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    पत्नी को परजीवी कहना महिला और पूरी नारी जाति का अपमान: दिल्ली हाईकोर्ट

    Updated: Tue, 24 Sep 2024 07:18 PM (IST)

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि पति का दूसरी महिला के साथ रहना और उससे बच्चा होना पत्नी के लिए घरेलू हिंसा है। अदालत ने कहा कि पत ...और पढ़ें

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    पति का पत्नी को परजीवी कहना उसका व संपूर्ण नारी जाति का अपमान: हाईकोर्ट

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि पति के दूसरी महिला के साथ रहने और उससे एक बच्चा होने की स्थिति पत्नी को घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत घरेलू हिंसा का शिकार बनाती है। 30 हजार रुपये के मासिक रखरखाव के आदेश को बरकरार रखते हुए अदालत ने कहा कि पत्नी के कमाने में सक्षम होने से किसी पति को अपनी पत्नी और बच्चों को भरण-पोषण न देने से मुक्त नहीं करता है।

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    यह भी कहा कि भारतीय महिलाएं अपने पति, उसके माता-पिता व परिवार की देखभाल करने और अपने बच्चों की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ देती हैं। ऐसे में यह तर्क देना कि महिला परजीवी है और वह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग कर रही है, न केवल प्रतिवादी पत्नी बल्कि संपूर्ण महिला वर्ग का अपमान है।

    अन्य महिला के साथ रहा घरेलू हिंसा

    व्यक्ति की याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा कि कोई भी महिला यह बर्दाश्त नहीं कर सकती कि उसका पति किसी अन्य महिला के साथ रह रहा हो और उससे उसे एक बच्चा भी हो। ये सभी तथ्य पत्नी को घरेलू हिंसा का शिकार बनाते हैं।

    26 साल पहले हुई थी शादी

    दंपती की शादी वर्ष 1998 में हुई थी और पत्नी ने आरोप लगाया कि पति उसे मानसिक, मौखिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता था। यह भी आरोप लगाया कि वर्ष 2010 में, वह एक महिला को घर में लाया, जिसके साथ उसका अवैध संबंध था।

    ससुराल के लोगों ने महिला को दी धमकी

    उसने उसे अपने माता-पिता से मिलवाया और वैवाहिक घर में आना बंद कर दिया। इतना ही ससुराल वालों ने उसे पति के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने की धमकी दी और कहा कि वह उसे और उसके बच्चों को वित्तीय सहायता देना बंद कर देंगे। महिला का आरोप था कि पति ने महिला से शादी कर ली और उससे उसकी एक बेटी भी है।

    पत्नी को छोड़ना पड़ा अपना घर

    पति ने तर्क दिया था कि महिला की याचिका घरेलू हिंसा अधिनियम के दायरे में नहीं आती है। उक्त तर्क को ठुकराते हुए अदालत ने कहा कि पत्नी को अपना वैवाहिक घर छोड़ना पड़ा, क्योंकि वह इस बात को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी कि उसका पति दूसरी महिला के साथ रह रहा है।

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    अदालत ने कहा कि पीड़िता अपने दो बच्चों की देखभाल करने की स्थिति में नहीं थी और ऐसे में उनके पास उन्हें याचिकाकर्ता के माता-पिता के पास छोड़ने का कोई विकल्प नहीं था।