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    दिल्ली में 218 शरणार्थी परिवार होंगे बेदखल, सरकार से लगाई ये गुहार

    By Jagran NewsEdited By: Rajesh Kumar
    Updated: Sun, 18 May 2025 04:10 PM (IST)

    दिल्ली के करोल बाग में तिब्बिया कॉलेज परिसर में बसे 218 शरणार्थी परिवार बेदखली के आदेश से चिंतित हैं। विभाजन के समय आए इन परिवारों को सरकार ने यहां बसाया था। अब जमीन खाली करने के आदेश के बाद वे पुनर्वास की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार को वैकल्पिक व्यवस्था करनी चाहिए। वे जमीन खाली करने को तैयार हैं पर बेघर नहीं होना चाहते।

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    हम अतिक्रमणकारी नहीं हैं, हमारे पुनर्वास की व्यवस्था करे सरकार। फाइल फोटो

    शशि ठाकुर, नई दिल्ली। दिल्ली के करोल बाग स्थित आयुर्वेदिक एवं यूनानी तिब्बिया कॉलेज एवं अस्पताल परिसर में पिछले चार दशक से रह रहे 218 शरणार्थी परिवार इन दिनों काफी असमंजस और तनाव की स्थिति में हैं।

    दिल्ली सरकार द्वारा कॉलेज की जमीन खाली करने का आदेश जारी करने के बाद इन परिवारों का भविष्य अधर में लटक गया है। तिब्बिया कॉलेज वेलफेयर एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने सरकार के आदेश के खिलाफ नाराजगी जताई है।

    यहां के स्थानीय निवासियों का कहना है कि वे जमीन खाली करने को तैयार हैं, लेकिन सरकार ने उनके पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं की है।

    तिब्बिया कॉलेज वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) के पदाधिकारियों ने बताया कि वे 1947 में देश के बंटवारे के समय पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थी परिवारों में से एक हैं। तत्कालीन राजनेताओं ने उन्हें कॉलेज परिसर में बनाए गए अस्थाई कैंप में बसाया था।

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    जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के निर्देश पर कॉलेज परिसर में स्टाफ के लिए बनाए गए आवासीय कमरों को शरणार्थियों को रहने के लिए दे दिया गया था। तब से इस जमीन पर पिछली चार पीढ़ियों से लोग रह रहे हैं।

    जब लोग इस जमीन पर आकर रहते थे तो कॉलेज प्रशासन को 15 रुपये किराया देते थे। वहीं सरकार ने जहां भी मकानों को तोड़ा है, वहीं उन्हें कहीं जमीन या फ्लैट देकर बसाया है। इसके बाद भी सरकार यहां रह रहे परिवारों के साथ भेदभाव कर रही है। उन्हें रहने के लिए जमीन दी जानी चाहिए।

    लोगों की प्रतिक्रिया

    सरकार को जमीन खाली करवाने से पहले लोगों से बात करनी चाहिए थी। हम यहां से जाने को तैयार हैं। लेकिन, हमें बेघर नहीं किया जाना चाहिए। पुनर्वास की मांग करना कोई अपराध नहीं है। कॉलेज के पास 33.5 एकड़ जमीन है। उसमें से सरकार को 218 परिवारों को सिर्फ तीन एकड़ जमीन पर बसाना चाहिए।

    -रमेश अरोड़ा, अध्यक्ष- तिब्बिया कॉलेज वेलफेयर एसोसिएशन

    मेरे दादा-दादी बंटवारे के समय यहां आए थे। तब से हम यहां रह रहे हैं। हर साल टैक्स भी हमारे नाम से भरा जाता था। लेकिन वो रसीदें भी हमारे दादा-दादी के नाम से हैं। चूंकि हमारे नाम पर कोई जगह नहीं है, इसलिए अब अचानक हमें खाली करने के लिए कहा जा रहा है। यह कैसा न्याय है?

    - परमजीत सिंह, कोषाध्यक्ष।

    हमारे बच्चे यहीं स्कूल जाते हैं। सारा कारोबार भी यहीं है। लोगों की मांग है कि वे जमीन खाली करने को तैयार हैं, लेकिन सरकार को पहले वैकल्पिक व्यवस्था करनी चाहिए। जिस तरह सरकार ने कॉलेज कर्मचारियों को दूसरी जगह मकान और जमीन देकर बसाया है, उसी तरह हमें भी बसाना चाहिए।

    -भारती, स्थानीय निवासी

    अगर हम निजी जमीन पर अवैध रूप से रह रहे होते तो बात समझ में आती। लेकिन, सरकार ने हमें यहां बसाया था। अब सरकार हमें बेदखल कर रही है, वह भी बिना किसी योजना के। शरणार्थी परिवारों का साफ कहना है कि वे अतिक्रमणकारी नहीं हैं। उन्हें यह जमीन ऐतिहासिक परिस्थितियों में दी गई थी। अब जब उन्हें यहां से बेदखल किया जा रहा है तो सरकार को उनके पुनर्वास की जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए।

    - राजेश, स्थानीय निवासी

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