दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला, आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में पत्नी बरी; पर्याप्त सबूत नहीं मिल पाए
दिल्ली हाई कोर्ट ने पति को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में पत्नी और उसके परिवार को बरी करने के फैसले को सही ठहराया है। अदालत ने कहा कि पति अपनी शादी से नाखुश था लेकिन पत्नी द्वारा उकसाने का कोई ठोस सबूत नहीं मिला। मृतक के पिता द्वारा लगाए गए दहेज के झूठे मामले में फंसाने की धमकी के आरोप को भी अदालत ने अपर्याप्त माना।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। पति को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में सुबूतों और साक्ष्यों के अभाव का हवाला देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने पत्नी व उसके परिवार के सदस्यों को बरी करने के निर्णय को बरकरार रखा है।
न्यायमूर्ति नीना कृष्णा बंसल की पीठ ने कहा कि पति अपनी शादी से नाखुश निराश था, लेकिन पत्नी के आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई आरोप नहीं बनता। पीठ ने कहा कि महिला पर केवल मृतक को धमकी देने का आरोप है, लेकिन बिना किसी विशिष्ट घटना या तारीख के ऐसे अस्पष्ट दावे आरोपित साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
ट्रायल कोर्ट ने महिला और उसके रिश्तेदारों को बरी किया था
उक्त टिप्पणी के साथ अदालत ने करावल नगर निवासी मृतक के पिता शिव कुमार की अपील याचिका खारिज कर दी। मामले में प्राथमिकी 2011 करावल नगर थाने में हुई थी और ट्रायल कोर्ट ने फरवरी 2020 में महिला व उसके परिवार के सदस्यों को बरी कर दिया था।
याचिका में आरोप लगाया गया था कि आत्महत्या करने से ठीक पहले मृतक का अपनी पत्नी से झगड़ा हुआ था और वह दहेज के झूठे मामले में फंसाने की धमकी देती थी। मौके पर पहुंची पुलिस को सुसाइड नोट सौंप कर मृतक के पिता ने आरोप लगाया कि पत्नी और उसके परिवार के सदस्यों ने पति को परेशान किया गया था।
ठोस सुबूत रिकॉर्ड पर पेश नहीं कर सके
हालांकि, अदालत ने कहा कि मृतक के माता-पिता की गवाही से पता चलता है कि पत्नी के ससुराल में कुछ समस्याएं थीं और वह आत्महत्या का प्रयास किया था। यह भी कहा कि मृतक के पिता ने बेटे-बहू के बीच वैवाहिक कलह का दावा करने के संबंध में ठोस सुबूत रिकॉर्ड पर पेश नहीं कर सके। अदालत ने कहा कि सुसाइड नोट पर कोई तारीख अंकित नहीं थी, इससे यह पता चले कि यह आत्महत्या के समय ही लिखा गया था।
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