सकते हैं। सिर्फ उम्रदराज वाहन हटाने से कुछ नहीं होगा। जरूरत सड़क पर वाहनों की भीड़ कम करने की है।

    समस्या वही की वही बनी रहेगी

    जाम-अतिक्रमण दूर करने की है। वैसे भी पुराने वाहन हटेंगे तो नए आ जाएंगे, समस्या वही की वही बनी रहेगी। विचारणीय पहलू यह भी है कि सभी पुराने वाहन प्रदूषण फैला रहे हों, ऐसा कतई नहीं है। कहने का मतलब यही कि पुराने वाहनों को उम्र के आधार पर नहीं बल्कि उनसे होने वाले प्रदूषण के आधार पर हटाने की कार्रवाई होनी चाहिए।

    2010 से लेकर 2020 तक एक दशक के दौरान प्रदूषण के बढ़ते दायरे पर तैयार केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अधीन सफर इंडिया की कुछ समय पुरानी शोध रिपोर्ट इस संबंध में चौंकाने वाली तस्वीर सामने रखती है।

    रिपोर्ट के अनुसार, प्रदूषण के परंपरागत स्रोतों की हिस्सेदारी जहां इस समयावधि में काफी बदली है वहीं 26 नए स्रोत भी जुड़ गए हैं। ऐसे में प्रदूषण की प्रभावी रोकथाम के लिए इन कारकों को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता।

    दिल्ली के पीएम 2.5 में परिवहन से इतर किस क्षेत्र की कितनी हिस्सेदारी (प्रतिशत में)

    स्रोत हिस्सेदारी

    • उद्योग - 22.3
    • ऊर्जा - 3.1
    • आवासीय - 5.7
    • निर्माण स्थल - 18.1
    • अन्य स्रोत - 11.7

      (ठोस कचरा, खुले में आग लगाना, ईंट भट्ठे इत्यादि)

    प्रदूषण के परंपरागत स्रोतों में एक दशक के दौरान आया बदलाव (प्रतिशत में)

    • स्रोत 2020 में 2010 में कितना बदलाव
    • उद्योग : 22.3 17.3 प्लस 48
    • ऊर्जा 3.1 3.0 प्लस 16
    • आवासीय 5.7 18.5 माइनस 64
    • निर्माण स्थल 18.1 27.8 माइनस 26
    • अन्य स्रोत 11.7 1.3 नए स्रोत

    दिल्ली में प्रदूषण के नए स्रोत और उनके कारक

    • परिवहन : सड़कों पर अतिक्रमण और घंटो लंबा यातायात जाम
    • गंदी बस्ती : खाना पकाने के लिए प्रयुक्त ईंधन और उसकी मात्रा
    • ईंट भट्ठे : चलाने की प्रौद्योगिकी और प्रयुक्त ईंधन की मात्रा
    • रेहड़ी-खोमचे : प्रदूषित ईंधन, तंदूर के लिए कोयला
    • होटल (ढाबा) : ईंधन का प्रकार और खाना पकाने के लिए उपयोग की जाने वाली मात्रा
    • स्पीड ब्रेकर : स्पीड ब्रेकरों की संख्या, प्रति किमी सड़क का प्रकार
    • प्रमुख अस्पताल : बाहरी रोगियों की संख्या, वाहन लोड और डीजी सेट
    • पर्यटक स्थल : पर्यटक भार- वाहन भार
    • शाॅपिंग माल : पार्क किए गए वाहनों की संख्या
    • यातायात जंक्शन : यातायात जंक्शनों की संख्या
    • रेलवे स्टेशन : यात्री भार, वाहनों का भार
    • हवाई अड्डा : वाहन संख्या (स्थानीय और बाहरी)
    • उद्योग : श्रेणी, प्रौद्योगिकी और प्रयुक्त ईंधन
    • स्‍थानीय परिवहन (ओला/उबर/टैक्सी) : प्रति दिन किमी सफर और संख्या
    • घरेलू : प्रयुक्त ईंधन का प्रकार
    • अपशिष्ट जलना : प्रति व्यक्ति मात्रा
    • बायोमेडिकल वेस्ट : उत्पन्न मात्रा
    • बिजली संयंत्र : इस्तेमाल की गई तकनीक, इस्तेमाल किया गया कोयला
    • शवदाह गृह : स्थान, मामलों की संख्या
    • बड़े होटल : खाना पकाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला ईंधन
    • बड़े स्कूल/कालेज : छात्र संख्या, वाहन संख्या
    • हवा : सड़क पर उड़ती धूल, सड़क की स्थिति, वाहन भार आदि
    • डीजल जनरेटर : ईंधन का प्रयोग, कितने घंटों तक
    • मोबाइल टावर : प्रयुक्त ईंधन और संख्या
    • नियमित दूध और सब्जी वैन : वाहनों की संख्या (बाहरी)

