CDS परीक्षा से आने वालीं महिलाओं को तीन सैन्य अकादमियों में आवेदन से रोका, दिल्ली हाई कोर्ट का UPSC को नोटिस
दिल्ली हाई कोर्ट ने संयुक्त रक्षा सेवा (सीडीएस) परीक्षा में महिलाओं को सैन्य अकादमियों में आवेदन करने से रोकने के मामले में केंद्र सरकार और यूपीएससी से जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता कुश कालरा ने यूपीएससी के विज्ञापन को चुनौती दी है जिसमें महिलाओं को कुछ अकादमियों में आवेदन करने से रोका गया है। कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई 12 नवंबर को तय की है।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। संयुक्त रक्षा सेवा (CDS) परीक्षा के माध्यम से महिलाओं को सैन्य अकादमियों में आवेदन करने से रोकने के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार और संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) से जवाब मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने याचिका पर नोटिस जारी कर केंद्र सरकार व UPSC को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। मामले में अगली सुनवाई 12 नवंबर को होगी।
इस संबंध में जारी अधिसूचना में महिलाओं को केवल चेन्नई स्थित अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी में शाॅर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) पाठ्यक्रम के लिए आवेदन करने की अनुमति दी गई है।
याचिकाकर्ता कुश कालरा ने याचिका में कहा कि सीडीएस-दो परीक्षा 2025 के लिए यूपीएससी ने 28 मई को विज्ञापन जारी किया है।
इसमें महिलाओं को चार में से तीन सेवा शाखाओं, देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी (IMA), एझिमाला स्थित भारतीय नौसेना अकादमी (INA) और हैदराबाद स्थित वायु सेना अकादमी (AFA) में आवेदन करने से प्रतिबंधित किया गया था।
याचिकाकर्ता ने इस निर्णय को मनमाना था और पेशे के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताया है। यह अधिसूचना महिलाओं को केवल चेन्नई स्थित अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी में शार्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) पाठ्यक्रम के लिए आवेदन करने की अनुमति देती है।
कालरा की तरफ से पेश हुई वकील ज्योतिका कालरा ने तर्क दिया कि यह एक प्रणालीगत और भेदभावपूर्ण बाधा को उजागर करता है और इच्छुक महिला उम्मीदवारों के अधिकारों को कमजोर करता है।
उन्होंने तर्क दिया कि यह संवैधानिक सिद्धांतों और स्थायी कमीशन पर सर्वोच्च न्यायालय के 2020 के फैसले के विपरीत है।
सर्वोच्च न्यायालय ने सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन की अनुमति देते हुए फरवरी 2020 में फैसला सुनाया था। इसमें महिलाओं की कमांड पदों पर नियुक्ति को प्रतिबंधित करना असंवैधानिक करार दिया गया था।
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