    ''कारक की अनदेखी नहीं की जा सकती''

    ईंधन का प्रकार, वाहनों की संख्या, लोगों की भीड़, खाना बनाने के तौर तरीके...यह सब किसी भी स्थान को प्रदूषण का हाॅट स्पाॅट बनाने में सहायता करते हैं। अगर कहीं कोयला, केरोसीन, लकड़ी जलाई जाती है, वाहन की स्पीड एकदम मंदी करके तेज की जाती है। कहीं पर बहुत ज्यादा वाहनों का आवागमन होता है तो निस्संदेह इन सबसे प्रदूषण बढ़ता है। इनमें से किसी भी कारक की अनदेखी नहीं की जा सकती।

    -डाॅ गुरफान बेग, निदेशक, नेशनल इंस्टीटयूट आफ एडवांस्ड स्टडीज

    ''वाहनों पर प्रतिबंध सीधे तौर पर सरकारों की नाकामी''

    बीएस 3 और बीएस 4 वाहनों पर प्रतिबंध सीधे तौर पर सरकारों की नाकामी है। प्रदूषण इन वाहनों के चलने से नहीं बल्कि बार बार इनके जाम में फंसने और धीमी गति पर चलने से होता है लेकिन वोट बैंक के लालच में सरकार न यातायात जामी समस्या सुलझा पाती है। न ही अतिक्रमण हटा पाती है। अगर ब्रिटिशकाल या फिर भूटान की तरह लालबत्ती ही खत्म कर दी जाए तो वाहनों से होने वाले यह प्रदूषण रह ही नहीं जाएगा। आईआईटी कानपुर की एक रिपोर्ट में आया भी है कि वाहनों का प्रदूषण केवल 9 से 10 प्रतिशत तक है, जबकि बाकी अन्य वजहों से होता है।

    -टुटू धवन, ऑटो एक्सपर्ट

    ''अतिक्रमण हटाने में भी प्रयास करें''

    दिल्ली सरकार को जाम की समस्या सुलझाने के लिए सड़कों की दोषपूर्ण डिजाइन सुधारने, बाटलनेक खत्म करने और सड़कों के आसपास अतिक्रमण हटाने की दिशा में भी गंभीरता से प्रयास करना चाहिए, जो अमूमन नजर नहीं आता। इसके अलावा प्रदूषण फैलाने संबंधी अन्य कारकों पर भी गंभीरता से काम करने की जरूरत है।

    -प्रो. एस एन त्रिपाठी, अध्यक्ष, सिविल इंजीनियरिंग विभाग, आइआइटी कानपुर

    ''प्रदूषण फैलाने के आधार पर पकड़ें गाड़ी''

    सिर्फ उम्र का पैमाना गलत है। प्रदूषण फैलाने के आधार पर वाहनों की धरपकड़ होनी चाहिए। वैसे भी केवल एक कारक पर काम करने से प्रदूषण कम नहीं होगा। होगा भी तो थोड़ा बहुत। होना यह चाहिए कि वाहन से होने वाले उत्सर्जन का एक मानक तय किया जाना चाहिए और उसके आधार पर वाहन को चलने से रोका जाना चाहिए, न कि उम्र के आधार पर किसी तरह का प्रतिबंध लगना चाहिए।

    -अनुमिता राय चौधरी, कार्यकारी निदेशक, सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई)

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